नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और जाने-माने अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नया मंच बनाने की घोषणा की है। मोटे तौर पर यह मोदी सरकार के विरोध में समर्थन जुटाएगा। गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों और नेताओं से इसमें सहयोग मांगा गया है। इस मंच का नाम ‘इंसाफ’ है। सिब्बल ने ‘इंसाफ का सिपाही’ नाम की वेबसाइट शुरू करने की बात भी कही है। द्रमुक प्रमुख और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने भी बुधवार को अपने 70वें बर्थडे पर पीएम मोदी और बीजेपी को लेकर अपील की थी। उन्होंने कहा था कि केंद्र की सत्ता में बीजेपी को वापस नहीं आना चाहिए। न ही उसके नेता नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनना चाहिए। न तो ऐसे मंच और वेबसाइट बनाने में कोई बुराई है न इस तरह की अपील करने में। लेकिन, सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी से जमीन पर कौन लड़ाई करेगा। बीजेपी का एक के बाद एक राज्यों में सत्ता में आना और पीएम मोदी के नाम पर वोट पड़ना इसका सबूत है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में चुनाव नतीजों के बाद यह साफ हो गया है कि जमीन पर स्ट्रैटेजी मेकिंग में बीजेपी की सानी नहीं है। 2016 से पहले तक जिस पूर्वोत्तर में कांग्रेस और लेफ्ट का राज हुआ करता था। कुछ ही सालों में बीजेपी ने उन्हें उखाड़ फेंका है। दक्षिण में भी वह भगवा परचम लहराने को बेताब है। वह पूरी ताकत के साथ इसमें जुट गई है। क्या मंच, भाषणबाजी और सोशल मीडिया पर बरस कर उसकी आंधी रोकी जा सकती है? विपक्ष अपने ही हथियारों से खा रहा है मार… विपक्ष जिन ‘हथियारों’ से मोदी पर हमला करता है, वह उसी को अपनी ताकत बना लेते हैं। फिर उसी से विपक्ष को चारों खाने चित कर देते हैं। त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनावी नजीतों के बाद पीएम मोदी ने समर्थकों को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने बड़े जोर-शोर से एक बात उठाई थी। विपक्ष पर निशाना साधते हुए मोदी बोले थे- ‘वो कहते हैं – मर जा मोदी, लोग कह रहे हैं- मत जा मोदी…’। बीजेपी ने त्रिपुरा में सत्ता कायम रखी। नगालैंड में नेफ्यू रियो के नेतृत्व में नैशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ मिलकर सफलता पाई। मेघालय में भी अपना रास्ता खोले रखा। यह वही बीजेपी है जिसका 2016 से पहले पूर्वोत्तर में कहीं दूर-दूर तक पता नहीं था। जिसे बनियों और हिंदी पट्टी की पार्टी कहा जाता था। विरोधी जिसके बारे में कहते थे कि इसका गांवों में कोई आधार नहीं है। वह हिंदुत्व के नाम पर ही चुनाव जीत सकती है। लेकिन, इन सभी मिथक को पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने तहस-नहस कर दिया है। इसके पीछे सबसे बड़ी चीज जमीनी स्तर पर लोगों तक पार्टी का मैसेज पहुंचना है। मुद्दों को ‘मुद्दा’ नहीं बना पा रहा है विपक्ष… बीजेपी का एक के बाद एक राज्य जीतना और विपक्ष का सिकुड़ना एक बात साफ करता है। वह यह है कि बीजेपी और पीएम मोदी जिस तरह लोगों से संपर्क साध पाए, उसमें विपक्ष और उसके नेता विफल रहे हैं। सही मायने में किसी भी मुद्दे को विपक्ष मुद्दा नहीं बना पाया। मुद्दा बना पाती तो बीजेपी एक के बाद एक राज्य में जीत नहीं रही होती। मुद्दे चारदीवारों में बैठकर एकाध ट्वीट करने और बातों से नहीं बनते हैं। न विपक्ष को एक जुट करने की अपील से सत्ता से बीजेपी को उखाड़ फेंकने का सपना पूरा हो सकता है। इसके लिए जमीन पर आना होगा। जनसंपर्क करना होगा। लोगों के बीच जाना होगा। उनकी समस्याएं सुननी होंगी। माहौल बनाना होगा। संसद में उतनी ही तीखी बहस करनी होगी जैसी कभी बीजेपी विपक्ष में रहकर करती थी। कुल मिलाकर मुद्दों को ‘मुद्दा’ बनाना होगा। ऐसा मुद्दा जो लोगों का वोट ला सकें। यह सब कुछ जमीन पर उतरकर ही संभव है। कांग्रेस के लगातार खराब प्रदर्शन से एक और बात साफ हुई है। लोगों ने उससे दूरी बना ली है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का भी कुछ खास फर्क नहीं दिखा है। गांधी परिवार लोगों को मोबलाइज करने में नाकाम है। लोग उन्हें देखने के लिए तो जरूर जुट जाते हैं। लेकिन, वह वोट में कन्वर्ट नहीं होता है। गांधी परिवार का कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है जिसके नाम पर कांग्रेस वोट मांग सकती हो। यह स्थिति बीजेपी के बिल्कुल उलट है। मोदी बीजेपी के ब्रांड बन चुके हैं। हर चुनाव में उनके नाम पर बीजेपी वोट मांगती है। लोग झोली भरभर उनके नाम पर वोट देते हैं। कपिल सिब्बल के मंच से क्या बन पाएगी बात? बीजेपी को टक्कर देने के लिए अब सिब्बल ने मंच बनाया है। उनका दावा है कि बीजेपी नीत केंद्र सरकार के कार्यकाल में देश में मौजूद ‘अन्याय’ से लड़ने के लिए इसका गठन किया है। गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों और नेताओं से समर्थन देने को कहा है। उन्होंने कहा है कि यह राष्ट्रीय स्तर का मंच होगा। इसमें वकील सबसे आगे होंगे। आरएसएस की शाखाएं भी हर इलाके में अपनी विचारधारा का प्रसार कर रही हैं। ये अन्याय को जन्म देती हैं। वे उस अन्याय से भी लड़ेंगे। सिब्बल ने इसे लोगों का मंच बताया है। इन अटकलों को उन्होंने खारिज कर दिया है कि वह किसी राजनीतिक दल की शुरुआत कर रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने वेबसाइट भी बनाने को कहा है। लेकिन, ये प्रयास बीजेपी को रोक पाने में कितने सफल होंगे, इसमें शक है। ऐसा ही कुछ स्टालिन ने बीते दिनों किया था। मौका उनके जन्मदिन का था। इस दौरान उन्होंने कहा कि बीजेपी को सत्ता में नहीं आना चाहिए। न ही उसके नेता नरेंद्र मोदी को फिर प्रधानमंत्री बनना चाहिए। यही उनकी पार्टी का रुख है। लेकिन, उनके ऐसा सोचने और चाहने से नहीं होगा। दोबारा बात वहीं आती है। इसके लिए ठोस प्लानिंग करनी होगी। जमीन पर लड़ना होगा। आखिर मोदी से जमीन पर कौन लड़ेगा?