Supreme Court के फैसले से Eknath Shinde और Arvind Kejriwal कैसे हुए मजबूत? दोनों राज्यों की राजनीति पर क्या होगा असर?

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने आज महाराष्ट्र और दिल्ली से संबंधित दो बड़े महत्वपूर्ण फैसले दिये। इन दोनों ही फैसलों से राज्य सरकारों की स्थिति काफी मजबूत हुई है। लेकिन इन मामलों से जुड़े पक्ष अदालत के फैसले का अपने अपने हिसाब से अर्थ निकाल कर इसे अपनी जीत के रूप में दर्शा रहे हैं। इसलिए हम इस रिपोर्ट के माध्यम से आप तक अदालत के महाराष्ट्र और दिल्ली से संबंधित फैसलों की विस्तृत जानकारी तो लाए ही हैं साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए किसने क्या कहा। आइये सबसे पहले बात करते हैं महाराष्ट्र की।उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि न्यायालय ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इंकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरने और सामने आये राजनीतिक संकट से जुड़ी अनेक याचिकाओं पर सर्वसम्मति से अपने फैसले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला ‘अवैध’ था। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि चूंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना किये बिना इस्तीफा दे दिया था, इसलिए राज्यपाल ने सदन में सबसे बड़े दल भाजपा के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करके सही किया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भी भेज दिया।महाराष्ट्र के नेताओं की प्रतिक्रियाजैसे ही अदालत का यह फैसला सामने आया विभिन्न राजनीतिक दलों ने उसकी अपने अपने हिसाब से समीक्षा की। अदालत के फैसले से हालांकि महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार पर कोई खतरा नहीं पैदा हुआ लेकिन कुछ नैतिक प्रश्न जरूर उठ खड़े हुए हैं जिसके चलते उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा मांगा है लेकिन मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने मांग को खारिज कर दिया है। अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले ने लोकतंत्र में भरोसा बहाल कर दिया है। ब्रांद्रा स्थित अपने ‘मातोश्री’ बंगले में उद्धव ठाकरे ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘उन्होंने (शिंदे गुट के विधायकों ने) मेरी पार्टी और मेरे पिता की विरासत को धोखा दिया। तब मुख्यमंत्री पद से मेरा इस्तीफा देना भले ही कानूनी रूप से गलत हो सकता है, लेकिन मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया।’’ दूसरी ओर, अदालत के फैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मुंबई में स्थित अपने निवास स्थान के बाहर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जश्न मनाया। इसके बाद उन्होंने उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और कहा कि आम जनता के दिल की भावना, बालासाहेब ठाकरे के विचार, शिवसेना-भाजपा के विचारों और लोगों ने जो चुनाव में शासनादेश दिया यह उसकी विजय है। शिंदे ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे के विचारों को जिन्होंने प्रताड़ना दी उनको मुंहतोड़ जवाब आज के उच्च न्यायालय के निर्णय ने दिया है।इसे भी पढ़ें: Supreme Court के फैसले को केजरीवाल ने बताया ऐतिहासिक, बोले- अब दिल्ली में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल होगादूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि जो लोग सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर अटकलें लगाते हुए कहते थे कि हमारी सरकार जाएगी आज उन्हें जवाब मिल गया है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि नैतिकता की बात करना उद्धव ठाकरे को शोभा नहीं देता।दूसरी ओर, महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा है कि मैं सिर्फ संसदीय और विधायी परंपरा जानता हूं और उस हिसाब से मैंने तब जो कदम उठाए वह सोच-समझकर उठाए। उन्होंने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि जब इस्तीफा मेरे पास आ गया तो मैं क्या कहता कि मत दो इस्तीफा।वहीं महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने राज्य के राजनीतिक संकट पर अपने फैसले में विधायकों की अयोग्यता को लेकर उनके रुख को बरकरार रखा है। लंदन में मौजूद नार्वेकर ने एक स्थानीय समाचार चैनल से कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित 16 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने संबंधी याचिका पर फैसला करना विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार होगा।” उन्होंने कहा कि मैं लगातार इस बात को कह रहा हूं कि विधानसभा अध्यक्ष ही इस मामले में फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष से यह तय करने को कहा है कि विधायक दल का प्रतिनिधित्व कौन करता है- निर्वाचित प्रतिनिधि या राजनीतिक दल। नार्वेकर ने कहा कि अदालत ने पाया है कि इस बारे में फैसला केवल विधानसभा अध्यक्ष करेंगे।दिल्ली से जुड़ा मामला क्या है?बहरहाल, अब बात करते हैं दिल्ली की। आम आदमी पार्टी की सरकार को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषयों को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के पास विधायी तथा प्रशासकीय नियंत्रण है। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि नौकरशाहों पर एक निर्वाचित सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का ‘विशेष प्रकार का’ दर्जा है और उन्होंने न्यायाधीश अशोक भूषण के 2019 के उस फैसले से सहमति नहीं जतायी कि दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच सेवाओं पर प्रशासनिक नियंत्रण के विवादित मुद्दे पर अपने फैसले में कहा, ‘‘केंद्र की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के प्रतिकूल होगा…दिल्ली अन्य राज्यों की तरह ही है और उसकी भी एक चुनी हुई सरकार की व्यवस्था है।’’ हम आपको बता दें कि संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल रहे। पीठ ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के पास लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर अन्य सेवाओं पर विधायी तथा शासकीय शक्तियां हैं।’’प्रधान न्यायाधीश ने खचाखच भरे अदालत कक्ष में फैसला पढ़ते हुए कहा कि लोकतंत्र और संघवाद संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं। हम आपको यह भी बता दें कि आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर अधिकारियों को मंत्रियों को रिपोर्ट करने से रोका जाता है तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ता है। इसमें कहा गया है कि शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप में प्रशासन की वास्तविक शक्ति निर्वाचित सरकार के पास होनी चाहिए। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल प्रदेश की सरकार के विधायी दायरे से जुड़े मामलों के संबंध में दिल्ली सरकार के मंत्रियों की ‘‘सलाह मानने तथा उनके साथ सहयोग करने के लिए बाध्य हैं।’’ पीठ ने कहा कि जिन मामलों में केंद्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, उनमें केंद्र सरकार की शक्ति यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि शासन केंद्र सरकार के नियंत्रण में न चला जाए। दिल्ली सरकार की शक्तियों का ब्यौरा देते हुए अदालत ने कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं या संयुक्त कैडर जैसी सेवाओं पर विधायी तथा शासकीय शक्तियां दिल्ली सरकार के पास ही रहेगी।हम आपको याद दिला दें कि दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और शासकीय शक्तियों से जुड़े कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2015 में एक अधिसूचना जारी की थी कि उसके पास दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने इस अधिसूचना को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण का मुद्दा पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा था।दिल्ली सरकार की याचिका 14 फरवरी, 2019 के एक खंडित फैसले के बाद दायर की गयी जिसमें न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से सिफारिश की थी कि राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को अंतिम रूप से तय करने के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ गठित की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार का प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है, जबकि न्यायमूर्ति सीकरी के विचार इससे अलग थे। उन्होंने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष पदों (संयुक्त निदेशक और उससे ऊपर) में अधिकारियों का स्थानांतरण या तैनाती केवल केंद्र सरकार द्वारा की जा सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर मतभेद के मामले में उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2018 के फैसले में सर्वसम्मति से माना था कि दिल्ली के उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह मानने के लिए बाध्य हैं और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रतिक्रियाबहरहाल, उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस आदेश को ‘‘लोकतंत्र की जीत’’ बताया और उनकी आम आदमी पार्टी ने कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला देशभर में राज्य सरकारों को अपदस्थ करने के अभियान पर एक ‘‘जोरदार तमाचा’’ है। केजरीवाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है वो दिल्ली की जनता के सहयोग का नतीजा है। अब हमें दिल्ली के लोगों को रिस्पॉन्सिव प्रशासन देना है। उन्होंने कहा कि अगले कुछ दिनों में दिल्ली में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल होगा। केजरीवाल ने कहा कि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने पिछले डेढ़ साल में जनता के काम रोके, ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित किया जाएगा और उन्हें अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा।