1990 में बेटियों ने जीता मेंटीनेंस का केस
नौकरी मिलने के कुछ दिनों बाद रंजन ने एक तीसरी बेटी को जन्म दिया। तीनों बेटियों को छोड़कर वह एक मुस्लिम शख्स के साथ जाकर रहने लगी। महिला की तीनों बेटियों की देखभाल उनके पैतृक परिवार ने की। 1990 में, तीनों बेटियों ने परित्याग के आधार पर रंजन पर रखरखाव के लिए मुकदमा दायर किया और मुकदमा जीत लिया।
1995 में रंजन ने अपनाया इस्लाम
1995 में रंजन ने इस्लाम धर्म अपनाना लिया और उसके बाद मुस्लिम व्यक्ति से शादी कर ली। रंजन ने अपने सर्विस रिकॉर्ड में भी अपना नाम बदलकर रेहाना मालेक रख लिया। दंपति को बाद में एक बेटा हुआ। रंजन उर्फ रेहाना ने सर्विस रेकॉर्ड में अपने इसी बेटे को नॉमिनी बनाया।
2009 में बेटियों ने दायर किया केस
2009 में रंजन के निधन के बाद, उनकी तीन बेटियों ने अपनी मां की भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, बीमा, अवकाश नकदीकरण और अन्य लाभों पर अपना अधिकार जताते हुए शहर के सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया। उनके दावे को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि यदि मृतक मुस्लिम थी, तो उसके वर्ग I के उत्तराधिकारी हिंदू नहीं हो सकते थे।
हाई कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
अदालत ने नयना फिरोजखान पठान उर्फ नसीम फिरोजखान पठान मामले में गुजरात हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में गया था, ‘सभी मुसलमान, मोहम्मदन कानून के हिसाब के शासित होते हैं। भले ही वे इस्लाम में परिवर्तित हो गए हों।’ अदालत ने फैसला सुनाया कि हिंदू विरासत कानूनों के अनुसार भी बेटियां अपनी मुस्लिम मां से कोई अधिकार पाने की हकदार नहीं हैं।