भारत तो बहुत पीछे है, अमेरिका भी पानी भर रहा… एक्सपर्ट ने चीन की वो बातें बता दीं कि आपके होश उड़ जाएंगे

नई दिल्ली: भारत को ड्रैगन से मुकाबला है। यह 100% सही है। भारत इस मुकाबले में चीन की तगड़ी चुनौती देने की क्षमता रखता है। यह बात 100% भरोसे के साथ नहीं कही जा सकती। ऐसा क्यों? चीन की एक-एक चाल पर दशकों से नजर रख रहे अमेरिकी एक्सपर्ट () ने इस सवाल के जवाब में कई ऐसी बातें बता दीं जिसे जानकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। उन्होंने कहा कि भारत की तो बात ही दूर है, आज अमेरिका कई पैमानों पर चीन से पीछे हो चुका है। कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रह चुके माइकल पिल्सबरी ने एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में कहा कि चीन अपनी उपलब्धियां गिनाता नहीं, बड़ी संजीदगी से छिपाता है। यह सुनकर अजीब लग सकता है, लेकिन चीन उलटी चाल रहा है ताकि दुनिया उसकी बढ़ती ताकत से घबराकर उसके खिलाफ एकजुट न होने लगे। पिल्सबरी ने कहा कि चीन अपने प्राचीन ग्रंथों और प्रसिद्ध विचारकों के दिखाए राह पर चल रहा है और उसने इतनी प्रगति कर ली है जिसका सही अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। उन्होंने बेबाकी से बताया कि अमेरिका ने भी चीन को ‘ड्रैगन’ बनाने में बड़ी भूमिका निभाई और वह अब भी ऐसा ही कर रहा है। यह अलग बात है कि अमेरिका की चाहत भारत को चीन को पछाड़ते देखना है। कमाल है चीन, शेड्यूल से भी आगे निकल गया!माइकल पिल्सबरी ने कहा कि प्रगति की चाह रखने वाले देश अपने लिए शेड्यूल तय करते हैं, लेकिन चीन तो शेड्यूल से भी तेज निकल गया। उन्होंने कहा, ‘मैं हैरान हूं कि उसने कितनी तेजी से अमेरिका को कई पैमानों पर पीछे छोड़ दिया है।’ उन्होंने कुछ उदाहरणों के जरिए बताया कि कैसे चीन की प्रगति के आगे अमेरिका भी पानी भर रहा है। उन्होंने कहा, ‘चीन ने हाइपरसोनिक मिसाइल बना ली जो दुनियाभर में कहीं भी मार कर सकती है। अमेरिका यह नहीं कर सका। उसे लगता था कि चीन यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सकता, इसलिए हमने इस दिशा में प्रयास ही नहीं किया। चीन चांद के पार चला गया, अमेरिका नहीं। साथ ही, बायोटेक के क्षेत्र में कई मोर्चों पर चीन हमसे आगे निकल चुका है।’ दशकों से नजर, फिर भी चीन पर गच्चा खा गए एक्सपर्ट! चीन की रफ्तार से भौंचक अमेरिकी एक्सपर्ट ने कहा कि वो काफी गंभीरता से चीन को फॉलो करते हुए भी दो गलतियां कर दीं। पिल्सबरी ने कहा, ‘मैंने चीन को लेकर दो गलतियां कीं। एक तो चीन की प्रगति की रफ्तार को लेकर और दूसरी चीन के खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों को लेकर। मुझे लग रहा था कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका के अंदर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं समझता था कि भारत इस अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का मुख्य सदस्य होगा। ऐसा नहीं हुआ। चीन के बिगड़ती चाल के खिलाफ दुनिया में कोई भी ठोस गठबंधन नहीं बन सका। क्वाड तो बना, जिसके बारे में मीडिया कहता है कि यह चीन के लिए है।’ क्वाड भी में भी दमखम नहीं, समझिए कैसे तो क्या क्वाड का कोई महत्व नहीं? पिल्सबरी कहते हैं, ‘क्वाड के चार देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के राष्ट्राध्यक्ष मिलते हैं, उनके विदेश मंत्रियों की बैठक होती है, लेकिन उनके साझा बयानों में चीन का नाम तक नहीं होता है। क्वाड के चारों देश एक-दूसरे को साझा बयान में चीन के खिलाफ कुछ भी बोलने से रोकते हैं। यानी, मैंने जो सोच रखा था, उससे बहुत कमजोर प्रतिक्रिया दिख रही है चीन के खिलाफ।’ उन्होंने कहा कि चीन ने 1964 में पहला परमाणु परीक्षण किया। तब से चीन यही कह रहा है कि भले ही उसके पास सैकड़ों परमाणु हथियार हों, लेकिन वह इसके इस्तेमाल के बारे में कभी सोचता नहीं है, यह तो सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए है। लेकिन पिछले दो सालों से चीन स्ट्रैटिजिक ब्रेकआउट के तहत लगातार अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलें (ICBMs) बना रहा है। अमेरिका के प्रमुख सैन्य अधिकारी ने हाल ही में कहा कि चीन के पास अमेरिका से ज्यादा आईसीबीएम हैं। अमेरिका की कथनी-करनी में बड़ा फर्क, भारत सब समझ रहा: एक्सपर्टजहां तक बात भारत की है तो चीन के पास 1,500 परमाणु हथियार हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने अपने परमाणु हथियारों की संख्या गुप्त रखी है। मान लीजिए कि भारत के पास 100 से 200 परमाणु हथियार होंगे तो भी चीन के पास उससे करीब सात गुना है। पिल्सबरी ने कहा कि कई अमेरिकी 50-60 वर्षों से सोच रहे हैं कि भारत और चीन के बीच घुड़दौड़ होगी। सभी को लगता है कि इस रेस में भारत ही विजेता साबित होगा। कारण कि भारत में अंग्रेजी बोली जाती है, वहां मजबूत लोकतंत्र है। लेकिन सच्चाई यही है कि चीन लगभग सभी संकेतकों पर भारत से बहुत आगे है। अमेरिका ने समझौते के तहत चीन को आधुनिक तकनीक दी। वहां अपनी कंपनियां खड़ी कीं। उन्होंने कहा, ‘इस तरह अमेरिका ने पिछले 40 वर्षों में चीन को भारत के ऊपर तवज्जो दिया है। भारत सरकार को पता है कि अमेरिका ने कई कारणों से 1974 से ही भारत को आधुनिक तकनीक देने से इनकार कर रखा है। यानी, अमेरिका को भले ही विश्वास है कि घुड़दौड़ में भारत जीतेगा, लेकिन हमने चीन पर दांव लगाया।’ उन्होंने कहा कि हम (अमेरिका) आज भी चीन की ही मदद कर रहे हैं। शी जिनपिंग की आक्रामकता के बावजूद चीन में अमेरिकी निवेश बढ़ ही रहा है। इसका परिणाम यह हुआ कि चीन आज तकनीकी रूप से भारत के मुकाबले चार-पांच गुना ज्यादा क्षमतावान है। अच्छी बात है कि इसमें बदलाव शुरू हो गया है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना होगा। वर्ल्ड बैंक और IMF को भी धमका रखा है चीन!पिल्सबरी कहते हैं कि चीनी एक्सपर्ट्स अगले 20 वर्ष के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। उनके सामने लक्ष्य ये है कि अमेरिका को पछाड़ने के लिए क्या-क्या किया जाए, इसकी पहचान करना और रणनीति बनाकर उसे जमीन पर उतारना। इसके लिए चीन वर्ल्ड बैंक की सेवाएं ले रहा है। चीन में वर्ल्ड बैंक का दुनिया का सबसे बड़ा ऑफिस है जहां 3,000 कर्मचारी काम कर रहे हैं। ये चीन को सलाह दे रहे हैं कि उसे अपनी सरकारी कंपनियों को कैसे बेहतर बना सकता है। अमेरिकी एक्सपर्ट ने कहा, ‘एक वक्त था जब फॉर्च्युन 500 लिस्ट में चीन की एक भी कंपनी नहीं होती थी, आज 140 कंपनियों के साथ वह इस लिस्ट में अमेरिका से आगे निकल गया है। फॉर्च्युन 500 में अमेरिका की 120 कंपनियां ही हैं, भारत की तो बहुत कम है। कुछ साल पहले तक चीन में कितने अरबपति हैं, कुछ पता नहीं था। तीन साल पहले चीनी अरबपतियों की संख्या अमेरिका की तुलना में ज्यादा हो गई।’ पिल्सबरी ने कहा कि भारत समेत पूरी दुनिया की गतिविधियां सार्वजनिक होती हैं। भारत की आर्थिक प्रगति का आंकड़ा जगजाहिर है, लेकिन चीन गुप्त रूप से काम करता रहता था। उसने वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ को चीन के आर्थिक आंकड़ों को जारी करने से रोक दिया। चीनी अपने प्राचीन ग्रंथों और उसकी सीख का अक्षरशः पालन करते हैं। उनका मूल मंत्र है कि प्रतिस्पर्धी को अपनी ताकत का अंदाजा नहीं लगने दो। पिल्सबरी कहते हैं कि चीन पिछले 10 साल से कन्फ्यूशियस के रास्ते पर चल रहा है। शी जिनपिंग कनफ्यूशियस के गांव गए थे। वो कहते हैं, ‘चीन दुनिया को आश्वस्त करने की कोशिश करता है कि उससे किसी को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि दुनिया में सर्वशक्तिशाली बनने का उसका सपना ही नहीं है। वह कहता है कि हम तो सिर्फ अपनी गरीबी हटाने पर ध्यान दे रहे हैं। इसके कारण अगर हमारी रैंकिंग बढ़ रही है तो किसी को चिंता नहीं करनी चाहिए। दरअसल, चीन नहीं चाहता है कि उसकी हैरान कर देने वाली ताकत देखकर दुनिया घबरा जाए और उसके खिलाफ एकजुट होने लगे। चीन नहीं चाहता है कि उसके खिलाफ बड़े-बड़े गठबंधन बने।’ माइकल पिल्सबर्ग को जानिएमाइकल पिल्सबरी पूर्व में विभिन्न राष्ट्रीय अमेरिकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार रहे हैं। वो अभी अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के सलाहकार और हडसन इंस्टिट्यूट में चाइनजी स्ट्रैटिजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर हैं। चीन पर उनकी महारथ है। उन्होंने ‘The Hundred-Year Marathon: China’s Secret Strategy to Replace America as the Global Superpower’ नाम की प्रसिद्ध पुस्तक भी लिखी है।