झारखंड में यूं ही नहीं जीत गए हेमंत सोरेन, ‘सात घोड़ों’ ने नाप डाली सत्ता की पथरीली डगर

नई दिल्ली : झारखंड में भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में जेल जा चुके झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता और राज्य के सीएम हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव में जीत का जोरदार परचम लहरा दिया। JMM, कांग्रेस, RJD और CPML जैसे दल I.N.D.I.A. गठबंधन के बैनर के तले लड़कर जीत को पिछले विधानसभा चुनावों से आगे ले गए। इन चुनावों में जहां एक ओर हेमंत का जलवा बरकरार दिखा और जमीन पर आदिवासी अस्मिता, मंइयां सम्मान योजना और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन फैक्टर काम करता दिखा। वहीं, बीजेपी की तरफ से घुसपैठ, जनसांख्यिकी में बदलाव और हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा काम नहीं करता दिखा। झारखंड में पहली बार किसी सरकार ने सत्ता विरोधी माहौल के बावजूद प्रचंड बहुमत से वापसी की। इसके लिए हेमंत सोरेन का साथ ‘सात घोड़ों’ यानी 7 फैक्टरों ने दिया। नीचे पढ़िए सातों फैक्टर एक के बाद एक… हेमंत-कल्पना बने बड़े फैक्टरझारखंड के चुनाव में CM हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन एक बड़े फैक्टर के तौर पर उभरे। जहां आदिवासियों में हेमंत सोरेन का जेल जाना मुद्दा बड़ा बनता दिखाई दिया, वहीं बीजेपी ने जोर-शोर में हेमंत सरकार को लेकर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। लोगों के बीच यह मुद्दा चर्चा में दिखा, लेकिन जमीन पर इसे लोगों ने खास महत्व नहीं दिया। इससे उलट JMM, बीजेपी नीत केंद्र सरकार के खिलाफ झारखंड की अनदेखी, उसके हक का पैसा न दिए जाने का मुद्दा उठाती रही। इस चुनाव में कल्पना एक बड़ा फैक्टर बन कर सामने आईं। उन्होंने पूरे चुनाव में 150 से ज्यादा रैलियां, सभाएं और रोडशो किए। कल्पना के प्रति युवाओं और महिलाओं में जबरदस्त क्रेज दिखा।आदिवासी अस्मिता का मुद्दाबीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठ, आबादी में बदलाव का मुद्दा उठाते हुए उसे आदिवासी अस्मिता से जोड़ने की कोशिश की। ‘रोटी, बेटी व माटी’ का नारा दिया। बीजेपी ने संथाल परगना इलाके में कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठ के जरिए कहा था कि घुसपैठिए उनकी रोटी यानी रोजगार, उनकी बेटियों से शादी कर बेटी और उनकी जमीन यानी माटी छीन रहे हैं, लेकिन आदिवासियों ने उनके इस नैरेटिव का नकार दिया। हालांकि, बीजेपी ने कोलहान के टाइगर कहे जाने वाले संथाल नेता चंपई सोरेन और सीता सोरेन को अपने खेमे में लाकर आदिवासियों को एक संदेश देने की कोशिश की थी, लेकिन बीजेपी की रघुबर दास सरकार के समय में आदिवासियों से जुड़े कानून को लेकर आदिवासी तबके में मौजूद डर-आशंका ने उन्हें बीजेपी पर भरोसा करने से कहीं न कहीं रोका। वहीं, बीजेपी ने संथाल परगना को अलग करने का शिगूफा भी छोड़ा, जिसे आदिवासी तबके ने नकार दिया। आदिवासियों द्वारा बीजेपी को नकारे जाने का ही असर था कि आदिवासी बहुल कोल्हान-संथाल दोनों ही इलाके में बीजेपी को करारी हार देखनी पड़ी। राज्य की आदिवासियों के आरक्षित 28 सीटों में से 27 सीटों पर I.N.D.I.A. गठबंधन जीता।‘मंइयां सम्मान’ का असरजमीन पर हेमंत सोरेन सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी काम करती दिखीं। I.N.D.I.A.गठबंधन की कामयाबी की कहानी में मंइयां सम्मान का बड़ा योगदान है। इसकी तीन किस्तें पहले रिलीज हो चुकी थीं, जबकि चौथी किस्त भी चुनाव के दौरान पहुंची। JMM ने कहा कि अगर दोबारा सरकार आती है तो 1,000 प्रति महीने की राशि को 25,00 किया जाएगा। इसी तरह से बिजली बिल माफ योजना ने भी वापसी में बड़ी मदद की।बीजेपी का हर वार खालीझारखंड में बीजेपी के ज्यादातर वार खाली गए। बांग्लादेशी घुसैपठ का मुद्दा, जनसांख्यिकी में बदलाव का मुद्दा, कंटेंगे तो बंटेंगे का मुद्दा- इससे पार्टी को नुकसान हुआ। भले ही इस कोशिश में हिंदुओं में ध्रुवीकरण हुआ, लेकिन उसके सामने आदिवासियों और मुस्लिम ने जिस तरह साथ वोट किया, उसने रणनीति को फेल कर दिया। हालांकि, बीजेपी ने यहां बड़े पैमाने पर अपने नेताओं को उतारा। UP के CM योगी से लेकर असम के CM हिमंता बिस्वा सरमा, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की रणनीति, उनके बनाए आक्रामक नैरेटिव ने झारखंड की सरल जनता को अपने भीतर सिमटने और चुपचान अपना फैसला सुनाने पर मजबूर कर दिया। इसी का नतीजा था कि संथाल परगना में 18 सीटों में से बीजेपी सिर्फ एक सीट निकाल पाई। कभी बीजेपी का मजबूत किला रहे कोल्हान में भी शहरी सीटों को छोड़ दें तो बीजेपी को खास सफलता नहीं मिली।कांग्रेस ने बचाई इज्जतचुनाव से ऐन पहले प्रदेश अध्यक्ष का बदलाव होना जैसे कई विपरीत हालातों के बावजूद कांग्रेस को अपना पिछला प्रदर्शन बनाए रखने में मदद की। कांग्रेस ने पिछली बार 16 सीटें जीती थीं, इस बार भी वह 16 सीट निकालने में कामयाब रही। हालांकि, कई सीटों पर कांग्रेस के स्थानीय विधायकों के खिलाफ माहौल दिखा, जिसके चलते उसे झरिया, जमशेदपुर वेस्ट जैसी कुछ सीटें गंवानी पड़ीं। कांग्रेस ने उसकी भरपाई दूसरी सीटें निकालकर कर ली।यूथ में जयराम महतो फैक्टरबीजेपी की करारी हार के पीछे एक बड़ी वजह उसकी सहयोगी आजसू का खराब प्रदर्शन भी रहा। आजसू के निराशाजनक प्रदर्शन की एक बड़ी वजह बने 30 साल का युवा चेहरा- जयराम महतो। इससे कोर वोट बैंक महतो में ऐसी सेंधमारी की कि आजसू के चीफ सुदेश महतो खुद सिल्ली से अपनी सीट हार गए। जयराम ने राज्य की 81 में से 73 सीटों पर अपनी पार्टी JKLM के अपने उम्मीवार दिए। भले ही उन्हें 1 सीट मिली, लेकिन उसने तमाम सीटों पर चुनावी समीकरण बदल दिए। जयराम खुद गिरिडीह जिले की डुमरी से जीत गए, जबकि कई जगह उनके उम्मीदवारों के चलते बीजेपी खासकर आजसू उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। बोकारो की चंदनकियारी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को JKLM के उम्मीदवार के चलते तीसरे स्थान पर जाना पड़ा।RJD का बेहतरीन प्रदर्शनभले ही अपने राज्य बिहार में RJD खास प्रदर्शन न कर पाई हो, लेकिन झारखंड के इन नतीजों में एक अहम किरदार उसका भी रहा। यहां उसने राज्य की लड़ने वाली 6 सीटों में से 5 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की। RJD ने बिहार से लगते झारखंड के जिलों में अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया। देवघर, गोड्डा, बिशरमपुर और हुसैनाबाद में पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा।