नई दिल्ली: अकूत दौलत जमा करने की कभी न खत्म होने वाली लालच भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह बढ़ा रहा है। ऐसे में संवैधानक अदालतों का देश के नागरिकों के प्रति दायित्व है कि वो करप्शन को लेकर जीरो टॉलरेंस की नजीर पेश करें और ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाएं। ये बातें देश की सर्वोच्च अदालत ने कही है। ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में भारत के नागरिकों से सामाजिक न्याय का जो वादा किया गया है, उसे संपत्ति के वितरण के जरिए ही पूरा किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार को प्रस्तावना में किए गए इस वादे को पूरा करने की राह का बड़ा रोड़ा बताया। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस को लाल किले के प्राचीर से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का ऐलान किया था। सुप्रीम कोर्ट की आज की टिप्पणी पीएम मोदी के इस अभियान को हरी झंडी के तौर पर देखा जा सकता है। साफ है कि भ्रष्टाचारी नेता हों या अधिकारी, अब उन्हें अदालतों के कड़े रुख का ही सामना करना होगा। स्वंतत्रता दिवस के भाषण में दहाड़े थे पीएम मोदीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर जमकर हमला बोला था। उन्होंने देश की जनता से इन दो कुरीतियों को खत्म करने में मदद की अपील की। पीएम ने कहा कि इन कुरीतियों की जड़ों में मट्ठा नहीं डाला गया तो यह विकराल रूप ले सकता है। पीएम मोदी ने कहा कि दुर्भाग्य से राजनीतिक क्षेत्र की इस बुराई ने देश की हर संस्था को पोषित कर दिया। मोदी ने लाल किले के प्राचीर से कहा था, ‘भारत जैसे लोकतंत्र में जहां लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है, एक तरफ वो लोग हैं जिनको चोरी का माल रखने की जगह नहीं है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना है।’ भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में मिला सुप्रीम कोर्ट का साथआज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की जो पीएम मोदी की इसी भावना का समर्थन है। पीठ ने छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में हाई कोर्ट से मिली राहत को वापस लेकर बड़ा संदेश दिया। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया था। दोनों जजों की पीठ ने कहा कि संपत्ति के समान वितरण से सामाजिक न्याय का सपना देखा गया था। लेकिन संविधान की प्रस्तावना में देखा गया सपना आज भी हकीकत से कोसों दूर है। भ्रष्टाचार भले ही इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं हो, लेकिन यह निश्चित तौर पर एक प्रमुख बाधा तो है ही। भ्रष्टाचार पाप, इसे दूर करना ही होगा: सुप्रीम कोर्टसुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा, ‘भ्रष्टाचार की बीमारी जीवन के हर क्षेत्र में फैल गई है। अब यह शासन-प्रशासन तक सीमित नहीं रह गई है। कितनी अफसोस की बात है कि अब आम नागरिक भी हताश होकर कहने लगे हैं कि यही उनके जीवन का हकीकत है। जिम्मेदार नागरिक भी मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार उनके जीवन का तरीका बन गया है।’ उसने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने जो सपना देखा था, उसे पूरा करने के लिए अनिवार्य आदर्शों में लगातार गिरावट आ रही है और समाज में नैतिक मानदंडों का क्षरण तेज गति से बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संपूर्ण समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पीठ ने कहा, ‘भ्रष्टाचार की जड़ें ढूंढने के लिए बहुत बहस-मुबाहिसे की जरूरत नहीं रह गई है। सनातन धर्म में जिन सात पापों का जिक्र है, उनमें एक ‘लालच’ अपने पूरे सबाब पर है। दरअसल, संपत्ति की अतृप्त लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह फैला दिया है।’ इसने आगे कहा, ‘अगर भ्रष्ट लोग कानूनी एजेंसियों को ठेंगा दिखाने में सफल होंगे तो फिर पाप की सजा भुगतने का डर भी खत्म हो जाएगा। भ्रष्टाचारी मानते हैं कि नियम-कानून उनके लिए नहीं, ये तो सीधे-सादे लोगों के लिए हैं। उनके लिए तो पकड़ा जाना किसी पाप से कम नहीं।’ ‘अपने फायदे के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं सरकारी कर्मचारी’सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों को देशवासियों की सेवा करने का दायित्व दिया गया, वो व्यक्तिगत हितों को सर्वोपरि बना लिया है। पीठ ने कहा, ‘हमने संविधान को अंगीकार किया और विश्वास एवं जिम्मेदारी वाले पदों पर बैठे लोगों से बहुत उच्च मानदंडों की अपेक्षा की जो संवैधानिक मूल्यों और भावनाओं के अनुरूप हो। दुख की बात है कि ऐसा नहीं हो सका क्योंकि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की एक जमात ने अपने हितों को सबसे ऊपर रख दिया है। उन्होंने राष्ट्रहित की कीमत पर अपने लिए अकूत संपत्ति जमा की है।’ उसने कहा कि भ्रष्ट लोगों को ढूंढ-ढूंढकर उन्हें कठोर से कठोर सजा दिलाना भ्रष्टाचार निरोधक कानून का मकसद है। उसने कहा कि यूं तो करप्शन के कैंसर की रोकथाम के लिए उचित कानून है जिसके तहत अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन मौजूदा दौर में इससे भ्रष्टाचार खत्म होना तो दूर, इसे गहरी चोट पहुंचने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। अदालतों को लेना होगा कठोर ऐक्शनउच्चतम न्यायालय ने कहा कि अदालतों को भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा से कड़ा ऐक्शन लेना अपनी जिम्मेदारी समझना होगा। उसने कहा, ‘परियों की कहानियों जैसी ऐसी कोई जादूई छड़ी तो है नहीं जिसे घुमाने मात्र से लालच खत्म हो जाए। ऐसे में संवैधानिक अदालतों का देशवासियों के प्रति यह दायित्व है कि वो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए और ईमानदार कर्मियों की रक्षा करे क्योंकि कई बार ईमानदार कर्मी भ्रष्टाचारियों की साजिश के शिकार हो जाते हैं। यह बहुत कठिन काम है, लेकिन इस मकसद के लिए हरसंभव कोशिश करनी ही होगी।'(पीटीआई से इनपुट के साथ)