
बयान में कहा गया, ‘जांच में पाया गया कि मृत बच्चों ने अस्पताल में भर्ती होने से पहले इस दवा का 2-7 दिनों तक दिन में 3-4 बार बार सेवन किया। इसकी मात्रा 2.5-5 ML के बीच रही, जो बच्चों के लिए दवा की मानक खुराक से ज्यादा है।’ हालांकि बयान में सीधे तौर पर दवा में किसी तरह की गड़बड़ी का आरोप नही लगाया गया। बयान में कहा गया, ‘चूंकि दवा में मुख्य रूप से पेरासिटामोल है, जिसे माता-पिता ने गलत तरीके से इस्तेमाल किया। या तो उन्होंने सीधे मेडिकल से इसे खरीद लिया या फिर ठंड विरोधी उपाय के रूप में इसे इस्तेमाल किया।’
इस कैमिकल को बताया जिम्मेदार
रिपोर्ट्स के मुताबिक शुरुआती लैब टेस्ट से पता चला है कि डॉक-1 मैक्स सिरप की इस सीरीज में एथिलीन ग्लाइकॉल है। मंत्रालय ने इस कैमिकल का जिक्र करते हुए कहा, ‘एथिलीन ग्लाइकॉल एक जहरीला पदार्थ है। इस पदार्थ के सेवन से उल्टी, बेहोशी, ऐंठन, हृदय की समस्या और किडनी फेलियर हो सकता है।’ कुल सात जिम्मेदार कर्मचारियों पर काम के प्रति लापरवाह और सावधानी न बरतने के लिए बर्खास्त कर दिया गया है। कई विशेषज्ञों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।
दवाइयों को मेडिकल स्टोर से हटाया गया
डॉक-1 मैक्स दवा की टैबलेट और सिरप को सभी मेडिकल स्टोर से वापस ले लिया गया है। मंत्रालय ने माता-पिता को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने को कहा है। इसके साथ ही दवा की दुकानों को निर्देश दिया है कि बिना डॉक्टर के पर्चे के दवाई न दें। इससे पहले WHO ने गांबिया में मेडेन फार्मा की बनी चार कफ सिरप के लिए अलर्ट जारी किया था। इन दवाइयों को गांबिया में 66 बच्चों की मौत से जोड़ा गया। 15 दिसंबर को भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने WHO को पत्र लिख कर कहा कि हड़बड़ी में मौतों को भारत की दवा कंपनियों से जोड़ दिया गया, जिससे दुनिया में भारतीय दवाइयों की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं।