इससे पहले दोनों देशों के बीच 10 मिलियन टन सामान का समझौता हुआ था। ईरान भारत के लिए रूसी सामानों का प्रवेश द्वार बनकर उभर रहा है। मास्को से मुंबई के बीच कॉरिडोर में ईरान बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह इंटनैशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर अभी भी विकसित हो रहा है। रूसी अधिकारियों का अनुमान है कि इस कॉरिडोर की कुल क्षमता 15.4 मिलियन टन तक पहुंच सकती है। यही नहीं वे इसे डबल करके सालाना 35 मिलियन टन तक पहुंचाने का इरादा रखते हैं।
रूस से ईरान के रास्ते चीन तक सामान भेजने का प्लान
यह डबल करने का काम नए रास्तों को शुरू करने और
में पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों को भी शामिल किया जा सकता है। हालांकि विशेषज्ञों को 35 मिलियन टन ट्रांजिट क्षमता पहुंचने में संदेह है। रूसी अधिकारियों ने यह भी सुझाव दिया है कि अगर ईरान के बंदर अब्बास के रास्ते रूस के सेंटपीटर्सबर्ग को चीन से जोड़ दिया जाए तो व्लादिवोस्तोक-येकतेरिनबर्ग-मास्को के बीच रेल मार्ग पर दबाव कम हो सकता है।
रूसी अधिकारियों ने कहा कि रेलमार्ग से चीन और रूस के बीच सबसे ज्यादा सामान आता जाता है। इस रास्ते से चीन को सामान भेजने में बहुत ज्यादा समय भी नहीं लगेगा। रेलमार्ग से जहां 40 से 45 दिन लगता है वहीं बंदरअब्बास के रास्ते इसमें 49 से 59 दिनों का समय लगेगा। हालांकि फायदा इससे यह होगा कि रेलमार्ग में आने वाली परेशानियां कम हो जाएंगी। विश्लेषकों का कहना है कि इस ट्रांजिट मार्ग से मास्को-मुंबई कॉरिडोर स्पष्ट हो गया है। बड़ी संख्या में कंपनियां इस कॉरिडोर की संभावना को तलाश करने के लिए प्रयास कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अगर आधा प्लान भी लागू हो जाता है तो भी यह बहुत बड़ी सफलता होगा।