कंझावला कांड में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज हुआ सहेली का बयान, दरिंदों को अंजाम तक पहुंचाने में कितना अहम, समझिए

नई दिल्‍ली: कंझावला केस (Kanjhawala Case) लगातार उलझता जा रहा है। मामले में अंजलि सिंह की सहेली निधि का बयान () लिया गया है। नए साल पर बाहरी दिल्‍ली इलाके में 20 साल की अंजलि की मौत हो गई थी। निधि मामले में इकलौती चश्‍मदीद गवाह है। ऐसे में उसके बयान के काफी मायने हैं। निधि के बयान ने मामले को नया मोड़ दे दिया है। उसके बयान के साथ सीआरपीसी की कुछ धाराओं का भी जिक्र होने लगा है। इनमें 164 और 161 शामिल हैं। निधि के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए हैं। सीआरपीसी की धारा 161 के तहत भी गवाहों का बयान दर्ज किया जाता है। आखिर इन दोनों धाराओं में क्‍या फर्क होता है? 164 के तहत कैसे बयान दर्ज किए जाते हैं? इसके कितने मायने होते हैं? आइए, यहां इसे समझने की कोशिश करते हैं।

सीआरपीसी की धारा 164 क्‍या है?
इस धारा के तहत इकबालिया बयान दर्ज किया जाता है। कोई मेट्रोपॉलिटन मजिस्‍ट्रेट या जूडिशियल मजिस्‍ट्रेट इन्‍हें दर्ज करा सकता है। बयान दर्ज कराने से पहले मजिस्‍ट्रेट बताते हैं कि व्‍यक्ति के लिए ऐसा इकबालिया बयान दर्ज कराना अनिवार्य नहीं हैं। यह पूरी तरह से उस व्‍यक्ति पर निर्भर करता है कि वह बयान दर्ज कराए या नहीं। मजिस्‍ट्रेट बताते हैं कि व्‍यक्ति का बयान साक्ष्य के तौर पर इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

164 के तहत दर्ज बयान की क्‍या है अहमियत?
बेशक, 164 के तहत दर्ज बयान की अहमियत है। लेकिन, इन्‍हें ठोस सबूत नहीं माना जाता है। सिर्फ पुष्टि के लिए इन्‍हें इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इस बारे में हाल में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला आया था। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल में हत्या के आरोपी की दोषसिद्धि के ऑर्डर को रद्द कर दिया था। अदालत ने यह देखने के बाद इसे रद्द किया था कि निचली कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज गवाहों के बयान को चिकित्सा साक्ष्य के साथ पुष्टि करने में गुमराह किया गया था। जबकि असल में सभी स्वतंत्र गवाह पक्षद्रोही हो गए थे। उसने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान असली सबूत नहीं हैं। उनका इस्‍तेमाल सिर्फ एक गवाह के बयान की पुष्टि के लिए किया जा सकता है।

161 के तहत दर्ज बयानों से क्‍या फर्क है?
चश्‍मदीद गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत भी दर्ज होते हैं। फर्क यह है कि इसमें बयान पुलिस दर्ज करती है। जांच करने वाले कोई अधिकृत पुलिस अधिकारी ऐसा करता है। ऐसे व्‍यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह मामले की जानकारी के साथ सबकुछ सच-सच बता रहा है। अधिकृत पुलिस अधिकारी ऐसे व्‍यक्ति से लिखित में भी अपना बयान देने के लिए कह सकते हैं।

निधि के बयान से कैसे उलझा है मामला?
निधि ने जो पक्ष रखा है, वह खुद सवालों के घेरे में आ गया है। उसने अंजलि और घटना के बारे में कई दावे किए हैं। निधि ने कहा है कि अंजलि नशे में थी। उसने स्कूटी चलाने की जिद की थी। इसके उलट अंजलि की ऑटोप्सी रिपोर्ट में शराब की पुष्टि नहीं हुई है। निधि का कहना है कि हादसा रात 2 से 3 बजे के बीच हुआ था। साथ ही बोला है कि अंजलि को बचाने का उसने बहुत किया। आरोपियों ने उसके ऊपर से कार चलाने की भी कोशिश की। हालांकि, सीसीटीवी में दिख रहा है कि निधि रात 1.37 बजे घर पहुंची थी। वैसे सीसीटीवी फुटेज के समय को लेकर शंका है।