देश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भले ही खुद को सबसे बड़ी पार्टी बताती हो, लेकिन यह बात सत्य है कि दक्षिण भारत के कई राज्यों में अभी भी उसका जनाधार काफी सीमित है। कर्नाटक को छोड़ दें तो बाकी के दक्षिण भारत के राज्यों में भाजपा अभी भी अपने दम पर खड़े होने की कोशिश में जुटी हुई है। पार्टी तमिलनाडु में भी अपनी पूरी ताकत लगा रही है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा की उम्मीदों को फिलहाल पर मिल गया है। इसका कारण यह है कि तमिलनाडु के भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई जबरदस्त तरीके से सुर्खियों में रहते हैं। वह डीएमके के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की आलोचना तो करते ही हैं, साथ ही साथ पार्टी के लिए जमीन पर भी संघर्ष के लिए तत्पर रहते हैं। हाल के दिनों में देखें तो भ्रष्टाचार को लेकर अन्नामलाई डीएमके से अकेले लोहा ले रहे हैं। डीएमके के कथित भ्रष्टाचार को सामने लाने के लिए वह लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इसे भी पढ़ें: Congress की ‘रेवड़ी राजनीति’ ने कर्नाटक को किया लहुलुहान : भाजपाअन्नामलाई को मिली सफलता भ्रष्टाचार को लेकर डीएमके सरकार को घेरने की कोशिश में अन्नामलाई को सफलता भी मिली है। एमके स्टालिन की सरकार में रहे पलानीवेल थियागा राजन पर अन्नामलाई जबरदस्त तरीके से आक्रामक रहे। दबाव में आकर इन्हें स्टालिन की सरकार ने अपने कैबिनेट फेरबदल में आईटी मंत्रालय आवंटित कर दिया। इसको लेकर अन्नामलाई ने एक वीडियो क्लिप जारी किया था। वहीं, राज्य के एक अन्य मंत्री सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय ने हाल में ही गिरफ्तार किया है। सेंथिल बालाजी के ऊपर भी अन्नामलाई जबरदस्त तरीके से आक्रामक रहे हैं। अन्नामलाई राज्यपाल को भी पत्र लिखकर सेंथिल बालाजी को कैबिनेट से हटाने की मांग की थी। अन्नामलाई से भाजपा को उम्मीदफिलहाल तमिलनाडु में इस बात की चर्चा खूब है कि अन्नामलाई ने अपने दम पर डीएमके सरकार के भीतर भ्रष्टाचार को पूरी तरीके से बेनकाब कर दिया है। इसी के बाद भाजपा का अन्नामलाई पर विश्वास भी बढ़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार दक्षिण भारत में भाजपा की जड़ों को मजबूत करने की कोशिश में लगातार जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में अन्नामलाई का यह उदय हुआ है। अन्नामलाई के उदय से भाजपा के लिए भी उम्मीद जगी है। पिछले दो दशकों की बात करें तो भाजपा राज्य में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ती रहे हैं। भगवा पार्टी ने राज्य की दोनों बड़ी पार्टियां एआईएडीएमके और डीएमके के साथ गठबंधन कर चुकी है। हालांकि, पार्टी को अपने पैर जमाने के लिए इससे ज्यादा लाभ नहीं हुआ। खाली स्पेस को भरने की कोशिशतमिलनाडु में जयललिता की मौत के बाद एक स्पेस जरूर खाली हुआ है। इसी स्पेस को हासिल करने के लिए भाजपा अपने अभियान में जुटी हुई है। जयललिता की मौत के बाद उनकी पार्टी एआईएडीएमके भी बैकफुट पर है। पार्टी के भीतर ही अंदरूनी कलह है और भाजपा उसका फायदा उठाना चाहती है। यही कारण है कि अन्नामलाई एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में रहने के बावजूद भी अपनी आक्रामकता बनाए रखे हुए हैं। के अन्नामलाई युवा है, आक्रामक है और पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर संघर्ष करने को पूरी तरीके से बेताब रहते हैं। कहीं कारण है कि वह भाजपा के शीर्ष नेताओं के गुड बुक में भी शामिल हैं। अन्नामलाई को आगे करके भाजपा शिक्षित और शहरी वोटरों को तमिलनाडु में अपने पक्ष में कर सकती है। इसे भी पढ़ें: Delhi Police ने बृजभूषण सिंह के खिलाफ दायर की चार्जशीट, नाबालिग पहलवान के यौन शोषण केस में क्लीन चिट!पार्टी का मिल रहा साथवर्तमान में देखे तो अन्नामलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा का भरपूर समर्थन ही मिल रहा है। यह तीनों फिलहाल भाजपा के टॉप थ्री हैं। यही कारण है कि अन्नामलाई का हौसला भी काफी बुलंद रहता है। राज्य में कांग्रेस का कुछ खास जनाधार नहीं है। कांग्रेस डीएमके और एआईएडीएमके का मुकाबला करने में अपने दम पर पूरी तरीके से भी रही है। यही कारण है कि भाजपा अपने लिए तमिलनाडु में लगातार संभावनाएं तलाश रही है। 2024 लोकसभा चुनाव सामने हैं। भाजपा ने दक्षिण भारत में 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। तमिलनाडु में अनंत 39 लोकसभा की सीटें हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं तमिलनाडु फिलहाल भाजपा के लिए प्रमुखता में हैं। आईपीएस की नौकरी छोड़ने के बाद अन्नामलाई 25 अगस्त 2020 को भाजपा में शामिल हुए। इसके बाद उन्हें तमिलनाडु भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। सिंघम का दिया गया था नामअन्नामलाई कर्नाटक कैडर के आईपीएस अफसर रहे हैं। वह तमिलनाडु में भाजपा के सबसे युवा अध्यक्ष भी हैं। उन्हें कर्नाटक में सिंघम का नाम भी दिया गया था। लोगों में जनजागृति वह लगातार करते रहते थे। कुरान का भी उन्होंने अध्ययन किया है ताकि सांप्रदायिक तनाव को कम किया जा सके। युवाओं के लिए यह प्रेरणा स्रोत थे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरा करने के बाद यह लखनऊ के आईआईएम में एमबीए करने पहुंचे थे। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्लेसमेंट की बजाय उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा दी। पहली पसंद आईएएस थी लेकिन नंबर कम होने की वजह से आईपीएस बने।