हाईवे एक, काम अनेक… चीन का पसीना छुड़ाएगा अरुणाचल का यह प्रॉजेक्ट, तेजी से चल रहा काम

नई दिल्ली: भारत-चीन सीमा विवाद के बीच पूर्वोत्तर के राज्यों में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए भारत के सबसे मुश्किल प्रोजेक्ट्स में एक अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे का काम काफी तेजी से चल रहा है। हालांकि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के पास प्रोजेक्ट के समाप्त होने की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन सूत्रों ने कहा है कि यह एक रणनीतिक प्रोजेक्ट है, जिसके चलते इसका काम तेजी से चल रहा है। प्रोजेक्ट के कुछ हिस्सों का काम पूरा हो चुका है। दरअसल इस प्रोजेक्ट के तहत अरुणाचल प्रदेश से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पूरी तरह से एक हाईवे से जुड़ जाएगी। ऐसे में चीन की नापाक हरकतों पर नजर रखना आसान हो जाएगा।

क्यों खास है यह प्रोजेक्ट?
इसके प्रोजेक्ट के तहत भारत 2 हजार किमी. लंबी सड़क बना रहा है जो मैकमोहन रेखा के साथ-साथ चलती है, यह सड़क भूटान से सटे अरुणाचल प्रदेश के मागो से शुरू होगी और म्यांमार सीमा के पास विजयनगर में खत्म होने से पहले तवांग, अपर सुबनसिरी, टुटिंग, मेचुका, अपर सियांग, देबांग वैली, देसाली, चागलगाम, किबिथू, डोंग से होकर गुजरेगी। इस तरह अरुणाचल प्रदेश से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पूरी तरह से एक हाईवे से जुड़ जाएगी। इस प्रोजेक्ट पर अनुमानित 40,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के साथ ही अरुणाचल प्रदेश के पास तीन नेशनल हाईवे हो जाएंगे – फ्रंटियर हाईवे, ट्रांस-अरुणाचल हाईवे और ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर हाईवे।

भारतीय सेना को होगा काफी फायदा
सूत्रों ने कहा कि अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे सेना के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। सीमा पर सेना और आधुनिक उपकरणों की आवाजाही आसान होगी। सेना की तैनाती से संबंधित समस्याओं का भी समाधान हो जाएगा। यह प्रोजेक्ट पहली बार 2014 में चर्चा में आया जब कानून मंत्री किरेन रिजिजू गृह राज्य मंत्री थे और सीमा मामलों की देखरेख की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उसी साल गृह मंत्रालय ने MoRTH को एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा और इस पर काम शुरू हुआ। जब यह रिपोर्ट सामने आई कि इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री कार्यालय से मंजूरी मिल गई है, तो चीन ने 2014 में ही इस प्रोजेक्ट पर अपनी आपत्ति जता दी थी।

इस प्रोजेक्ट पर चीन को सख्त आपत्ति
इस प्रोजेक्ट को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने कहा था, ‘हमें उम्मीद है कि सीमा की समस्या के हल होने से पहले भारतीय पक्ष कोई ऐसी कार्रवाई नहीं करेगा जो संबंधित मुद्दे को और अधिक जटिल बना दे, ताकि सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता की वर्तमान स्थिति को बनाए रखा जा सके।’ उधर चीन की आपत्ति के बावजूद भारत अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम पर पूरा ध्यान देते हुए पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ा रहा है।

चीन की बढ़ जाएगी टेंशन
सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित हाईवे के अलावा चल रही अन्य परियोजनाएं एक घाटी से दूसरी घाटी में जाने की सेना की क्षमता को बढ़ा देगी। मौजूदा समय में सेना और नागरिक अरुणाचल के तवांग तक पहुंचने के लिए बालीपारा-चारिडुआर रोड (असम) का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि सर्दियों में सेला दर्रा बंद हो जाता है। इस प्रोजेक्ट के तहत लगभग 1.2 किमी सड़क भी बनाई जा रही है। इसके बाद चीन इस इलाके में यातायात की आवाजाही की निगरानी करने में सक्षम नहीं रह पाएगा। मौजूदा समय में सेला दर्रा पर चीन आसानी से अपनी नजर रख सकता हैं।