पहले कहा बावला फिर सिर आंखों बैठाया… ICE-MAN जिसने हजारों फीट ऊंचाई पर खत्‍म कर दिया जल संकट!

नई दिल्‍ली: कुछ अलग सोचने और करने वालों के साथ समस्‍याएं आती हैं। चेवांग नॉर्फेल (Chewang Norphel) के साथ भी वही हुआ। उन्‍होंने हजारों फीट की ऊंचाई पर बसे लद्दाख के गांवों के लिए जल संकट का समाधान सुझाया था। तब किसी ने चेवांग का यकीन नहीं किया था। वे बोले थे- ये पागल हो गया है। लेकिन, चेवांग को खुद पर पूरा यकीन था। वह रुके नहीं। कोशिश जारी रखी। फिर एक दिन वो कर दिखाया जिससे चेवांग भारत के आइसमैन (Ice Man of India) कहलाने लगे। चेवांग ने एक तरह से प्रकृति को चुनौती दे दी थी। उन्‍होंने बहुत आसान तरीके से 15 आर्टिफिशियल ग्‍लेशियर बना डाले। इसका पानी गर्मियों में खेती-किसानी में काम आने लगा। इस अकेले शख्‍स के कारण लद्दाख के गावों में खुशहाली का रास्‍ता खुल गया। जो लोग कल तक बावला कहते थे, उन्‍होंने ही चेवांग को सिर आंखों बैठा लिया। 2015 में चेवांग को पद्मश्री पुरस्‍कार से नवाजा गया। उन पर फिल्‍म तक बन गई। इन आर्टिफिशियल ग्‍लेशियर के कारण हजारों हेक्‍टेयर कृषि योग्‍य भूमि लहलाने लगी। किसानों को उनकी जरूरत के वक्‍त पानी मिलने से ऐसा हुआ। चेवांग नॉफेल का जन्‍म 1935 में हुआ था। वह लेह के साधारण से परिवार से आते हैं। लोग उन्‍हें आइसमैन के नाम से जानते हैं। वह साइंस के विधार्थी थे। चेवांग श्रीनगर में अमर सिंह कॉलेज गए। 1960 में उन्‍होंने लखनऊ से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्‍लोमा कोर्स पूरा किया। उसी साल जून में चेवांग की लद्दाख में जम्‍मू-कश्‍मीर रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में नौकरी लग गई। 1995 में रिटायरमेंट के बाद भी वह न थके न रुके। जरूरत के समय क‍िसानों को नहीं म‍िलता था पानीचेवांग ने लेह को करीब से देखा था। वह यहीं पले-बढ़े थे। लखनऊ से पढ़कर जब वह दोबारा वापस लौटे तो इलाके के किसानों को परेशान पाया। बुआई और फसल के लिए उन्‍हें अप्रैल मई में पानी की जरूरत पड़ती थी। ग्‍लेशियर जून-जुलाई में पिघलते थे। किसानों को जरूरत के समय पानी नहीं मिल पाता था। यहां की बड़ी आबादी खेती करती है। नदियां पानी का मुख्‍य स्रोत होती हैं। लेकिन, ये नीचे बहती हैं। बहुत ऊंचाई वाले गांवों में ये ज्‍यादा काम की नहीं होती हैं। सभी रास्‍ते बंद दिख रहे थे। फिर चेवांग लगातार इस समस्‍या का हल खोजने के लिए दिमाग लगाने लगे। दिन-रात जब कोई एक ही चीज के बारे में सोचता है तो आइडिया आ ही जाता है। चेवांग नॉर्फेल के साथ भी वही हुआ। कहां से चेवांग नॉर्फेल को आइड‍िया? एक दिन चेवांग ने देखा कि उनके घर के सामने लगे नल से पानी गिर रहा है। कुछ देर में यह बर्फ बन जाता है। ठीक ग्‍लेशियर की तरह। बर्फ वही पानी बना था जो पेड़ की पत्तियों की छांव में था। बाकी तेजी से फैलकर बेकार चला जाता है। अब उनके दिमाग में आइडिया आ चुका था। चेवांग ने सोचा कि क्‍यों न पहाड़ से जो मेनस्‍ट्रीम (नदी की मुख्‍य धारा) आती है, उसके फ्लो को धीमा करके एक जगह स्‍टोर किया जाए। इससे वह एक ग्‍लेशियर जैसा बन सकता है। इस तरह उन्‍होंने इस पानी को डायवर्ट करके छोटे-छोटे डैम में जमा किया। इससे पानी फ्रीज होकर बर्फ बना। गर्मियों में यह पानी पिघलकर कृषि में काम आ जाता है। आर्ट‍िफ‍िश‍ियल ग्‍लेश‍ियर पानी को बचाने की है टेक्‍नीकदूसरी तरह से समझें तो यह पहाड़ों पर जमी बर्फ के पिघलने वाले बहाव को रोकने का वैकल्पिक इंतजाम है। इसके तहत नैचुरल ग्लेशियर से एक दूसरा रास्ता बनाकर गांवों के नजदीक बर्फ की नदी के तौर पर कंजर्व किया जाता है। गर्मी में यही किसानों की खेती में काम आता है। दरअसल, सर्दियों में लद्दाख में कड़ाके की ठंड पड़ती है। इसके चलते सर्दियों की फसलें नहीं होती हैं। इस दौरान जो भी पानी बहता है, वह बेकार चला जाता है। नॉर्फेल ने बर्फ के तौर पर सर्दियों में बेकार हो जाने वाले पानी को बचाने की तकनीक खोज ली। इन आर्टिफि‍शियल ग्लेशियर के जरिये उन्‍होंने किसानों को उनकी जरूरत के समय पानी दे पाना संभव बनाया। बना डाले 15 आर्टिफिशियल ग्‍लेश‍ियरयही आइडिया लेकर चेवांग ने 15 आर्ट‍िफिश‍ियल ग्‍लेशियर बना डाले। शुरू में लोगों को यकीन नहीं होता था। वो हंसते थे। कहते थे- ये पागल क्‍या बातें कर रहा है। उस समय किसी के दिमाग में नहीं था कि किसान का बेटा ऐसा काम कर दिखाएगा। एक तरह से देखें तो उन्‍होंने प्रकृति को चैलेंज दे दिया था। चेवांग जब छोटे थे तो यह समस्‍या नहीं थी। उनके सामने नदियों में इतना पानी आ जाता था कि माता-पिता कहते थे कि चार बजने के बाद उधर नहीं जाएं। लेकिन, ग्‍लोबल वॉर्मिंग के कारण बाद में स्थिति बदल गई। ज‍िंंदगी पर ‘वाइट नाइट’ नाम की डॉक्‍यूमेंट्री फ‍िल्‍म भी बनीचेवांग ने पहला आर्टिफिशियल ग्‍लेशियर 1987 में बनाया था। तब से वह 15 ऐसे ग्‍लेशियर बना चुके हैं। किसानों को गांव के पास ही ग्‍लेशियर का पानी वक्‍त पर मिलने से स्थितियों में बदलाव हुआ। फसलें वक्‍त से होने लगीं। नॉर्फेल कहते हैं कि युवा पीढ़ी को पानी की वैल्‍यू को जानना चाहिए। जिस चीज पर यकीन हो उन्‍हें करना चाहिए। चाहे लोग साथ दे या न दें। अपनी तरफ से कोशिश करनी चाहिए। चेवांग की ज‍िंदगी पर डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म-मेकर आरती श्रीवास्‍तव ने एक शॉर्ट फिल्‍म भी बनाई है। इसका नाम ‘वाइट नाइट’ है। देश-व‍िदेश में कई फ‍िल्‍म फेस्‍टिवल में इसकी स्‍क्रीनिंग हो चुकी है।