‘पहले परफॉर्मेंस, फिर प्राइज’, शाह ने साफ कह दिया, BJP का टास्क पूरा कर पाएंगे कुशवाहा, चिराग और मांझी?

पटना: बीजेपी बिहार में अपनी चुनावी चालें लगातार चल रही है। एक साथ कई एंगल से अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने में जुटी हुई है। बीजेपी के चुनावी चाणक्य अमित शाह की चौकस नजर बिहार पर है। बीजेपी ने बिहार में अपने सहयोगी दलों को टास्क दिया है कि वे पहले अपना परफार्मेंस दिखाएं और अपना सियासी इनाम पाएं। क्या है ये टास्क? अमित शाह ने चिराग पासवान, जीतन राम मांझी के बाद उपेंद्र कुशवाहा को कौन सा टास्क दिया है। आइए समझते हैं। बीजेपी की पहली रणनीति- नीतीश को कमजोर करोबीजेपी की पहली कोशिश है कि किसी भी तरह नीतीश कुमार को इतना कमजोर कर दिया जाए कि उनका नामलेवा तक कोई नहीं मिले। इसका पहला सांकेतिक प्रयोग था नीतीश के अत्यंत भरोसेमंद साथी आरसीपी सिंह को उनसे अलग करना। बीजेपी ने सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया तो इससे नीतीश काफी गुस्से में थे। बीजेपी को 2019 में अकेले स्पष्ट बहुमत मिल जाने के बाद एनडीए के सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व के लिए मंत्रिमंडल में एक सीट की बात हुई तो नीतीश बिदक गए थे। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि बीजेपी के साथ भले रहेंगे, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू शामिल नहीं होगा। इसके बावजूद आरसीपी सिंह को पटा कर बीजेपी ने उन्हें जेडीयू कोटे से मंत्री बना दिया। मंत्री बनने से पहले आरसीपी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। नाराज नीतीश ने उनसे पहले पार्टी की अध्यक्षी छीनी और बाद में दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा। नतीजतन आरसीपी का मंत्री पद छिन गया।कुशवाह बनेंगे लव-कुश समीकरण तोड़ने का हथियारउपेंद्र कुशवाहा पहले बीजेपी के साथ ही थे। 2019 में उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया था। फिर उन्होंने अपनी आरएलएसपी का विलय नीतीश कुमार के जेडीयू में कर दिया। नीतीश ने उन्हें तत्काल जेडीयू संसदीय बोर्ड का चेयरमैन बना दिया। बाद में वे जेडीयू कोटे से एमएलसी भी बने। मंत्री न बन पाने का उनके मन में मलाल था। एनडीए से अलग होकर जेडीयू जब महागठबंधन में शामिल हुआ तो कुशवाहा के मन में डिप्टी सीएम बनने की लालसा हिलोरें मारने लगीं। इस बीच दो ऐसी बातें हुईं, जिससे उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया। अव्वल तो उन्हें तकलीफ इस बात की थी कि नीतीश ने पार्टी में बिना विमर्श किए 2025 का विधानसभा चुनाव आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान कर दिया। कुशवाहा तब तक यही मान रहे थे कि नीतीश के किनारे होने पर जेडीयू में उन्हें ही मौका मिलेगा। दूसरी बार उन्हें झटका तब लगा, जब नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में जेडीयू कोटे से अब और किसी को शामिल करने से इनकार कर दिया। बीजेपी का छोड़ कर जेडीयू में शामिल हो गए थे उपेंद्रबीजेपी के साथ रहते उपेंद्र कुशवाहा नरेंद्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे। जाहिर है कि ऐसे में बीजेपी नेताओं से उनकी नजदीकी बढ़ी होगी। जब जेडीयू से वे नाराज हुए तो बीजेपी ने जाल फेंक दिया। रूटीन चेकअप के लिए जब कुशवाहा दिल्ली गए तो एम्स में उनसे बीजेपी के कुछ नेताओं ने मुलाकात की थी। इसे लेकर नीतीश ने कटाक्ष किया कि उन्हें जहां जाना है, जल्दी चले जाएं। पटना लौटने पर कुशवाहा ने बड़ा बम फोड़ दिया कि जेडीयू के शीर्ष नेता बीजेपी के संपर्क में हैं। महीने भर चली तनातनी के बाद आखिरकार उन्होंने जेडीयू छोड़ अपनी पार्टी आरएलजेडी का ऐलान कर दिया। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मिलने कुशवाहा दिल्ली पहुंचे हुए हैं। उन्हें उनका टास्क बता दिया जाएगा। बीजेपी के लिए कितने कारगर होंगे आरसीपी-उपेंद्रबीजेपी मानती है कि नीतीश कुमार का आधार वोट कुर्मी-कुशवाहा जातियां ही हैं। इनके 10-12 प्रतिशत वोट माने जाते हैं। उपेंद्र कुशवाहा दावा करते रहे हैं कि कुशवाहा वोटर उनके साथ हैं। इस बार उनकी भी अग्निपरीक्षा हो जाएगी। आरसीपी सिंह कुर्मी जाति से आते हैं। नीतीश के गृह जिले के ही निवासी हैं। उन्हें भी बीजेपी में अगर जगह बनानी है तो यह साबित करना पड़ेगा कि कुर्मी वोटर वह कितना बीजेपी के पाले में ला सकते है। चाचा-भतीजा को भी साबित करनी होगी अपनी ताकतयही हाल लोजपा के दोनों घटकों के नेता चाचा-भतीजा यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के साथ होना है। उन्हें भी दिखाना होगा कि वे दलित वोटरों को कितना खींच पाते हैं। हालांकि इन दोनों के अलावा दलित समाज से जीतन राम मांझी ही एक नेता हैं। बीजेपी उन्हें भी अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है। इसके बावजूद दलित वोटरों को पटाने का मूल टास्क चाचा-भतीजा को ही मिलेगा। नीतीश को घेरने के लिए सम्राट चौधरी बीजेपी के फेसनीतीश क साथ छोड़ने के बाद बीजेपी बिहार फतह के लिए फुल प्रूफ प्लान बना चुकी है। इसी प्लान का हिस्सा है नीतीश को नेस्तनाबूद करना। लव-कुश समीकरण को तोड़ने के लिए ही बीजेपी ने कुशवाहा बिरादरी के सम्राट चौधरी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया। उपेंद्र कुशवाहा को अपने फोल्ड में किया। चिराग पासवान और पशुपति पारस की तलवारें अब अलग-अलग तनी रहती हैं, लेकिन बीजेपी दोनों को बराबर तरजीह देकर उन्हें साध रही है। अगर मांझी आ गए तो बिहार में दलित वोटों को झटकना बीजेपी के लिए काफी आसान हो जाएगा।रिपोर्ट-ओपी अश्क