पहली हार के बाद दूसरे उपचुनाव में निर्विरोध कैसे जीत गई थीं डिंपल यादव, क्या राजनाथ ने दिया था साथ?

नई दिल्‍ली: मैनपुरी में आगामी उपचुनाव () सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है। इससे उत्‍तर प्रदेश की सियासत की दशा और दिशा तय होगी। इस चुनाव में यादव-मुस्लिम समीकरण के साथ यादव परिवार की साख की भी अग्निपरीक्षा है। मैनपुरी सीट यादव परिवार का गढ़ मानी जाती है। उपचुनाव में मुलायम की बहू और अखिलेश की पत्‍नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) मैदान में हैं। इसके लिए 5 दिसंबर को मतदान होगा। 8 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी।

अगर ये कहें कि चुनाव में डिंपल का रिकॉर्ड धुआंधार रहा है तो गलत होगा। डिंपल यादव के राजनीतिक जीवन का यह तीसरा उपचुनाव है। इनमें से अभी तक का स्‍कोर 1-1 है। यानी एक उपचुनाव वह हारी हैं। वहीं, दूसरा जीत चुकी हैं। हालांकि, जिस उपचुनाव में उन्‍होंने फतह का झंडा फहराया था, उस पर कई तरह के सवाल उठाए जाते हैं। इससे जुड़ा एक किस्‍सा दिलचस्‍प है। आशंका जताई जाती है कि इस चुनाव में डिंपल के लिए पूरी पिच तैयार की गई थी। कहा जाता है कि तब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जानबूझकर अपने ही कैंडिडेट के साथ खेल कर दिया था। उस समय राजनाथ सिंह बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे। यह चुनाव डिंपल यादव ने निर्विरोध जीता था। उनके सामने कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं था।

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव की पत्‍नी डिंपल 2009 में फिरोजाबाद से पहला उपचुनाव लड़ी थीं। अखिलेश के सीट छोड़ने के बाद यह खाली हुई थी। तब उनका सामना सपा से निकले राज बब्‍बर के साथ हुआ था। राज बब्‍बर ने यह चुनाव कांग्रेस के टिकट से लड़ा था। अपने पहले चुनाव में डिंपल को हार का स्‍वाद चखना पड़ा था। इसे बड़ा उलटफेर माना गया था। इसके बारे में लोगों को भी उम्‍मीद नहीं थी। जिस सीट से अखिलेश ने कुछ महीने पहले जीत हासिल की थी, वहां से डिंपल का चुनाव हारना वाकई चौंकाने वाला था।

कन्‍नौज से दूसरा उपचुनाव निर्विरोध जीतीं फिर 2012 में डिंपल कन्नौज से दूसरा उपचुनाव लड़ीं। इसमें वह निर्विरोध चुनी गईं। तब राजनाथ सिंह बीजेपी अध्यक्ष थे। उस वक्‍त यह सीट अखिलेश यादव ने खाली की थी। मुलायम सिंह बहू के दूसरा उपचुनाव हारने की आशंका से बहुत डरे हुए थे। लिहाजा, उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। उन्‍हें पता था कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उपचुनाव लड़ती नहीं है। ऐसे में मुलायम को उस तरफ से कोई खतरा नहीं था। एक छोटी पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे। उन दोनों को नामांकन वापस करवा दिया गया था। ले-देकर बीजेपी बची थी। इसमें पार्टी ने अपने ही कैंडिडेट के साथ ‘खेल’ कर दिया था। पार्टी ने अपने उम्मीदवार को लखनऊ में दिन के 11 बजे नामांकन का पर्चा दिया था। नॉमिनेशन के लिए बीजेपी कैंडिडेट को कन्नौज पहुंचना था। यह और बात है कि वह शाम 3 बजे की समयसीमा के अंदर नहीं पहुंच पाए।

बीजेपी ने यह बताया था कारण एक और कारण से इस ‘खेल’ की आशंका को बल मिला। कानपुर पहुंचने से पहले गंगा पुल पर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्‍होंने बताया कि बीजेपी कैंडिडेट नामांकन नहीं भर पाए हैं। साथ ही आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने बीजेपी के कैंडिडेट को जबरन रोक रखा है। इस तरह डिंपल यादव लोकसभा चुनाव निर्विरोध जीती थीं। उत्तर प्रदेश के इतिहास में यह इस तरह का दूसरा मौका था। इससे पहले 1952 में इलाहाबाद से पुरुषोत्तम दास टंडन पहली बार निर्विरोध लोकसभा चुनाव जीते थे।