पटना: विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A का आरंभ तो अच्छा हुआ, लेकिन अंत के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे। पटना और बेंगलुरु की दो बैठकों के बाद तीसरी बैठक मुंबई में होने वाली है। तीसरी बैठक के पहले तीन बार बैठक टल चुकी है। पहली बार पटना बैठक टली तो दूसरी बार हिमाचल प्रदेश में तय तिथि टाली गई। तिथि ही नहीं, बल्कि स्थान परिवर्तन भी हुआ और दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई। तीसरी बैठक मुंबई में प्रस्तावित थी, पर उसकी तारीख भी एक बार टल चुकी है। अब 31 अगस्त और 1 सितंबर को बैठक होनी है। सब ठीक रहा तो पहले दिन विपक्षी नेता डिनर पर जुटेंगे और अगले दिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को परास्त करने की रणनीति बनाएंगे। हालांकि हालात ऐसे दिख रहे हैं कि किसी को भी विपक्ष की मंशा की कामयाबी में संदेह होने लगा है। महाराष्ट्र की महाअघाड़ी में ‘महाखटपट’महाराष्ट्र की राजनीति में महाअघाड़ी की एकजुटता काफी मायने रखती है। एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना महाअघाड़ी के महत्वपूर्ण किरदार हैं। तीनों में दो दल विपक्षी गठजोड़ के पहले ही टूट का शिकार हो चुके हैं। शिवसेना को तो एकनाथ शिंदे ने विपक्षी एकता की सुगबुगाहट के काफी पहले ही कमजोर कर दिया था। शिवसेना के विधायकों का बड़ा हिस्सा तोड़ कर भाजपा के साथ शिंदे ने सरकार बना ली और खुद सीएम हो गये। इस झटके से उद्धव अभी उबरे भी नहीं थे कि उधर अजित पवार ने एनसीपी के अधिकतर विधायकों को तोड़ कर अपने सियासी गुरु और एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को अकेला छोड़ दिया। अजित अब शिंदे सरकार में डेप्युटी सीएम हैं। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अजित पवार अब अपने चाचा शरद पवार को भी एनडीए फोल्डर में लाने की जुगत में जुट गए हैं। अजित और शरद की कभी ओपन तो कभी गोपनीय बैठक भी होती रही हैं। शरद पवार खुद स्वीकार करते हैं कि उन्हें एनडीए में लाने की कोशिशें हो रही हैं।शरद पवार ने खुद सस्पेंस पैदा किया हैअजित पवार की शरद पवार के साथ बैठक, फिर उनकी यह सफाई कि उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन वे भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। इस बीच कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के हवाले से निकली खबर कि शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में मंत्री बनाने का ऑफर मिला है। इन सबके बीच शरद पवार की सफाई के बावजूद सस्पेंस तो पैदा हो ही गया है। महाराष्ट्र में सियासी उठापटक के बीच ऐसी खबरों से संदेह स्वाभाविक है। शरद ने साफ किया है कि केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनने का कोई ऑफर नहीं मिला है। ऐसी खबरें सच नहीं हैं। जब देश में माहौल पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ है तो वे बीजेपी के साथ जाने की सोच भी नहीं सकते। बहरहाल, शरद की सफाई इसलिए भी किसी के गले नहीं उतर रही कि अजित पवार और शरद पवार की पुणे में गोपनीय बैठक हुई। पहले तो यह कोशिश हुई कि इस बारे में किसी को भनक न लगे। बाद में दोनों ने एक ही बात दोहराई कि मुलाकात में कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। सवाल उठता है कि जब सामान्य मुलाकात थी तो इसके लिए पुणे में एक उद्योगपति के घर पर जुटने की क्या जरूरत थी। यह तो मुंबई में भी हो सकती थी।दिल्ली में कांग्रेस की हर सीट पर तैयारीविपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A में फिलवक्त कांग्रेस लीड रोल में है। उसकी ओर साथी दल आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा भी था साथी दलों के लिए कांग्रेस लचीला रुख अपनाएगी। पर, बुधवार को दिल्ली इकाई के साथ चुनावी तैयारियों को लेकर हुई बैठक में कांग्रेस का रुख सामने आया। बैठक से निकलीं अलका लांबा और कुछ अन्य नेताओं ने एक बयान देकर सबको चौंका दिया। बताया गया कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर तैयारी का निर्देश दिया है। दिल्ली सेवा बिल पास होने के बाद राहुल गांधी ने भी कहा था कि इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी का साथ सैद्धांतिक था। उसे AAP को कांग्रेस के समर्थन के रूप में नहीं देखा जा सकता है। राहुल के इस बयान से तो यही लगता है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी से गठबंधन को लेकर किसी हड़बड़ी में नहीं है।बंगाल में ममता को PM बनाने की मांगबंगाल की बात करें तो टीएमसी नेता और सीएम ममता बनर्जी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ खड़ी तो दिखती हैं, लेकिन उन्हें बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों से भाजपा जैसी ही चिढ़ है। इसलिए लोकसभा चुनाव तक उनके कितने रंग बदलते हैं, देखना दिलचस्प होगा। अभी ही उनकी पार्टी टीएमसी ने ममता को प्रधानमंत्री बनाने की मांग शुरू कर दी है। सीट बंटवारे की समस्या तो अभी बाकी ही है। ममता विपक्षी एकता के मंच पर भले साथ दिखती हैं, लेकिन बंगाल में उनके लिए इसका कोई मतलब नहीं है। उनकी शर्तों पर कांग्रेस और वाम दल टिकेंगे, यह समय पर पता चलेगा। विपक्षी एकता की बतकही के बीच बंगाल की एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ कांग्रेस-वाम दलों का साझा उम्मीदवार है तो टीएमसी ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है। बंगाल में पंचायत चुनाव भी विपक्षी एकता की चर्चा के बीच ही हुए। कांग्रेस और लेफ्ट के कार्यकर्ताओं के साथ टीएमसी समर्थकों ने जैसा सलूक किया, वह भी सबने देखा। ऐसे में बंगाल में भी गठबंधन के कारगर साबित होने में संदेह दिखता है।विपक्षी एकता के अगुआ का ‘अटल’ प्रेमनीतीश कुमार के मन की बात तो उनके सिवा उनके अत्यंत करीबी भी नहीं जानते। वे विपक्षी एकता के भले ही जनक रहे हों, पर उन्हें भी अब लगने लगा है कि उनकी पूछ घट रही है। राहुल गांधी को वादा करने के बावजूद वे कांग्रेस कोटे से किसी को अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दे पाए तो इसके पीछे कोई तो कारण है। इतना ही नहीं, दिल्ली दौरे में वे विपक्षी नेताओं से हाल के दिनों में मिलते रहे हैं। इस बार दो दिन से दिल्ली में रहने के बावजूद न कांग्रेस के किसी नेता ने उनसे मिलने की जरूरत समझी और न उन्होंने। हां, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से उनके जन्मदिन पर वे जरूर मिले। नीतीश ने अपने एक काम से जरूर सबको चौंका दिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करने वे उनकी समाधि पर गए। मौत के पांच साल बाद पहली बार नीतीश कुमार के ‘अटल’ प्रेम ने विपक्षी नेताओं को जरूर चौंकाया है। खैर, आगे-आगे देखिए होता है क्या !