कोने-कोने तक हवाई सुविधा पहुंचाएंगे देश में बने छोटे विमान, सरकार की एम्‍ब्रेयर और सुखोई से बातचीत

नई दिल्‍ली (dailyhindinews.com)। के तहत सरकार बड़ा कदम उठाने वाली है। वह विमान बनाने वाली ग्‍लोबल कंपनियों के साथ पार्टनरशिप के मौके तलाश रही है। इनमें एम्‍ब्रेयर और सुखोई शामिल हैं। भारत में छोटे विमान बनाने के लिए यह गठजोड़ होगा। सरकार छोटे शहरों, कस्‍बों और दूर-दराज के इलाकों में कनेक्टिवटी सुधारना चाहती है। इसी मकसद से यह गठजोड़ किया जाएगा। मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है। इस कदम के जरिये देश के कोने-कोने तक हवाई सुविधा मिलेगी।

सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए स्‍थानीय स्‍तर पर एक कंपनी का गठन किया जाएगा। इसमें भारत सरकार की हिस्‍सेदारी 51 फीसदी होगी। विदेशी पार्टनर कंपनी को टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर के लिए कहा जाएगा। बताया गया है कि यह बातचीत अभी शुरुआती स्‍तर पर है। नाम न छापने की शर्त पर सूत्रों ने बताया है कि इन विमानों में 100 से कम सीटें होंगी। गुजरात में इनकी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग हो सकती है।

भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला एविएशन मार्केट है। वह अपने छोटे विमानों के बेड़े को बढ़ाना चाहता है। इसका कारण हवाईअड्डों की सीमित क्षमता है। इसके अलावा छोटे रनवे वाले से एयरपोर्ट एयरबस और बोइंग के नैरो-बॉडी प्‍लेनों को हैंडल करने में भी समर्थ नहीं हैं। सरकार इस कदम के जरिये पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ दूर-दराज के इलाकों में कनेक्टिविटी चाहती है।

एयरलाइनों के लिए कम व्‍यवस्‍त रूटों पर अपनी कुल क्षमता का 10 फीसदी ऑपरेट करना जरूरी है। इनमें कश्‍मीर और पूर्वात्‍तर के राज्‍य शामिल हैं। कम सीटों वाले प्‍लेन इसके लिए ज्‍यादा कारगर होंगे। वे सीटों के अनुपात में ज्‍यादा सवारियां लेकर जा पाएंगे। बड़े विमाने में ज्‍यादा सीटें खाली रह जाती हैं।

एयरबस एसई का अनुमान है कि भारत को 2040 तक करीब 2,210 विमानों की जरूरत होगी। इनमें से 80 फीसदी छोटे चाहिए होंगे। मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि एम्‍ब्रेयर के साथ शुरुआती चर्चा पूरी हो चुकी है। सुखोई ने स्‍थानीय स्‍तर पर जेट मैन्‍यूफैक्‍चर करने में दिलचस्‍पी दिखाई है। इसके अलावा सरकार ने इसके लिए एटीआर से भी संपर्क किया है। एटीआर एयरबस और लियोनार्डो स्‍पा का ज्‍वाइंट वेंचर है।

एम्‍ब्रेयर ने कहा है कि भारत में स्‍थानीय स्‍तर पर छोटे विमान बनाने के लिए काफी ज्‍यादा मौके हैं। मैन्‍यूफैक्‍चरर्स भारत के साथ गठजोड़ करने के लिए लगातार कोशिश में लगे हैं। यह दोनों के लिए विन-विन वाली स्थिति है। एटीआर के छोटे प्‍लेन भारत में क्षेत्रीय रूटों के लिए बड़ी भरपाई करते हैं। इंडिगो इनमें से 39 प्‍लेन के साथ ऑपरेट करती है।

एटीआर की प्रतिद्वंद्वी डी हैविलैंड के डैश-8 क्‍यू400 टर्बोप्रॉप्‍स का इस्‍तेमाल स्‍पाइस जेट करती है। इन विमानों में 78 से 90 लोगों के बैठने की जगह होती है। हिंदुस्‍तान एरोनॉटिक्‍स पहले ही 19 सीटों वाला डारनियर 228 एयरक्राफ्ट बना रही है। इसका इस्‍तेमाल सशस्‍त्र बल और अलायंस एयर करते हैं। भारत में मैन्‍यूफक्‍चरिंग मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में हैं। इसके जरिये सरकार अर्थव्‍यवस्‍था को रफ्तार देने के साथ ही रोजगार के मौके पैदा करना चाहती है।

हवाई सफर को ज्‍यादा किफायती बनाने के लिए सरकार सब्सिडी भी दे रही है। वह देश के अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी को प्रोत्‍साहित करना चाहती है। अपने रीजनल कनेक्टिविटी प्रोग्राम के तहत भारत सरकार ने 45 अरब रुपये का आवंटन किया है। इसके जरिये 100 एयरपोर्टों को विकसित करने के साथ अगले साल तक हेलीपोर्टों और वाटरड्रोम बनाने की योजना है।