जिन्‍ना की वो हसरत जो सरदार पटेल ने नहीं होने दी पूरी… शायद तब पाकिस्‍तान से टूटकर न बनता बांग्‍लादेश

नई दिल्‍ली: बात 1947 की है। मई का महीना था। अंतरिम सरकार बन चुकी थी। सरदार वल्‍लभभाई पटेल () गृह मंत्री बने थे। अंग्रेजों ने मोहम्‍मद अली जिन्‍ना (Mohammad Ali Jinnah) की झोली में पाकिस्‍तान तो डाल दिया था। लेकिन, एक बात उन्‍हें खाए जा रही थी। पाकिस्‍तान उन्‍हें दो टुकड़ों में मिला था। पश्चिमी पाकिस्‍तान और पूर्वी पाकिस्‍तान। दोनों में सिर्फ मजहब के अलावा कोई समानता नहीं थी। न बोली-भाषा से न ही संस्‍कृति से। जिन्‍ना को एहसास हो गया था कि इन दोनों को एक सरकार के लिए मैनेज करना आसान नहीं होगा। इसी को देखते हुए जिन्‍ना ने भारत के बीच से पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्‍तान को जोड़ने वाले गलियारे की मांग उठाई थी। हालांकि, पटेल ने कॉरिडोर की इस मांग को ‘फैनटैस्टिक नॉनसेंस’ करार दिया था। वह बोले थे कि इस तरह की मांग को बिल्‍कुल भी गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है।

जिन्‍ना को मालूम था कि पाकिस्‍तान के दो हिस्‍सों के बीच करीब 1000 मील की दूरी है। यह पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्‍तान पर शासन करना मुश्किल बनाएगा। उन्‍हें यह भी पता था कि ये दोनों हर लिहाज से अलग हैं। सिर्फ इस्‍लामिक बैनर इन्‍हें एक करता है। ऐसे में एक सरकार के लिए दोनों हिस्‍सों पर कंट्रोल करना आसान नहीं है।

ज‍िन्‍ना ने द‍िक्‍कत का कर ल‍िया था एहसासवह जान गए थे कि आने वाले दिनों में यह दोनों हिस्‍सों के एक बराबर विकास में भी अड़चन बनेगा। जिन्‍ना जो तब सोच रहे थे वह बाद में सच भी हुआ। पूर्वी पाकिस्‍तान फिसलकर बांग्‍लादेश बन गया। जिन्‍ना ने 21 मई 1947 को डूर कैम्‍पबेल के साथ इंटरव्‍यू में पाकिस्‍तान के दो हिस्‍सों के बीच गलियारा बनाने की मांग रखी थी। वह चाहते थे यह गलियारा भारत से गुजरते हुए पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्‍तान को जोड़े। दोनों हिस्‍सों को जोड़ने के लिए करीब 1000 मील के गलियारे की जरूरत पड़ती। भारत और पाकिस्‍तान के बीच गुडविल व्‍यवस्‍था के तहत वह ऐसा चाहते थे। इस गुडविल के जरिये जिन्‍ना सोच रहे थे कि उनके लिए रेल कॉरिडोर को पाना भी आसान होगा। जहां तक इस कॉरिडोर के रखरखाव का सवाल था तो वह इसे सेज कनाल की तर्ज पर चाहते थे।

पटेल ने समझ ली थी ज‍िन्‍ना की होश‍ियारी सरदार पटेल को जिन्‍ना की होशियारी समझ आ रही थी। जब उनसे पूछा गया कि क्‍या कांग्रेस इस तरह के किसी प्रस्‍ताव पर सहमत होगी तो उन्‍होंने दो-टूक इंकार कर दिया था। उन्‍होंने कहा था कि गैर-मुस्लिम क्षेत्र से इस तरह के कॉरिडोर का आइडिया ही अपने में मूर्खतापूर्ण है। इसे कतई गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।

जिन्‍ना इसके लिए कोशिश करते रहे। 5 अगस्‍त 1947 को उन्‍होंने विंस्‍टन चर्चिल को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्‍होंने इसी प्रस्‍ताव को दोहराया था। यह कॉरिडोर उत्‍तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरना था। इस प्रस्‍ताव में काफी खामियां थीं। ब्रिटेन की न तो ऐसा करने की इच्‍छा थी न ही उसमें शक्ति थी क‍ि वह जबरन इसके लिए भारत को मजबूर करे।