नई दिल्ली: ट्यूशन हो, स्कूल हो या फिर किसी को बर्थडे पर गिफ्ट देना हो…सफेद रंग पर नीले ढक्कन वाला पेन याद है न आपको। क्लास हो या फिर किसी को गिफ्ट देना हो तो सफेद रंग पर नीली कैप वाला महज 5 रुपए का ये पेन बेहद खास होता था। अमेरिकी रेनॉल्ड्स इंटरनेशनल कंपनी का बनाया यह पेन भारत के एजुकेशन सिस्टम में ऐसा रचा-बसा की यहीं का होकर रह गया। भले ही आज टैबलेट, मोबाइल और लैपटॉप ने इसकी जरूरत को कम कर दिया हो, लेकिन 80, 90 के दशक के लोगों के लिए के लिए यह हर दिल अजीज था। वर्ड, डॉक्स और पीडीएफ की दुनिया में हम भले इससे दूर हो गए हो, लेकिन जब सोशल मीडिया पर अफवाह फैली कि हमेशा के लिए बंद होने जा रहा है, तो लोगों के दिल टूटने लगे, हालांकि कंपनी ने खबरों को खंडन करते हुए इसे गलत बताया। आज कहानी उसी नीले ढक्कन वाले पेन की… अपने देश का नहीं, फिर भी बन गया अपना अमेरिका के एक डिपार्टमेंट स्टोर में काम करने वाले मिल्टन रेनॉल्ड्स ने बिना किसी तकनीकी ज्ञान और बड़े निवेश के एक ऐसे पेन का अविष्कार किया, जिसने लोगों को स्याही, दवात से आजादी दी। उस दौर में केवल बायरो पेन का इस्तेमाल होता था। मिल्टन जानते कि इस पेन का दौर अब खत्म हो रहा है। साल 1945 में मिल्टन ने एक ऐसा पेन तैयार किया, जिसमें बार-बार लिंक भरने का झंझट नहीं था। जब इस पेन को उन्होंने लॉन्च किया तो ये भी दावा किया गया कि इससे पानी के भीतर भी लोग लिख सकेंगे। इसी दौर में दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ । अमेरिका जीतने वाले देशों में शामिल था। मिल्टन ने अपने बॉल पेन की कीमत 12 डॉलर रखी, जो उस उस दौर के हिसाब से काफी महंगा था। 12 डॉलर का एक पैन मिल्टन के इस पैन की कीमत को लेकर लोगों को थोड़ी हैरानी भी हुई। उस दौर में 12 डॉलर की एक कलम लोगों में चर्चा का विषय बन गया। युद्ध खत्म हुआ था, लोग युद्ध से लौटे अपनों के लिए एक खास और कीमती तोहफा लेना चाहते थे। ऐसे में इस पेन ने पूरे मार्केट में हंगामा मचा दिया। रातों-रात इस पेन ने अमेरिका के बाजार में हंगामा मचा दिया। साल 1948 का दौर आया और यह पेन अमेरिका से निकलकर यूरोप के बाजार में पहुंचा। बॉल पेन , जिससे लिखना आसान था, तेजी के लिखाई हो जाती थी। लोगों को खूब पसंद आ रहा था। 1980 में भारत में एंट्री साल 1980 में इसकी एंट्री भारत में हुई। 1980 से लेकर 2010 तक यह पेन हर स्टूडेंट का अजीज रहा । धीरे-धीरे भारत में यह पेन आइकन बन गया। भारत में इसे रेनॉल्ड पेन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंननी बेच रही थी। मिल्टन के रिटायर होते ही शिकागो स्थित इसकी पेन ब्रांच बंद हो गई। साल 2007 तक भारत की रेनॉन्ट्स पेन इंडिया को छोड़कर सभी ब्रांच बंद हो गए। भारत में आज भी इस पेन का जलवा है। साल 2006 में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर इस पेन का विज्ञापन करते थे। भारत में आज इस का पूरा बिजनेस Flair पेन संभालता है। दशकों तक 5 रुपये में बिकता रहाभारत में यह पेन दशकों तक 5 रुपये में मिलता रहा। साल बदले, महंगाई बढ़ी, लेकिन इस पेन की कीमत जस की तस रही। हालांकि आज ये मार्केट में 7 रुपये का बिक रहा है, लेकिन बाजार में इसकी डिमांड में कमी आई है। नीली, काली और लाल टोपी वाला यह पेन पेन की लोकप्रियता भारतीयों में काफी है। नाम में 045 उसके जन्म का साल है। 1945 में इस पेन को बनाया गया था, इसलिए मिल्टर ने अपने नाम के साथ इसके जन्म साल को भी जोड़कर नाम तय किया।