संपादकीय: राजनीतिक दलों की संपत्ति बढ़ी, कैसे आए पारदर्शिता

आठ राष्ट्रीय में पिछले एक साल के दौरान हुई बढ़ोतरी (और कमी) का जो ब्योरा असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने पेश किया है, उससे कई अहम ट्रेंड्स पता चलते हैं। साल 2021-22 में राजनीतिक दलों की संपत्ति के ग्राफ पर नजर डालें तो साल 2014 से ही केंद्र की सत्ता में बैठी सबसे ज्यादा बढ़ी है, हालांकि विपक्ष में होने के बावजूद कांग्रेस भी प्रतिशत में बढ़ोतरी के हिसाब से ज्यादा पीछे नहीं है। बीजेपी की संपत्ति अगर 2020-21 के 4,990 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में 6,046 करोड़ रुपये हुई और इस तरह 21.17 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई तो कांग्रेस भी 16 फीसदी की वृद्धि दर्ज करते हुए 691 करोड़ रुपये से 805.68 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। हालांकि सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी दल की संपत्ति में 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर का यह अंतर मौजूदा दौर में देश की राजनीति में उपलब्ध लेवल प्लेइंग फील्ड के बारे में बहुत कुछ कहता है।सच है कि चुनाव सिर्फ पैसे और सत्ता की ताकत से नहीं जीते जाते, लेकिन चुनावों में पैसा और उससे हासिल संसाधनों की अहम भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, इन दलों की संपत्ति के इस ब्योरे में दो और तथ्य महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि संपत्ति बढ़ाने के मामले में तृणमूल कांग्रेस इतनी आगे है कि उसकी किसी और दल से तुलना नहीं हो सकती। एक साल में उसकी संपत्ति करीब 182 करोड़ रुपये से बढ़कर 458.10 करोड़ रुपये हो गई, जो 151.70 फीसदी की आश्चर्यजनक वृद्धि है।दूसरा तथ्य यह कि BSP इकलौती ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी संपत्ति इस एक साल में बढ़ने के बजाय घटी है। यह 732.79 करोड़ से घटकर 690.71 करोड़ रुपये पर पहुंच गई, जो 5.74 फीसदी की कमी है। शायद पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी के अत्यधिक कमजोर प्रदर्शन से भी इसका कोई संबंध हो। मगर विभिन्न दलों की संपत्ति के इस ब्योरे को लेकर सबसे बड़ी बात यह है कि तमाम पार्टियों ने अपनी कमाई के बारे में खुद से जो तथ्य बताए हैं, वही सामने आया है। और सच यही है कि इन दलों ने पूरी कमाई नहीं बताई है।अगर इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों की बात करें जिन पर अपनी मुहर लगा चुका है तो उनके मुताबिक भी इन दलों को लिए गए लोन के स्रोत के साथ-साथ उन्हें चुकाने के लिए तय अवधि और इस दौरान दिए जाने वाले लोन के भी डीटेल्स देने चाहिए थे, जो किसी भी पार्टी ने नहीं दिए। जाहिर है राजनीतिक दलों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में अभी लंबा सफर तय करने की जरूरत है।