अमरूद चालीसा, आम दोहावली… आज का ‘घाघ’ है यह साइंटिस्‍ट, दे रहा है 100% सक्‍सेस फॉर्मूला

नई दिल्‍ली: खेती, नीति और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी कहावतों के लिए घाघ मशहूर हैं। लोकभाषा और सूक्तियों में मौसम विज्ञान को बताने का श्रेय उन्‍हें दिया जाता है। करीब 400 साल पहले मौसम संबंधी भविष्‍यवाणियों के लिए घाघ इतने मशहूर हुए कि उनकी उपमा आज तक दी जाती है। कोई सूझबूझ और दूरदृष्टि रखने वाला व्‍यक्ति हो तो लोग उसे ‘घाघ’ कह देते हैं। आज हम आपका परिचय ऐसे ही एक और ‘घाघ’ से कराने जा रहे हैं। वह वैज्ञानिक हैं। नाम है डॉ सुशील कुमार शुक्‍ल (Dr. Sushil Kumar Shukla)। उन्‍हें ‘मॉडर्न घाघ’ कहना किसी तरह की अतिशयोक्ति नहीं होगी। वह चालीसा, दोहों और कहावतों के जरिये किसानों को खेती के गुर सिखा रहे हैं। जैविक खेती में उन्‍होंने खूब काम किया है। देश में घूम-घूमकर किसानों को सरल भाषा में वह मुनाफेदार तरीके से किसानी के गुर सिखाते रहे हैं। वह खेती को शानदार उद्यम बताते हैं। उनके मुताबिक, यह किसी दूसरे व्‍यवसाय की तरह लोगों के लिए खुशहाली और समृद्धि का रास्‍ता खोल सकता है। अमरूद, आम और लीची उगाने का तरीका वह बड़े रोचक तरीके से बताते हैं। इसके लिए उन्‍होंने अमरूद चालीसा, आम और लीची दोहावली लिखी है।

डॉ सुशील कुमार शुक्‍ल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय उपोष्‍ण बागवानी संस्‍थान में प्रधान वैज्ञानिक (बागवानी) हैं। उन्‍होंने
NBT ऑनलाइन से खास बातचीत की। सुशील ने बताया कि बड़ी संख्‍या में लोगों को उन्‍होंने खेती का प्रशिक्षण दिया है। इनमें से आज तमाम लोग खेती को लाभकारी उद्यम के रूप में अपना चुके हैं। वह खुशहाल जीवन व्‍यतीत कर रहे हैं। खेती का जो तरीका उन्‍हें बताया जाता है, वह पूरी तरह प्राकृतिक है। इसमें उत्‍पादक और उपभोक्‍ता दोनों को फायदा है। इस दौरान उन्‍होंने चालीसा, दोहावली और लोकोक्तियों के जरिये खेती के गुर सिखाने के बारे में भी बताया।

क्‍यों चालीसा और दोहे ल‍िखना शुरू क‍िया?
डॉ सुशील ने बताया यह बात कुछ पुरानी है। जब बतौर वैज्ञानिक उनकी शुरुआती पोस्टिंग हुई तो उन्‍हें एक बात का एहसास हुआ। उन्हें लगा कि वैज्ञानिकों की भाषा अक्‍सर किसानों के पल्‍ले नहीं पड़ती है। इसमें ‘कम्‍यूनिकेशन गैप’ होता है। इसे सरल बनाने के लिए वह रास्‍ता खोजने लगे। कानपुर में जन्‍में डॉ सुशील को लगा कि इसके लिए सबसे असरदार तरीका लोकोक्तियां और दोहे हैं। ये आसानी से जुबान पर चढ़ जाते हैं। फिर उन्‍होंने कृषि विज्ञान को सरल भाषा में समझाने के प्रयास शुरू कर दिए। उन्‍होंने अमरूद चालीसा और लिखी। इसी के साथ उन्‍होंने ‘स्‍लोगन’ और लोकोक्‍त‍ियां भी गढ़नी शुरू कीं। इसके कुछ उदाहरण हैं- ‘करो प्राकृतिक खेती आज, स्‍वस्‍थ सुखी सम्‍पन्‍न समाज’, ‘गो संवर्धन नीति की, शहरों में भी मांग। चरागाह स्‍थल बने, जहां उग रही भांग।।’

क‍िसानों को आसानी से समझ आ जाती है उनकी बात
डॉ सुशील का जन्‍म उत्‍तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर में 3 जुलाई 1968 को हुआ था। उनकी गिनती हमेशा बेहद होनहार छात्रों में रही। 1994 में उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्‍चर एंड टेक्‍नोलॉजी से पीएचडी पूरी की। पीएचडी में उनके अध्‍ययन का विषय ‘Salt tolerence studies in bael (Aegle maemeaos)’ था। कृषि विज्ञान पर अब तक उनकी 3 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने देश-विदेश में 76 से ज्‍यादा पेपर प्रजेंट किए हैं। उनके 34 रिसर्च पेपर पब्लिश हो चुके हैं। उन्‍होंने कई रिसर्च स्‍कीमों की अगुआई की है। डॉ सुशील बताते हैं कि उनके सेमिनार और वर्कशॉप में बड़ी संख्‍या में किसान शिरकत करते हैं। जब उन्‍हें दोहों और चालीसा के जरिये खेती के तरीकों के बारे में बताया जाता है तो वे फटाफट उसे पकड़ लेते हैं। उन्‍हें यह बहुत दिलचस्‍प लगता है। इससे ऊब भी नहीं होती है।

अमरूद चालीसा

नमो नमो हे जामफल, नमो दीनजन ईश।दुखियों के पोषक तुम्हीं, नवा रहा हूँ शीश।।कहते गरीब का सेब इसे औषधि है उदर विकारों की।खेती से इतनी आमदनी आशा है बेरुजगारों की। खनिजों का ये भरपूर स्रोत पर्याप्त विटामिन सी भी है।गर ललगुदिया हो क्या कहने, पाचक कैंसर रक्षक भी है।ऊसर बंजर में भी इसकी खेती होती आसानी से।उत्पादन जल्दी और प्रचुर ये डरता नहीं है पानी से।नाना प्रकार की किस्में हैं जो जग में जानी जाती है।श्वेता सरदार इलहबादी औ ललित बखानी जाती हैं।अब धवल और लालिमा नयी किस्में भी आईं संगत में।पहली है गूदेदार श्वेत, दूसरी सेब की रंगत में।खाने में बीज मुलायम हैं मीठे सुस्वाद से भरी हुई।श्वेता औ धवल सफेदा की हैमांग इसी से बढ़ी हुई।पर परिरक्षण के लिये ललित सर्वोत्तम मानी जाती है।पर स्वाद है कुछ खट्टा मीठा, ललगुदिया भी कहलाती है। वैसे अमरूद लगाते हैं छै छै मीटर की दूरी पर।गर सघन बागवानी करनी तो दूरी इसकी आधी भर।पौधों की संख्या ज्यादा हो, उत्पादन उससे अधिक मिले।है यही एक ही लक्ष्य हमारा कृषक समुन्नत खूब फले।अमरूद वृक्ष एक ऐसा है इसमें जब चाहो फल पा लोगर ठीक तरह से काट छाँट तकनीक तनिक तुम अपना लो।बरसाती फल गर ना चाहो गर्मी में काट छाँट कर दो।सर्दी में फल होंगे ज्यादा गुणवत्ता भी उनमें भर दो।गर फल मक्खी तँग करती हो उसका इलाज भी सम्भव हैतुम ट्रैप लगा दो पेड़ों पर नर मक्खी रहे असम्भव है।जब एल्कोहल ईथाइल हो औ यूजिनाल मिथाइल होथोड़ा से पडे़ कीटनाशी नर मक्खी पड़ी शिथाइल हो।छै चार एक अनुपात मिलें तब औषधि बड़ी प्रभावी है।लकड़ी गुटके इसमें डालो ये नर मक्खी पर हावी है।दो दिन के बाद इन्हीं गुटकों को पेड़ों पर लटकाना हैबिन दवा छिड़क या खर्चे के नर मक्खी मार गिराना है।छिद्रों से गिरे बुरादा सा, तरु पर सुरंग सी दिखती हो,सूँड़ी खाती हो छाल, और छिद्रों में छुपकर रहती हो।।इंडरबेला का यूँ प्रकोप, है प्रमुख समस्या बागों की,लापरवाही है प्रमुख वजह, ऐसे बागवां अभागों की।।पहले सूखती टहनियाँ हैं, फिर मर जाते तरु बड़े बड़े,फल उत्पादन होना मुश्किल, सूखे से दिखते खड़े खड़े।जैसे ही दिखें सुरंगें सी, उनको अच्छे से साफ करो,फिर डालो तीली छिद्रों में, सूँड़ी को कभी न माफ करो।।फिर डाईक्लोरवास केमिकल, से भिगो रुई का फाहा लो,डालो छिद्रों में अन्दर तक, फिर बन्द मृदा से कर डालो।।गर मुश्किल हो ये करना तो, छिड़काव पेड़ पर ही कर दो,गर नुवां रहा दो सौ एम एल, तो सौ लीटर पानी भर दो।।गर कलमी पौध चाहिए तो, फिर सीधा लिखो निदेशक को।तुम बाग लगाओ जल्दी से कोई न बीच उपदेशक हो।गर बाग लगा हो ठीक तरह बीघा दस टन उत्पादन होबेरोजगार को रोजगार कृषकों को धन का साधन हो।अब चलो पौध सम्बन्धी भी कुछ बातें और सुनाते हैंउद्यमियों को भी रोजगार के अवसर आज सुझाते हैं ।जो कलमी पौध बनाते हैं उनके तो वारे न्यारे हैं।पौधों की माँग इस कदर है व्यापारी तक भी हारे हैं ।छै महिने का पौधा खरीद उस पर बांधो तुम वेज़ कलम।छै महिने तक कर देखभाल छै गुना कमाओ कम से कम ।पर सच्चाई गुणवत्ता से समझौता कभी नहीं करनाईमान बेचकर धन अर्जन से हे भाइयो सदा डरना।यह चालीसा है अलग, पाठ न कीज कोय।जो लाए व्यवहार में, भला उसी का होय।।

आम दोहावली

फल का राजा आम है, राष्ट्रीय फल श्रेष्ठ।रंग रूप गुण स्वाद में, सभी फलों मे ज्येष्ठ ।।1।। पूजा या शुभ काम हो, या हो वंदनवार।लगे आम के पर्ण बिन, फीका सा घर द्वार ।।2।।ताजा खाएं या बनें, परिरक्षित उत्पाद।छीला पल्प अचार रस, पेय पना आबाद ।।3।। दूध आम सेवन करें, होता कायाकल्प।स्वच्छ रही वातावरण, होते लाभ अकल्प ।।4।।खनिज ऊर्जा से भरा, कैरोटिन लुपियाल।कैंसर रक्षक गुण यही, रखता एक रसाल ।।5।।लंगड़ा चौसा दशहरी, हैं प्राचीन प्रजाति।आम्रपाली मल्लिका, भी पा रही हैं ख्याति ।।6।। संस्थान विकसित हुईं, नव रंगीन प्रजाति।कहें अंबिका अरुणिका, खूब पा रहीं ख्याति ।।7।। मिट्टी गहरी दुमट हो, पोषण भली प्रकार।फल गुणवत्तायुक्त हों, औसत हो आकार ।।8।।गर्म गर्मतर क्षेत्र हों, या हों ठंडे गर्म।मरुथल पर्वत छोड़ कर, आम सफल है मर्म ।।।9।।गर्मी में गड्ढा खुदे, तीन फीट गहरान ।ध्यान रहे भरते समय, हो छै इंच उठान॥ 10॥आधी मिट्टी ऊपरी, एक तरफ दें डाल ।बाकी जितनी भी बचे, रखिये अलग सम्भाल। ।11॥तेज धूप में सेंक दो, पखवाड़े भर आप ।मरें कीट बीमरियां, दो रहें संताप॥12॥ऊपर की मिट्टी सदा, दें नीचे को डाल ।खाद आदि सब फिर मिला, गड्ढा भरें संभाल ॥13॥तीन टोकरी खाद में, पाव भर सुपर फॉस ।दीमक रोधी धूल भी, सौ या ग्राम पचास ॥ 14॥गड्ढा भरकर सींच दें, होगा पूरा काम ।फिर जाकर बरसात में, रोपण करिए आम ।।15॥शाखाएं जब आम की, आने लगतीं पास ।काट छांट की आम को, आवश्यकता खास।।16॥काट छांट बिन बाग में, आ जाता है झोल ।कुछ शाखाएं काट कर, मध्य भाग दें खोल।।17॥ समझो छाते की तरह, हो आदर्श वितान ।अंदर आती रोशनी, बढ़े फलों की शान ॥18॥बागीचा जंगल दिखे, उम्र पचासेक साल।फल उत्पादन कम लगे, फलत न हो हर साल ।।19।।शाखाएं फँसती दिखे धूप न हो पर्याप्त।कीट और बीमारियाँ, जब हो जाएं व्याप्त ।।20।।तभी उचित है आम का, करना जीर्णोद्धार।शाखाएं काटो मगर, छोड़ो ठूँठ विचार ।।21।। शाखाएं ज्यादा लगें, तो विरलन हो जाय।चार पाँच ही शाख हों, ऐसा करें उपाय ।।22।।सीधी ऊपर जा रही, शाखा सदा निकाल।मिले छत्र को रोशनी, करिये यत्न सँभाल ।।23।।माह दिसम्बर में सदा, काट छाँट हो जाय ।ध्यान रहे कटते समय, शाख न फटने पाय ।।24।।दो दो शाखाएं कटें, ऊपर से हर साल।तीन वर्ष में आम का, करता वृक्ष कमाल ।।25।।आमदनी के साथ में, नव शाखा की वृद्धि।कीट प्रकोप बचाव सँग, करता कृषक समृद्धि ।।26।।इन वृक्षों की कीजिए, देखभाल तत्काल।खाद उर्वरक आदि सब, दें थाले में डाल ।।27।एक किलो हो नत्रजन, आध किलो हो फॉस।कुन्तल जैविक खाद हो, आध किलो पोटास ।।28।।मास फरवरी तक सदा, कर लें सारे काम।फिर पानी देते रहें, वृ़क्ष करे आराम ।।29।।गर प्ररोह ज्यादा दिखें, विरलन करें तुरन्त।सीमित कल्ले ही बचें, कटी शाख के अन्त ।।30।।तना बेधक कीट का, रक्खें ध्यान विशेष।छिद्र बनाता तने पर, छोड़े ये अवशेष ।।31।।छिद्र बुरादा सा दिखे, करिये दूर विकार।तीली अन्दर डालकर, सूँड़ी को दें मार ।।32।।रुई भिगो नूवान में, दें छिद्रों में डाल।गीली मिट्टी फिर लगा, बन्द करें तत्काल ।।33।।वर्षा ऋतु में कीट या, लगे पर्ण में व्याधि।छिड़क दवाएं समय पर, दूर कीट रोगादि ।।34।।तीन वर्ष मे फलत दें, जीर्णोद्धरित वृक्ष।देखन मे छोटे लगें, उत्पादन में दक्ष ।।35।। कृषकों हित सरकार भी, देती है अनुदान।जीर्णोद्वार कराइये, ले तकनीकी ज्ञान ।।36।।स्वस्थ रखें हम बाग को, खाद उर्वरक डाल।पहले वर्णित मात्रा, मास सितंबर काल ।।37।।सूक्ष्म तत्वों की कमी, डाले बुरा प्रभाव।छिड़क सुहागा जिंक को, करिए दूर अभाव ।।38।। घुलनशील बोरान की, मात्रा दो सौ ग्राम।सौ लीटर जल में मिला, छिड़क टिकोरा आम ।।39।।अगर जिंक की हो कमी, छिड़को लगते आम।सौ लीटर जल है अगर, जिंक चार सौ ग्राम ।।40।।छिड़कें जब आकार हो, फल का मटर समान।फल की अच्छी वृद्धि हो, बने गुणों की खान ।।41।।कीट व्याधियों के लिए, करिये उचित उपाय ।सही समय छिड़काव हो, तभी आम से आय।।42।।भुनगा नामक कीट भी, करता तेज विनाश।बौर चूसता आम का, कर देता है नाश ।।43।।चूस चूस कर बौर पर, करता मधुरस स्राव।काली पर्ण फफूँद का, दिखता है बिखराव ।।44।।चार इंच का बौर हो, तभी करें छिड़काव।छै सौ एम एल ईमिडा, टैंकर भरो मिलाव ।।45।।फूल खिलें हों गर अधिक, नहीं करें छिड़काव।मित्र कीट भी नष्ट हों, फिर पीछे पछताव ।।46।।अगर आम के बौर पर, दिखे श्वेत सा चूर्ण।समझो खर्रा व्याधि का, हुआ आगमन पूर्ण ।।47।।घुलनशील गंधक मिला, कर दीजै छिड़काव।चार किलो भर मात्रा, टैंकर भर जल प्लाव ।।48।।आम टिकोरे वृद्धि हित, नियमित सींचें बाग।तीन बार पानी लगे, तब जब बरसे आग ।।49।।सबसे पहले दशहरी, फिर लंगड़े की धाक।पकता चौसा बाद में, कहता कवि बेबाक ।।50।।वृक्षों पर ही फल अगर, कर दें थैलाबन्द।फल गुणवत्तायुक्त हों, रंग रूप आनन्द ।।51।।अखबारी कागज मिले, या हो बासी ताव।एक किलो आकार के, थैले खुदी बनाव ।।52।।फल मक्खी दागादि से, थैला करे बचाव।फल भी आकर्षक बनें, खाने में भी चाव ।।53।।आम तोड़ने के लिए, है फल तोड़क यन्त्र।बिना चोट डंठल सहित, टूटे आम तुरंत ।।54।।एक इंच डंठल सहित, उलट कर रखें आम।चेंप रहित हों फल सभी, तब आगे का काम ।।55।।छोटे दागी फल सभी, पहले ही लें छाँट।श्रेणीकरण करें सदा, सभी फलों को बाँट ।।56।।छिद्रयुक्त गत्ते सदा, पैकिंग हित उपयुक्त।विक्रय दूर बजार हो, तब हों ऋण से मुक्त ।।57।।आम पकाने के लिए, कर्बाइड है बन्द।सेहत के कारण हुआ, सरकारी प्रतिबन्ध ।।58।।वैसे तो हर किस्म की, एक अवधि है भ्रात।लगने से पकने तलक, है हम सबको ज्ञात ।।59।।पके जून में दशहरी, लंगड़ा उसके बाद।फिर चौसा देता हमें, सचमुच प्रकृति प्रसाद ।।60।।जल्दी में बाजार की, अगर तोड़ते आम।गुणवत्ता आती नहीं, और न मिलते दाम ।।61।।स्वादहीन सिकुड़े हुए, अक्सर दिखते आम।खट्टा मीठा स्वाद संग, भारी भरकम दाम ।।62।।आम्रपाली मल्लिका, का बढ़ रहा बजार।रंग बिरंगी आम की, किस्मों का व्यापार ।।63।।काट छाँट कर छत्र का, मध्य भाग दें खोल।सहफसली खेती करें, बाग बने अनमोल ।।64।।जिमीकंद हल्दी सहित, अदरख गिन्नी घास।फर्न शतावर आम हित, अंतः फसलें खास ।।65।।इन्हें उगायें बाग में, होगी दूनी आय।सफल प्रबन्धन फसल का, उत्तम सरल उपाय ।।66।।

लीची दोहावली

याद आ रहे हैं प्रथम, गुरुवर राम कृपाल।जिनका आशिर्वाद पा, सचमुच हुआ निहाल॥1॥धारण कर उर में उन्हें, करता कोटि प्रणाम।लीची दोहावलि लिखूं, ले गुरुवर का नाम॥2॥लीची सदाबहार तरु, अच्छी पैदावार।आकर्षक रंग स्वाद गुण, देश विदेश बजार॥3॥उत्पादन में देश का, है दितीय स्थान।उत्पादकता में प्रथम, रही देश की शान॥4॥हैं बिहार बंगाल में, उत्तम लीची बाग।झारखंड उत्रांचल, यू पी के कुछ भाग॥5॥त्रिपुर असम पंजाब में, फैला खूब प्रक्षेत्र।हरियाणा भी दिख रहा, नव सम्भावित क्षेत्र॥6॥वैसे प्रति हैक्टर मिले, अस्सी कुंतल माल।पर उत्तम तकनीक से, बढ़े साल दर साल॥7॥दुगनी तिगुनी उपज हो, अगर प्रबंधित बाग.नमी खाद पानी मिले, तब जब बरसे आग॥8॥ताजे फल खाना सदा, करते लोग पसंद।शरबत नट वाइन बने, करिये डिब्बाबंद॥9।।फल उपोष्ण जलवायु का, गर्मी सर्दी आस।चाहे फल बढ़वार पर, पवन आद्रता खास॥10॥मिट्टी कुछ अम्लीय हो, गहरी दोमट आदि।जल निकास उत्तम सदा, हों जैविक अंशादि।।11॥लीची विविध प्रकार की, प्रचलित आज प्रजाति।कुछ ही व्यवसायिक दिखीं, और पा रहीं ख्याति॥12॥हैं बेदाना चाइना, शाही प्रचलित खूब।कहते सेंटेड रोज़ भी, दे आनंद बखूब॥13॥वंशदास अरु योगदा, कसबा हैं कुछ खास।भाकृप लीची केंद्र ने, इनका किया विकास॥14॥पौध प्रवर्धन के लिये, छांटें उत्तम वृक्ष।फल गुणवत्ता किस्म के, जांचें सारे पक्ष॥15॥पकी टहनियों को सदा, छीलें वलयाकार।एक इंच कट लम्बवत, आधा मीटर पार॥16॥काट ऊपरी सिरे पर, दवा लेप या चूर्ण।मास घास नम मोमिया, से बांधे कृत पूर्ण॥17॥गूटी में जब जड़ दिखे, पत्तों को दें छांट।शाखा को गूटी सहित, लें चाकू से काट॥18॥पालीथीन निकालकर, गूटी को दें रोप।जहां न ज्यादा छांव हो, और न धूप प्रकोप॥19॥गूटी तब बाधें सदा, जब वर्षा शुरुआत।अधिकाधिक हो सफलता, मौसम में नम वात॥20॥बाग लगाने के लिये, पहले खेत संभाल।झाड़ी वृक्ष अगर दिखें, दें जड़ सहित निकाल॥21॥ऊंची नीची जोत गर, कर लें सीढ़ीदार।ढाल ध्यान में रख सदा, दें क्यारी आकार॥22॥मिट्टी कुछ क्षारीय हो, तो दें जिप्सम डाल।आधा कुंतल मात्र से, सुधरे भू का हाल॥23॥लीची रोपण हित उचित, पद्धति वर्गाकार।मीटर छै से आठ ही, दूरी हो सुविचार॥24॥रेखांकन कर खेत में, बनते उचित निशान।गड्ढा खोदें तीन फिट, गहरे और समान॥25॥आधी मिट्टी इक तरफ, बाकी दूजी ओर।फिर कुछ दिन को छोड़ दें, गर्मी में घनघोर॥26॥हड्डी का चूरा मिले खाद खली अरु फास।दीमक रोधी चूर्ण मिल, मिश्रण बनता खास॥27॥गड्ढे भर लें ठीक से, रख छै इंच उठान।मिट्टी जब बैठे वहां, भूतल एक समान॥28॥वर्षा ऋतु में रोप दें, स्वस्थ सुविकसित वृक्ष।रोपण कर पानी सदा, देना पहला लक्ष्य॥29॥मानसून की ऋतु भली, या फिर मध्य बसंत।रोपण लीची बाग हित, उचित काल अत्यंत॥30॥बूंद बूंद पद्धति तथा, अपनायें पलवार।पानी की अच्छी बचत, साथ पौध बढ़वार ॥31॥वर्षा ऋतु में हो सदा, जल का उचित निकास।पौधा रहता स्वस्थ है, होता उचित विकास॥32॥खूंटी रस्सी से सदा, दिया सहारा जाय।पौधा भी सीधा बढ़े, खड़े खड़े मुसकाय॥33॥उत्तर पश्चिम दिशा में, हों दो वृक्ष कतार।सानुकूल मौसम रहे, फलता वृक्ष अपार॥34॥शीशम हो या पापलर, या जामुन सागौन।बीच करौंदा बेर गर, घुसे बाग में कौन॥35॥पाले से भी वृक्ष का, समुचित करें बचाव।पूरब में रक्खें खुला, यूं झोपड़ी बनाव॥36॥डंठल मक्का बाजरा, या हो घास पुवाल।छप्पर छाने हेतु ये, करता खूब कमाल॥37॥बागों के प्रारम्भ में, हो व्यय और न आय।अंत:फसली लाभ ही, लेना उचित उपाय॥38।।दलहन तिलहन सब्जियां, जो स्थानी मांग।फसल उगायें लाभ लें, वरना उगती भांग॥39॥एक वर्ष के वृक्ष को, मिले दस किलो खाद।खली खाद भी एक किलो, वृक्ष रहे आबाद॥40॥फास पुटाश पचीस हो, औ नत्रजन पचास।जस्ता ग्राम पचीस हो, एक साला वृक्षास॥41॥फिर हर साल बढ़ोतरी, जब तक हों दस साल।नियमित खाद प्रयोग से, रहे वृक्ष खुशहाल॥42॥दस वर्षी गर वृक्ष है, साठ किलो गो खाद।पांच किलो गर हो खली, वृक्ष रहे आबाद॥43॥नत्र फास छै सौ मिले, ढाई सौ पोटास।जिंक और बोरान भी, ढाई सौ ग्रामास॥44॥वर्षा ऋतु के पूर्व ही, डालें गोबर खाद।आध उर्वरक जून में, बाकी वर्षा बाद ॥45॥लेश तत्व छिड़काव से, होते फल गुणवान।फल फटने से भी बचें, और न हो नुकसान॥46॥लीची का फल मांगता, उत्तम नीर प्रबंध।फल फटने या वृद्धि से, है सीधा अनुबंध॥47॥फल टिकने के बाद हो, नियमित नीर प्रयोग।साथ साथ छिड़काव हो, बने उपज का योग ॥48॥दिखते पुष्प बसंत में, फिर हो फल बढ़वार।मई जून के मास में, होता फल व्यापार॥49॥जब मिठास का ब्रिक्स हो, अट्ठारह के पास।आधा प्रतिशत अम्लता, तब गुणवत्ता खास ॥50।।फल तोड़ें गुच्छे सहित, जब हो सुखद प्रभात।छांट छांट पैकिंग करें, बिना चोट आघात॥51॥गर लीची के बाग में, मधुमक्खी लें पाल।उपज वृद्धि के साथ ही, मधु से मालामाल ॥52॥सदा पके फल तोड़कर, करिये छत्र प्रबंध।सुघड़ दक्ष हो वृक्ष भी, पावन पवन सुगंध॥53॥धन्यवाद है आपको, ज्ञानी विशद “विशाल”।हुई आपके ज्ञान से, दोहावली निहाल॥54॥मुझे माफ करना अगर, कहीं हो गयी भूल।कहते दास “सुशील” ये, कविता रूपी फूल॥55॥

मटका खाद – शहरी जीवामृत

पांच किलो गोबर तथा पांच किलो गोमूत्र, पौवाभर मिट्टी सहित, गड़ बेसन जल सूत्र। आध किलो पानी बेसन सहित, आध किलो गुड़ मात्र, बाकी पानी से भरें, मिट्टी का हो पात्र। मटके का मुख बांध दें, कपड़ा जाली दार, सुबह शाम घोलें मिला, तेज वायु संचार। हफ्ते भर में हो गया, जीवामृत का योग, इसको मटका खाद भी, कहते हैं कुछ लोग। अद्भुत जैविक खाद है, घर में करो प्रयोग, खूब उगाओ सब्जियां या कचरे में योग। घर के कचरे में इसे, छिड़क अगर दें डाल,जैविकविघटन की क्रिया, करता तेज कमाल।