मैंने कभी आपा नहीं खोया… वो शख्‍स जिसने फेर दिया बिड़ला और अंबानी की योजना पर पानी, लेकिन सम्‍मान बनाए रखा!

नई दिल्‍ली: के पीछे हमेशा एक शख्‍स का नाम आता है। वह हैं अनिल मणिभाई नाइक। उन्‍होंने 1993 में एक साहसिक कदम उठाया। इसने कंपनी के भविष्य को नया रूप दिया। इंजीनियरिंग, प्रोजेक्ट कंस्‍ट्रक्‍शन और खरीद जैसे वर्टिकल जोड़कर नाइक ने एलएंडटी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। ऐसा करने के चार साल के भीतर एलएंडटी ने 12 में से सात स्वच्छ ईंधन टेंडर हासिल किए। यह एक अहम मील का पत्थर था। आज एलएंडटी ग्रुप एक ग्‍लोबल पावर के रूप में खड़ा है। इसकी परियोजनाएं संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, नीदरलैंड, अल्जीरिया और ब्रिटेन जैसे देशों में फैली हुई हैं। नाइक के नेतृत्व ने एलएंडटी को एक प्रमुख भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी के रूप में खड़ा किया है। यह इंजीनियरिंग, निर्माण और प्रौद्योगिकी में अपनी उत्कृष्टता के लिए जानी जाती है। एक वह भी समय था जब इस कंपनी को और दोनों ने टेकओवर करने की कोशिश की थी। लेकिन, नाइक ने अंबानी और बिड़ला की योजनाओं पर पानी फेर दिया था। हालांकि, उनके मन में इससे दोनों के प्रति सम्‍मान कम नहीं हुआ। नाइक मानते हैं कि दोनों अपना काम कर रहे थे और वह अपना। जून‍ियर इंजीन‍ियर के तौर पर कंपनी से जुड़े थे1965 में एक जूनियर इंजीनियर के रूप में नाइक ने एलएंडटी में शुरुआत की थी। कॉर्पोरेट सीढ़ी चढ़कर वह 1999 में सीईओ, 2003 में चेयरमैन, 2017 में ग्रुप चेयरमैन और आखिरकार 2023 में चेयरमैन एमेरिटस बने। उनके नेतृत्व में एलएंडटी इंजीनियरिंग से लेकर आईटी और वित्तीय सेवाओं तक में फैल गई। 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में नाइक को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। तब धीरूभाई अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला ने एलएंडटी पर अधिग्रहण का प्रयास किया। हालांकि, नाइक की रणनीतिक समझ और दृढ़ संकल्प ने इन प्रयासों को नाकाम कर दिया।दो साल तक बोर्ड में हुई लड़ाई नाइक की प्रबंधन शैली और रणनीति बिल्कुल अलग थी। वह साहसी थे। लेकिन, दांव-पेंच से उनका लेनादेना नहीं था। साल 2003 में वह लम्‍हा आया जब उन्‍होंने बिड़ला से हाथ मिलाया। वह अपनी सीट से उठे और नाइक भी। नाइक कहते हैं, ‘चाहे वह मुकेश अंबानी हों या उनके पिता या फिर कुमार बिड़ला, मैंने कभी अपना आपा नहीं खोया। वास्तव में, जब मैं एलएंडटी बोर्डरूम में दो साल से अधिक समय से उनसे लड़ रहा था तब भी मैं उनके साथ विनम्र था। हममें से हर कोई अपना काम कर रहा था। आपा खोने का मतलब अपनी कमजोरी को उजागर करना होता है। यह बात मैंने अपने माता-पिता से सीखी थी।’अंत में सभी की जीत हुई। बिड़ला को वह हासिल करने में कामयाबी मिली जिसकी उन्हें तलाश थी। सीमेंट कारोबार-जिससे एलएंडटी वैसे भी बाहर निकलने की योजना बना रही थी। लेकिन इस प्रक्रिया में इसने एलएंडटी एम्प्लॉइज ट्रस्ट के गठन को भी जन्म दिया। इसके पास अब कंपनी में 14% हिस्सेदारी है। यह कंपनी को संभावित अधिग्रहण से सुरक्षित रखता है। इससे कई कर्मचारी लाभान्वित होते हैं। नाइक के दिमाग की उपज ने इस प्रक्रिया में कई कर्मचारियों को करोड़पति बनाया है। लगभग 20 साल पहले 33 रुपये का एक शेयर अब 3600 रुपये प्रति शेयर के ऊपर है। यह कई गुना की बढ़ोतरी है।