Rajasthan Urban Employment Scheme : राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने एक शहरी रोजगार स्कीम का ऐलान किया। उन्होंने न्यूनतम गारंटी इनकम () को लेकर एक समग्र योजना के तहत इसका ऐलान किया। यही नहीं उन्होंने इसे अपनी सरकार की बड़ी सफलता करार दिया। उनकी इस योजना को लेकर स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया पर एक लेख लिखा है। जिसमें उन्होंने इस योजना को लेकर कई प्वाइंट्स रखे हैं। उन्होंने बताया कि कैसे ये योजना राज्य की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है।स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने अपने लेख बताया कि कैसे गहलोत सरकार की न्यूनतम गारंटी स्कीम का असर दूसरे राज्यों पर नजर आ सकता है। विपक्षी पार्टियां भी अब इसी तरह की गारंटी इनकम स्कीम का वादा करेंगी और मौजूदा सरकारें भी ऐसा करने के लिए लालायित होंगी। यही नहीं इसके समर्थक इसे मानवीय अधिकारों के लिए बड़ी सफलता करार देंगे। वहीं आलोचक इसे एक और ‘रेवड़ी’ कहेंगे, ऐसा गिफ्ट जो कुछ लाभ देता है। मैं कहूंगा कि यह कदम वास्तव में काफी नुकसान पहुंचा सकता है।इस योजना से राज्य पर बढ़ेगा वित्तीय बोझस्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर के मुताबिक, सबसे पहला प्वाइंट ये है कि शहरी रोजगार गारंटी स्कीम में जो फैक्टर्स हैं इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। दूसरा, आरबीआई के अनुसार, राजस्थान वित्तीय रूप से सबसे अधिक दबाव वाले पांच राज्यों में से एक है। जहां विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम अशोक गहलोत ने इस स्कीम का ऐलान किया। हालांकि, राज्य सरकार इस योजना के खर्च को उठाने सबसे कम सक्षम है। न्यूनतम गारंटी इनकम तीन हिस्सों में आती है। राज्य पहले से ही ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत 259 रुपये प्रति दिन के न्यूनतम वेतन पर 100 दिनों का काम प्रदान करता है। मनरेगा का भट्ठा बैठा देगी ये योजनाअब राजस्थान सरकार एक शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करेगी जो शहरी श्रमिकों को समान न्यूनतम मजदूरी पर हर साल 125 दिनों का रोजगार प्रदान करेगी। जो लोग काम करने में असमर्थ हैं, उन्हें सरकार 1,000 रुपये प्रति माह की पेंशन देगी। यह शायद ही ठीक से रहने के लिए अच्छी मजदूरी है। लेकिन यह न्यूनतम गारंटी है। ध्यान रहे कि यह कई आदर्शवादियों की ओर से सुझाई गई यूनिवर्सल बेसिक इनकम नहीं है। यह लाभार्थियों को जीवन बिताने में कुछ आर्थिक मदद ही करेगा, लेकिन राजस्थान सरकार की ये स्कीम कई क्षेत्रों में लोगों को प्रभावित करेगी।मैं क्यों कहता हूं कि इस योजना में एक विकृत प्रोत्साहन है? माना जाता है कि मौजूदा हालात ऐसे हैं जहां बहुत से ग्रामीण लोग काम के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसलिए, मनरेगा स्कीम आई, जिसका एक खास उद्देश्य शहरी प्रवास को कम करना था। अब शहरी रोजगार गारंटी स्कीम राजस्थान में लोगों को शहरों में पलायन के लिए प्रोत्साहित करेगा। साथ ही ये स्कीम मनरेगा के उद्देश्यों को भी बुरी तरह से प्रभावित करेगा। गांव से शहरों को बढ़ेगा पलायनशहरों में ग्रामीण लोगों के ज्यादा पहुंचने का सीधा अर्थ होगा बिना पानी या बिजली वाले अनधिकृत झुग्गियों का निर्माण। जिसका शहरों में तेजी से प्रसार होगा। पहले भी गांव से शहरों को हो रहे लगातार पलायन से ये समस्या बढ़ती जा रही। कोई भी राज्य अतिरिक्त ग्रामीणों की शहरों में बढ़ोतरी के लिए तैयार नहीं है। इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है कि शहरी रोजगार गारंटी स्कीम के तहत सिटी में पहुंचने वाले लोगों को कैसे सहयोग मिलेगा। कोविड ने राज्य की वित्तीय स्थिति को छह फीसदी तक सीमित कर दिया है। कोई भी कर्ज पूर्व-कोविड लेवल की वसूली के करीब नहीं है। अगर राजस्थान सरकार शहरी रोजगार गारंटी लागू करते हैं तो उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब हो जाएगी।मनरेगा मजदूरी छत्तीसगढ़ में 221 रुपये प्रति दिन से लेकर हरियाणा में 357 रुपये प्रति दिन तक है। लेकिन कई राज्यों में ये राशि महंगाई भत्ते में बदलाव के मद्देनजर अलग-अलग हैं। शहरी मजदूरी आमतौर पर दुकानों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत नियंत्रित की जाती है जो कहीं ज्यादा वेतनमान प्रदान करता है। दिल्ली का न्यूनतम वेतन 17,234 रुपये प्रति माह है। ये 26 वर्किंग डे के लिए 770 रुपये प्रति दिन के हिसाब से है। इससे इस बात का अंदाजा लग जाता है कि शहरी गारंटी योजना मनरेगा की तुलना में कितनी महंगी होगी। आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा सीधा असरराजस्थान जैसे कुछ राज्यों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मजदूरी समान है। इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि शहरों में रहने की लागत बहुत अधिक है। इन मामलों में शहरी क्षेत्रों में मनरेगा का विस्तार अधिक सैलरी पर नहीं होगा। उन परिस्थितियों में क्या होगा? आम तौर पर, शहरों में कैजुअल लेबर के लिए बाजार रेट, गांव की न्यूनतम मजदूरी से अधिक होगी। अगर ऐसा है, तो न्यूनतम मजदूरी लेने वाले बहुत कम हो सकते हैं। ऐसे में रोजगार के मामले में यह योजना असफल रहेगी। ग्रामीण रेट की तुलना में शहरी दर अधिक रखने के लिए भारी राजनीतिक दबाव बनेगा। यह तब कई और प्रवासियों को शहर की ओर जाने के लिए आकर्षित करेगा। इसका सीधा असर राज्य के खर्च पर दिखेगा जो अधिकतम सीमा से ऊपर जा सकता है।मनरेगा के तहत जो काम हैं उनमें जमीन को समतल करना और बांध बनाने जैसी पूंजीगत परिसंपत्तियों का निर्माण है। इस कामों से स्पष्ट है कि ये उत्पादकता को बढ़ाती हैं। हालांकि, शहरी गारंटी रोजगार स्कीम के माध्यम से समान पूंजीगत परिसंपत्तियों का निर्माण किया जा सकता है या नहीं ये यह स्पष्ट नहीं है। शहरी निर्माण कार्यों में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। राजस्थान की आर्थिक हालत पहले से ही खराबइसके अलावा राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 के मानदंडों के तहत, प्रत्येक राज्य को अपने ऋण/जीडीपी अनुपात को 20 फीसदी तक कम करना चाहिए। राजस्थान का अनुपात लगभग दोगुना है और इस रोजगार गारंटी स्कीम के साथ ये और अधिक हो जाएगा। RBI की एक रिसर्च में 2022-23 के लिए राजस्थान के लोन को GDP अनुपात में 39.8 फीसदी आंका है। यह आंकड़ा इसे शहरी रोजगार गारंटी देने में सबसे कम सक्षम राज्यों में से एक बनाता है।कैसे पेंशन स्कीम से राज्य की बिगड़ेगी स्थितिविकलांग या वृद्ध लोगों के लिए 1,000 रुपये प्रति माह की पेंशन की गारंटी दी गई है। इसमें हर साल 15 फीसदी की वृद्धि होगी। इसका मतलब है कि यह पांच साल में दोगुना हो जाएगा। दस में चौगुना, 15 वर्षों में आठ गुना और 25 साल में 32 गुना बढ़ जाएगा। 2043 तक पेंशन 32,000 रुपये प्रति महीना हो जाएगी। क्या इसका कोई मतलब है?केंद्र और राज्यों का ऋण/सकल घरेलू उत्पाद (Debt/GDP) का अनुपात तुलनात्मक विकासशील देशों की तुलना में कहीं अधिक है। ब्याज की लागत ही सभी राजस्व के एक चौथाई से अधिक को निगल लेती है। जो दूसरे विकासशील देशों की तुलना में दोगुना है। इससे निवेश के लिए मौजूद राशि कम हो जाती है। इससे विकास में तेजी लाने और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की भारत की क्षमता प्रभावित होगी।(ये लेखक के निजी विचार हैं)