प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी को नहीं मिली थी इजाजत, इस बार जगन्नाथ मंदिर में मुस्लिम अधिकारी के जाने पर विवाद

नई दिल्ली: पुरी के में एक महिला मुस्लिम अधिकारी के मंदिर में प्रवेश को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बताया जा रहा है कि मुस्लिम महिला ऑफिसर के मातहत आने वाले दूसरे अधिकारी ने इसको लेकर उनको आगाह किया था। ओडिशा के पुरी की इस घटना को लेकर महिला अधिकारी पर अपने पद और पावर का दुरुपयोग करने का आरोप लगा है। मंदिर में प्रवेश को लेकर दूसरे अधिकारी ने कहा कि यहां गैर हिंदुओं को प्रवेश वर्जित है। पुरी के इस मंदिर में गैर हिंदू के प्रवेश की मनाही है। मंदिर में आने वालों की एंट्री आधार कार्ड के आधार पर कराई जाती है। हालांकि इस मामले पर राजनीति भी शुरू हो गई है लेकिन इस मंदिर से जुड़ा एक किस्सा ऐसा भी है जब इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री रहते इस मंदिर में एंट्री नहीं दी गई थी। ओडिशा के पुरी शहर में जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं का देश में एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पूरे देश भर के श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर हिंदुओं की चार धाम यात्रा में गिना जाता है। मंदिर की हर साल निकलने वाली रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। साल 1984 की बात है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। यानी भारत का प्रधानमंत्री भी गैर हिंदू है तो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों की ओर से उनके मंदिर में प्रवेश को लेकर विरोध जताया गया।मंदिर प्रशासन के अनुसार इंदिरा गांधी का विवाह एक पारसी फिरोज गांधी के साथ हुआ है इसलिए विवाह के बाद वह मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। इस वजह से उनको जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। 1984 में मंदिर में सेवादारों की ओर से इंदिरा गांधी के प्रवेश का जमकर विरोध किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मजबूरन उनको पास के रघुनंदन पुस्तकालय से पूजा अर्चना करनी पड़ी। नवंबर 2005 में थाईलैंड की राजकुमारी ओडिशा की पहली यात्रा पर थी लेकिन उन्होंने मंदिर को बाहर से देखा। इस मंदिर में विदेशियों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। 2006 में स्विस महिला एलिजाबेथ जिगलर को प्रवेश नहीं मिला क्योंकि वह इसाई महिला थी। जबकि उनकी ओर से मंदिर को 1.78 करोड़ रुपये का दान भी दिया गया था। सदियों से यह प्रथा रही है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिर पर किए गए कई हमलों ने वहां के प्रशासन पर गैर हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रेरित किया हो। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि मंदिर निर्माण के समय से ही यह प्रथा चली आ रही है। कुछ जगह इस बात का जिक्र है कि मुगल काल में मंदिरों में लूटपाट के बाद ही इस प्रकार के प्रतिबंध हैं। मंदिर में इस संबंध में नोटिस भी लगा हुआ है। इसका जिम्मा राज्य का धर्मस्व व न्यास विभाग संभालता है। साथ ही ट्रस्ट भी इसे देखता है।