लाहौर: ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में कभी शांति कायम नहीं रह सकती है। तीन बार तख्तापलट देखने वाले इस मुल्क में अब एक बार फिर से पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी देने की मांग उठने लगी है। एक सांसद की इस मांग ने पाकिस्तान के मामलों के जानकारों को वह दौर याद दिला दिया है जब पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी गई थी। भुट्टो की फांसी इस देश का वह काला इतिहास है जिसका जिक्र करने से हर कोई बचता है। लेकिन हालात और इतिहास फिर से उसी मोड़ पर पहुंच गया है जहां पर भुट्टो और इमरान की तुलना की जाने लगी है। सांसद की मांग, इमरान पर केस पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में विपक्ष के नेता राजा रियाज अहमद खान ने सोमवार को एक अजीबो-गरीब मांग कर डाली। उन्होंने इमरान को जमानत देने वाले कोर्ट के फैसलों की आलोचना तो की ही, साथ ही साथ पूर्व पीएम को सबके सामने फांसी देने की मांग कर दी। उनके शब्द कुछ इस तरह से थे, ‘इमरान खान को सबके सामने फांसी पर लटका देना चाहिए। लेकिन अदालतें उनका ऐसा स्वागत कर रही हैं जैसे कि वह उनके दामाद हैं।’ इस मांग से अलग पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के मुखिया इमरान पर पाकिस्तान आर्मी एक्ट के सेक्शन 59, 60 के तहत केस भी दर्ज कर दिया गया है। इस केस का ट्रायल मिलिट्री कोर्ट में होगा। इस एक्ट के तहत दर्ज केस में दोषी साबित होने पर या तो मौत की सजा मिलती है या फिर उम्र कैद होती है। इमरान की गिरफ्तारी से बवाल पिछले हफ्ते जब इस्लामाबाद हाई कोर्ट से पूर्व पीएम इमरान खान को गिरफ्तार किया गया तो उनके समर्थक उबल पड़े। लाहौर, कराची, रावलपिंडी, पेशावर और देश के हर हिस्से में उपद्रव की स्थिति थी। सेना पर भी हमले जारी थे। रावलपिंडी में सेना मुख्यालय में तोड़फोड़ की गई और लाहौर में कोर कमांडर के घर को भी जला दिया गया। ऐसा लगने लगा था कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है। सन् 1970 के दशक के अंत में भी यही हालात थे। उस समय पाकिस्तान आर्मी के मुखिया के तौर पर जनरल जिया उल-हक ने कमान संभाली थी। जनरल बनते ही तत्कालीन पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो, जिया की आंख में चुभने लगे थे। भुट्टो का खतरनाक फैसला एक मार्च 1976 को भूट्टो ने एक ऐसा फैसला लिया जिसके बाद थ्री स्टार लेफ्टिनेंट जनरल जिया आर्मी चीफ बन गए। जिया अब एक वन स्टार रैंक आर्मी ऑफिसर थे जिनके लिए भुट्टो ने छह सीनियर ऑफिसर्स को नजरअंदाज कर दिया था। उनकी नियुक्ति ने जमकर विवाद पैदा किया। भुट्टो को लगता था कि जिया एक कट्टर धार्मिक जनरल हैं और एक ऐसे आर्मी ऑफिसर हैं जिसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई। जिया को भुट्टो और उनकी सरकार की कमजोरी पता लग गई थी। भुट्टो के साथ धोखा! जिया पर भुट्टो आंख बंद करके भरोसा करते थे। इसका ही फायदा जनरल ने उठाया और पांच जुलाई 1977 को देश में मार्शल लॉ लगा दिया। यहां से उनका शासन शुरू हो गया। भुट्टो अक्सर जिया को ‘मंकी जनरल’ कहते थे। जिया का कद और उनके चेहरे की वजह से उन्हें यह नाम भुट्टो ने दिया था। सेना प्रमुख बननने के एक साल बाद ही जिया ने सारी आशंकाओं को सच साबित कर दिया था। पांच जुलाई 1977 को देश में तख्तापलट हो गया। भुट्टो के पसंदीदा आर्मी चीफ जनरल जिया-उल-हक ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया था। जनरल जिया ने भुट्टो को गिरफ्तार करके जेल में डलवा दिया था। इसके बाद 18 दिसंबर 1978 को भुट्टो को हत्या का दोषी करार दिया गया। चार अप्रैल 1979 को भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। पूर्व पीएम को मिली फांसी आज के हालातों को अगर देखा जाए तो इमरान खुद सह बात कह चुके हैं कि जनरल आसिम मुनीर उनसे दुश्मनी निकाल रहे हैं। इमरान और जनरल मुनीर के बीच दुश्मनी कोई नई बात नहीं है। उनके बीच साल 2019 से ही उनके बीच में तनाव है। अक्टूबर 2018 में जनरल मुनीर को आईएसआई चीफ बनाया गया था। लेकिन जून 2019 में ही उन्हें इस पद से हटा दिया गया। उस समय इमरान देश के प्रधानमंत्री थे। आज भी हालात कुछ-कुछ वैसे ही हैं। इमरान का भविष्य क्या होगा यह तो वक्त ही तय करेगा। लेकिन दुनिया को आज भी याद है कि कैसे इस मुल्क में एक पूर्व पीएम को अपनी बेगुनाही साबित किए बिना सूली पर चढ़ा दिया गया था।