पटना: बिहार विधान परिषद की पांच सीटों को ले कर राज्य के 26 जिला चुनावी संग्राम के केंद्र बन चुके हैं। महागठबंधन इस चुनाव को ले कर गंभीर भी है और लगातार सीएम नीतीश कुमार के निर्देश पर बैठकों का सिलसिला जारी है। यहां तक की महगठबंधन के नेताओं को उनकी भूमिका भी बता दी गई है। हालांकि बिहार विधान परिषद की पांच सीटों के हो रहे चुनाव की स्थिति यह है कि जदयू के तीन सीटिंग विधान पार्षद और भाजपा के एक सीटिंग विधान पार्षद फिर से चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। एक सीट सारण शिक्षक क्षेत्र पर केदार पांडे के निधन के कारण खाली हुई थी। इस वजह से यहां उप चुनाव हो रहे है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के लिए यह चुनाव पहली अग्निपरीक्षा है। वैसे भाजपा की हिस्सेदारी इस में एक सीट की है। अगर इस चुनाव में भाजपा एक सीट से ज्यादा जीत लेती है इसे सम्राट चौधरी के नेतृत्व की कामयाबी माना जा सकता है। ये चुनाव सम्राट चौधरी की अग्निपरीक्षाभारतीय जनता पार्टी हालांकि पांचों विधान परिषद सीटों पर परोक्ष रूप से अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। अपरोक्ष रूप से लोजपा (रामविलास) के साथ और परोक्ष रूप से लोजपा के केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस भी इस समीकरण में शामिल हैं। हालांकि राजनीतिक गलियारों की चर्चाओं पर गौर करें तो बीजेपी गया स्नातक, छपरा शिक्षक और गया शिक्षक को ले कर हो रहे चुनाव के प्रति काफी गंभीर है। बीजेपी का पहला रणक्षेत्र- गया स्नातक क्षेत्रगया स्नातक क्षेत्र को ले कर भाजपा काफी गंभीर है। गया स्नातक को लेकर इसलिए कि यहां के भाजपा विधान पार्षद अवदेश नारायण सिंह यहां से चार बार चुनाव जीत कर पांचवी बार चुनावी समर में उतरे हैं। इनका सामना इस बार जगदानंद सिंह के पुत्र पुनीत कुमार सिंह से मुकाबला है। उनका नया होना भाजपा उम्मीदवार के लिए प्लस प्वाइंट है। साथ ही इसके यहां के स्नातक वोटरों के लगातार संपर्क में रहने का भी लाभ हो सकता है। लेकिन इस बार उन्हें जदयू के बिना सपोर्ट के लड़ना होगा। यह स्थिति कैसे बैलेंस होगी इसी पर चुनाव में जीत का फैसला होना है।बीजेपी का दूसरा रणक्षेत्र- गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रगया शिक्षक क्षेत्र का मुकाबला रोचक होने जा रहा है। हालांकि यहां से सीटिंग सीट जदयू का रहा है। उम्मीदवार संजीव श्याम सिंह लगातार दो बार प्रतिनिधित्व भी कर चुके है। भाजपा ने इनके विरुद्ध जीवन कुमार, जो वैश्य जाति से आते हैं, को उतारा है। भाजपा ने यहां चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा का एंगल दे कर अपनी जीत का दांव चला है। भाजपा के जीवन कुमार का हालांकि यह पहला चुनाव है मगर इनकी तैयारी बहुत पहले से चल रही थी। यह चुनाव वोटरों के बनाने के खेल से जुड़ा है। हालांकि वोटर बनाने को ले कर भाजपा के विधान पार्षद रहे कुमार साहेब ही काफी पहले से भिड़े हुए हैं।लेकिन चुनाव के आते आते भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को एक सफलता यह मिली कि भाजपा नेताओं के आग्रह पर कुमार साहेब ने चुनाव से खुद को अलग कर लिया है। इसका फायदा भाजपा के उम्मीदवार जीवन कुमार को हो सकता है। कुमार साहेब के बनाए वोटर भाजपा उम्मीदवार के फेवर में आ जाते हैं तो जीत का दामन भाजपा भी थाम सकती है।बीजेपी का तीसरा रणक्षेत्र- सारण स्नातक क्षेत्रसारण स्नातक क्षेत्र पर भाजपा की नजर पहले से ही है। इस बार उन्होंने काफी अनुभवी उम्मीदवार उतारा है। भाजपा ने इस बार इस सीट से कई बार जीत दर्ज करने वाले महाचंद्र सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। इनके विरुद्ध महागठबंधन के आनंद पुष्कर चुनावी मैदान में हैं। यहां भी भाजपा उम्मीदवार को अपने अनुभव का लाभ होगा। महाचंद्र सिंह के लगातार कई बार विधान पार्षद रहने के कारण वोटरों पर पकड़ ज्यादा होगी। अब नए उम्मीदवार ने जितने ज्यादा वोटर बनाए होंगे उसका सीधा असर हार-जीत पर दिखेगा। हालांकि भाजपा ने कोसी और सारण शिक्षक सीट पर भी उम्मीदवार उतारा है। कोसी शिक्षक क्षेत्र से भाजपा ने रंजन कुमार को और सारण शिक्षक क्षेत्र से धर्मेंद्र सिंह को उतारा है । परंतु इन दोनो का अनुभव नया नया है। इनकी मेहनत का असर दिखेगा। लेकिन इनके खिलाफ को कोसी शिक्षक क्षेत्र से महागठबंधन के अनुभवी उम्मीदवार संजीव सिंह है। इनसे मुकाबला आसान नही दिखता।