वॉशिंगटन: हाल ही में के बीच एक अहम सैन्य समझौता हुआ है। इस समझौते के साथ ही इनके सैन्य संबंध और मजबूत हो गए। लेकिन इन सैन्य संबंधों का एक काला सच भी है जिसके बारे में कोई नहीं जानता। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस काले सच को सामने लाया गया है। अखबार के मुताबिक कोरियाई युद्ध के दौरान दक्षिण कोरियाई सैनिकों के लिए ‘स्पेशल कम्फर्ट वीमेन यूनिट्स’ और बनाई गई थी। अमेरिकी नेतृत्व वाली संयुक्त राष्ट्र सेना के लिए ‘आराम स्टेशन’ के तौर पर थे। युद्ध के बाद के कई साल बाद इन आराम स्टेशनों को प्रयोग किया गया। यहां पर दक्षिण कोरियाई महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाकर भेजा जाता। द्वितीय विश्व युद्ध से जारी शोषण ये आराम स्टेशन डोंगडचियन या कैंप टाउन में बने हुए थे। सन् 1977 में चो सून-ओके नामक एक महिला का तीन लोगों ने अपहरण कर लिया था तब उनकी उम्र 17 साल थी। इसके बाद उन्हें सियोल के उत्तर में स्थित एक कस्बे डोंगडचियन में दलाल को बेच दिया। अगले पांच साल उन्होंने अपने दलाल की निगरानी में बिताए। उन्हें सेक्स वर्क के सिलसिले में पास के एक कस्बे में भेजा जाता था जहां पर अमेरिकी सैनिक उनके ग्राहक थे। इन्हें ‘कम्फर्ट वीमेन’ के तौर पर जाना गया। ये वो महिलाएं थीं जो आमतौर पर कोरियाई और एशिया के दूसरे देशों से थीं। इन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने यौन गुलामी के लिए मजबूर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार सन् 1945 में जापान के औपनिवेशिक शासन के समाप्त होने के लंबे समय बाद तक दक्षिण कोरिया में महिलाओं का यौन शोषण जारी रहा। वहां की सरकार ने भी इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया था। पिछले साल सितंबर में, ऐसी 100 महिलाओं ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की जब दक्षिण कोरियाई सुप्रीम कोर्ट ने उनके लिए मुआवजे का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि दक्षिण कोरिया की सरकार इसके लिए दोषी है। कोर्ट का कहना था कि सरकार ने अमेरिका के साथ अपने सैन्य गठबंधन को बनाए रखने और अमेरिकी डॉलर की लालच में वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित किया। कोर्ट ने इसके अलावा सरकार को ‘व्यवस्थित और हिंसक’ तरीके से महिलाओं को हिरासत में लेने और उन्हें सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियों के इलाज के लिए मजबूर करने के लिए भी दोषी ठहराया। अमेरिका तक जाएगा मामला! पीड़ितों का लक्ष्य अब अपने मामले को अमेरिका तक लेकर जाना है। पार्क ग्यून-ए को सन् 1975 में एक दलाल को बेच दिया गया था। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 16 साल थी। उन्हें याद है कि कितनी बेदर्दी से पीटा जाता था। उनकी मानें तो अमेरिका के लोगों को भी यह जानने की जरूरत है कि उनके कुछ सैनिकों ने हमारे साथ क्या किया। उन्होंने कहा, ‘हमारे देश ने एक गठबंधन में अमेरिका के साथ हाथ मिलाया और हम जानते थे कि उसके सैनिक हमारी मदद करने के लिए यहां थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वे हमारे लिए जो चाहें कर सकते थे।’