नई दिल्ली: वकील लक्ष्मण चन्द्र विक्टोरिया गौरी की मद्रास हाई कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति पर विवाद हो रहा है। उनके बीजेपी से जुड़ाव को लेकर नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है जिस पर मंगलवार को अहम सुनवाई होने वाली है। इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट बार के 21 वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को खत लिखकर विक्टोरिया की नियुक्ति की सिफारिश रद्द करने की मांग की थी। तो क्या उनकी नियुक्ति रद्द हो सकती है? वैसे न्यायिक इतिहास में एक बार ऐसा हो चुका है जब हाई कोर्ट में जज की नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया था। 30 साल ऐसा हुआ था, जिसमें हाई कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को रद्द कर दिया। तब सुप्रीम कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया गया था कि ऐडवोकेट केएन श्रीवास्तव के खिलाफ करप्शन का आरोप है और हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के लिए वह पात्रता नहीं रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति को खारिज कर दिया था।ऐडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरी को हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया उसके बाद अर्जी दाखिल कर विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाते हुए ऐडवोकेट राजू रामचंद्रन ने 1992 के केस का हवाला दिया और कहा कि पहले ऐसा हो चुका है। तब 1992 में कुमार पद्म प्रसाद बनाम केंद्र सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति के आदेश के बाद नियुक्ति रद्द कर दिया था। राजू रामचंद्रन ने मौजूदा याचिका में ऐडवोकेट गौरी की हाई कोर्ट के जस्टिस पर नियुक्ति के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उन पर आरोप है कि उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक (नफरती) बयान दिए थे। इसके लिए रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट के 1992 के पद्म प्रसाद केस का हवाला दिया। 1992 केस में केएन श्रीवास्तव को गुवाहाटी हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के आदेश को चुनौती दी गई थी। तब उन पर करप्शन का आरोप लगाया गया था और कहा गया था कि ऐडवोकेट के तौर पर उन्होंने प्रैक्टिस नहीं की और न ही वह ज्यूडिशियल ऑफिसर रहे हैं। आरोप था कि वह हाई कोर्ट के जस्टिस के लिए अनुच्छेद-217 के तहत पात्रता नहीं रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले नियुक्ति प्रक्रिया के अमल पर रोक लगाई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली बार ऐसी स्थिति आई है। नियुक्ति आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और शपथ पर रोक लगा दी थी। मौजूदा केस में राजू रामचंद्रन ने कहा कि ऐसा पहले भी हो चुका है और नियुक्ति के नोटिफिकेशन जारी होने के बाद भी सारे दरवाजे बंद नहीं होते। गौरी की नियुक्ति के खिलाफ आवाज उठाने वाले वकीलों का कहना है कि अल्पसंख्यक के खिलाफ बयान देने के कारण वह जज के तौर पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं क्योंकि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकती हैं। कौन हैं एडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरीएडवोकेट के मदुरै बेंच में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल के पद पर कार्यरत हैं और वह हाई कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखती हैं। उनकी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई और तब मद्रास हाई कोर्ट के वकीलों ने ऐतराज जताया और राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस को लिखकर कहा कि उन्हें हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। वकीलों का आरोप है कि उन्होंने अल्पसंख्यक के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिए हैं और ऐसे में उनके जज बनने से नुकसान होंगे। गौरतलब है कि केंद्र ने गौरी समेत 13 नाम हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के लिए क्लियर कर दिया है। राजनीतिक दल से जुड़े वकील के जज बनने में कानून मंत्री को कोई ऐतराज नहींदूसरी तरफ, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू इस विचार का समर्थन करते दिख रहे हैं कि राजनीतिक दलों से जुड़ा कोई वकील भी जज बनाया जा सकता है। उन्होंने रविवार को ऐडवोकेट और पूर्व गवर्नर स्वराज कौशल के एक ट्वीट को रीट्वीट किया जिसमें ऐसे उदाहरण दिए गए थे जब राजनीतिक दलों से जुड़े वकीलों को जज बनाया गया था। कौशल ने ट्वीट किया था, ‘जस्टिस के. एस. हेगड़े और जस्टिस बहारुल इस्लाम को जब हाई कोर्ट का जज बनाया गया उस वक्त दोनों कांग्रेस के सांसद थे। जस्टिस वी. आर. कृष्णा अय्यर केरल में कैबिनेट मंत्री थे। एक बार जब आप पद की शपथ लेते हैं तो आपको उस शपथ के साथ जीना होता है।’