इस्लामाबाद: पाकिस्तान इस समय बड़ी मुश्किल में है। देश इस समय सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है और आगे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। पहले से ही हालात खराब थे और उस पर से पिछले साल बाढ़ आ गई जिसने स्थिति को और बिगाड़ दिया। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) की तरफ से जो बेलआउट पैकेज मिलेगा, वह भी इसके लिए बहुत कम है। देश का विदेशी मुद्राभंडार एकदम नीचे जा चुका है और अब ऐसे में इसके दिवालिया होने का खतरा भी बढ़ गया है। लेकिन अगर यह देश दिवालिया हो गया तो फिर क्या होगा? देश की स्थिति कैसी होगी और फिर इसका भविष्य कैसा होगा? देश पर खतरा कितना बड़ा न्यूयॉर्क स्थित ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने मंगलवार को पाकिस्तान की डिफॉल्ट रेटिंग औरे गिरा दी है। अब इस वजह से देश पर नीतिगत खतरा बढ़ गया है। रेटिंग गिरने की वजह से चलनिधि भी मुश्किल में आ गई है। रेटिंग में गिरावट की वजह से फंडिंग पर भी खतरा है। फिच का कहना है कि विदेशी मुद्राभंडार बहुत ही नाजुक स्तर पर है। फिच ने जो बयान जारी किया है उसमें कहा गया है, ‘हमें उम्मीद है कि यह विदेशी मुद्राभंडार कम ही रहने वाला है। हालांकि वित्तीय वर्ष 2023 में थोड़े सुधार की भी गुंजाइश है।’ फिच ने कहा है कि पाकिस्तान ने सफलतापूर्वक आईएमएफ के प्रोग्राम का नौंवा रिव्यू पूरा कर लिया है। मगर रेटिंग में कमी आना फंडिंग को जारी रखने और चुनावों पर संकट को भी दर्शाता है। एजेंसी का मानना है कि दिवालिया होना या फिर कर्ज पुर्नगठन असली वास्तविकता है। कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान पाकिस्तान इस समय कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। ऐसे में अगर वह कंगाल या दिवालिया हो जाता है तो फिर वह इस कर्ज को चुकाने में असमर्थ होगा। पाकिस्तान के अखबार डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य शब्दों में किसी भी देश जैसे पाकिस्तान का कंगाल होने का मतलब है जोखिम के साथ वाणिज्यिक ऋण की अदायगी न हो पाना। द्विपक्षीय कर्ज को पुनर्वित्त किया जा सकता है, जबकि बहुपक्षीय ऋण को मैच्योर होने में काफी समय लगता है। इससे वाणिज्यिक ऋण किसी देश की कंगाली का पहला निर्धारक बन जाते हैं। अगर पाकिस्तान का विदेशी मुद्राभंडार ऐसे स्तर पर पहुंच गया जहां यह अपने ही कर्ज पर दिवालिया हो जाए तो फिर केंद्रीय बैंक कर्ज अदा करने और सेवाओं के लिए पेमेंट करने से मना कर सकता है। नहीं खरीद पाएगा कोई सामान पाकिस्तान में डॉलर का अभाव है और अगर डॉलर खत्म हो जाता है तो फिर कोई सामान आयात नहीं हो पाएगा। ऐसे में अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी और देश में महंगाई उस स्तर पर होगी जहां पर आम आदमी का जीना ही मुश्किल हो जाएगा। अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी तो फिर उद्योगों का नुकसान होगा। इसकी वजह से लोगों की नौकरियां जाएंगी और कुछ के पास तो खर्च करने के लिए पैसे ही नहीं होंगे। अर्थशास्त्री ऐसी स्थिति को महंगाई से पैदा होने वाली मंदी कहते हैं। धीमी तरक्की और बेरोजगारी के अलावा महंगाई की वजह से ये हालात पैदा होते हैं। इस्लामाबाद स्थित अर्थशास्त्री असद एजाज के मुताबिक थोड़े से अंतर से भी कंगाल होने से बचना वास्तव में डिफॉल्ट करने से बहुत अलग है क्योंकि आईएमएफ जैसे संगठन जब कुछ कैश देते हैं तो फिर सारे काम चालू रह सकते हैं।