‘ससुर के परान जाए पतोह करे काजर’…तेजस्वी का गेम समझते ही अंदर तक हिल गये नीतीश, जानिए पूरी बात

पटना : तेजस्वी यादव खुद को राजनीतिक रूप से गढ़ने में लगे हैं। खुद के फेस को आगे बढ़ाने में लगे हैं। तेजस्वी को पता है कि बिहार से नीतीश का बेदखल होना तय है। केद्रीय राजनीति से भी नीतीश कुमार बेदखल होंगे इसका संकेत तेजस्वी के मूवमेंट दे रहे हैं। ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुमार का। सियासी हलकों में चर्चा है कि हाल के दिनों में जिस कदर नीतीश कुमार परेशान रहे; कुढ़नी में जेडीयू की हार ने उन्हें परेशान किया। नीतीश ने सार्वजनिक मंच से पार्टी को हार की समीक्षा करने का आदेश तक दे दिया। उसके बाद राजद नेता सुधाकर सिंह के आरोपों से नीतीश कुमार आहत हुए। अभी वो मामला चल ही रहा था कि शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह ने एक बड़े वर्ग को नाराज करने वाला बयान दे दिया। रामचरितमानस वाले विवाद से नीतीश कुमार को परेशानी हुई। इन सब बातों के अलावा उन्हें समाधान यात्रा के दौरान कई जगहों पर लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी। इसी बीच पार्टी नेता उपेंद्र कुशवाहा से वे परेशान हो गये। झुंझलाहट में यहां तक कह दिया कि उनसे कोई कुशवाहा के बारे में बात ना करे। नीतीश पार्टी के अंदर चल रही खींचतान से भी आहत रहे। जानकार मानते हैं कि उधर नीतीश परेशान रहे और तेजस्वी अपनी राष्ट्रीय स्तर पर टीआरपी बढाने में लगे रहे। कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में भोजपुरी कहावत ‘ससुर के परान जाए पतोह करे काजर’सच होती दिखी। चाचा पर भारी भतीजा!सवाल सबसे बड़ा है। आखिर सियासी जानकारों को तेजस्वी की किस एक्टिविटी ने भोजपुरी कहावत का उदाहरण देने को मजबूर किया? सबसे पहले हम हाल के दिनों में तेजस्वी यादव की एक्टिविटी पर एक नजर डाल लेते हैं। उससे स्पष्ट हो जाएगा कि तेजस्वी किस प्लानिंग के तहत चल रहे हैं। जानकार मानते हैं कि राजद तेजस्वी को सीएम की कुर्सी पर देखने के लिए उतावली है। ये सब लोग जानते हैं। इस बीच में नीतीश कुमार ने तेजस्वी के नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ने की बात कही। एक तरह से तेजस्वी की ताजपोशी को नीतीश चालाकी से टाल गए। उसके बाद कई कार्यक्रमों में तेजस्वी के चेहरे पर वो ‘तेज’ नहीं दिखा। तेजस्वी जब भी नीतीश के साथ दिखे। उदास दिखे। जानकारों तो बताते हैं कि तेजस्वी की उदासी में उपेंद्र कुशवाहा की ‘डील’ वाली बात छुपी हुई है। वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कहते हैं कि नीतीश ने जैसे ही तेजस्वी के सीएम बनने के सपने को कुछ दिन के लिए टाल दिया। तेजस्वी दूसरे तरीके से राजनीति में एक्टिव हो गये। धीरेंद्र कहते हैं कि तेजस्वी का गेम प्लान इतना तगड़ा है कि नीतीश भी उसके बारे में सोचकर आश्चर्य में पड़ गए हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने बीच में यहां तक कह दिया था कि बिहार में मुख्यमंत्री का काम तेजस्वी ही देख रहे हैं। यही नहीं राजद नेताओं ने होली बाद तेजस्वी के सीएम पद के शपथ लेने की बात कह दी है। उधर, तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि अभी हड़बड़ी नहीं है। सीएम बनेंगे, तो सबको बताकर बनेंगे। लंबी पारी खेल रहे हैं तेजस्वी यादव!धीरेंद्र साफ कहते हैं कि तेजस्वी यादव को लंबी पारी खेलनी है। तेजस्वी को ये पता है कि नीतीश की विपक्षी एकता की कवायद फेल है। केसीआर ने पटना में उसका इशारा कर दिया। दिल्ली में सोनिया के साथ तस्वीरें नहीं खींचा पाए। नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर के क्षेत्रीय क्षत्रपों में उतने स्वीकार्य नहीं हैं, जितने लालू यादव। तेजस्वी को यहीं से संजीवनी मिली। बिहार में डेप्यूटी सीएम तेजस्वी यादव हैं लेकिन उनके पीछे नीतीश कुमार के पसंदीदा अधिकारी हैं। राजद कोटे के मंत्री क्षुब्ध हैं। उन्हें अपने पसंद के अधिकारी तक नहीं मिले हैं। राजद नेता दबी जुबान में कह चुके हैं कि तेजस्वी की सरकार में कुछ नहीं चलती है। तेजस्वी ने इसी खालीपन का फायदा उठाया। हाल के महीनों में तेजस्वी यादव ने शीर्ष विपक्षी नेताओं और कई मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की। मंगलवार 14 फरवरी को तेजस्वी यादव ने दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। तेजस्वी ने दिल्ली सीएम से राजनीति हालात और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा की। इससे पूर्व तेजस्वी ने झारखंड के सीएम और झामुमो नेता हेमंत सोरेन से रांची में उनके घर पर मुलाकात की। तेजस्वी ने हेमंत से आगामी लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों के एक साथ चुनाव लड़ने की संभावना पर चर्चा की। तेजस्वी ने प्रेस से कहा कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट होना जरूरी है।विपक्षी एकता में नीतीश फेल!जानकारों की मानें, तो विपक्षी एकता की कवायद में नीतीश फेल्योर साबित हुए। अभी तक की नीतीश की सबसे बड़ी उपलब्धि है पटना में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से विपक्ष को एक करने की अपील। तेजस्वी ये बात समझते हैं। तेजस्वी ने धीरे से लालू से सलाह ली और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में खुद की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए कूद पड़े। पिछले साल तेजस्वी यादव ने बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी से मुलाकात की थी। तेजस्वी ने तेलंगाना के सीएम और भारत राष्ट्र समिति प्रमुख के चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के सीएम और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन से मुलाकात की थी। तेजस्वी इस दौरान यूपी के पूर्व सीएम और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से कई बार मुलाकात कर चुके हैं। उन्होंने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता आदित्य ठाकरे का भी गर्मजोशी से स्वागत किया था। जब आदित्य ठाकरे पटना आए थे। सियासी जानकारों की मानें, तो जब नीतीश कुमार देशव्यापी स्तर पर विपक्षी एकता के अभियान में लगने वाले हैं। उससे पहले तेजस्वी का इस तरह एक्टिव होना किस ओर इशारा कर रहा है? इस प्रश्न का जवाब वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुछ इस प्रकार देते हैं। धीरेंद्र कहते हैं कि तेजस्वी भविष्य की ओर देख रहे हैं। वे सबसे पहले एक राजनेता के रूप में स्वयं को बढ़ाना चाहते हैं। राष्ट्रीय फलक पर अपनी सियासी टीआरपी ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं। बिहार से परे हटकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वीकृति सुनिश्चित करना चाहते हैं। इस कवायद में उन्हें नीतीश कुमार से कोई मतलब नहीं। तेजस्वी को पता है कि नीतीश कुमार का अवसान काल शुरू है। तेजस्वी 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद की अलग उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं।तेजस्वी यादव बिग गेम प्लानसियासी जानकारों की मानें, तो तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय राजनीति के गैप को पाटने के लिए खुद को सक्रिय कर लिया है। धीरेंद्र कहते हैं कि आप देखिए कुछ महीने पहले नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए सक्रिय होते हैं। उन्हें चारों तरफ से ठंडा रिस्पांस मिलता है। उधर, बिहार में तेजस्वी को 2025 में नीतीश नेतृत्व देने की बात करते हैं। तेजस्वी को लगता है कि 2025 में अभी काफी देर है। उससे पहले क्यों न राष्ट्रीय राजनीति में खुद को झोंक दिया जाए। राजद नेता भी दबी जुबान में ये मानते हैं कि तेजस्वी यादव विपक्षी एकता के लिए अपने दम पर प्रयास कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री की ओर से तेजस्वी को ऐसा कोई निर्देश नहीं मिला है। जानकार मानते हैं कि इससे साफ स्पष्ट है कि तेजस्वी यादव पूरी तरह स्वतंत्र होकर चलना चाहते हैं। चाचा पर भतीजा लगातार राजनीति रूप से भारी पड़ रहा है। नीतीश ये समझ चुके हैं कि लंबे वक्त तक बीजेपी के साथ रहने से उनकी छवि दूसरी बनी हुई है। एक बार पलटी मारकर बीजेपी के साथ जा चुके हैं। धीरेंद्र कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश की सियासी विश्वसनीयता काफी कम है। तेजस्वी के ये सारी बातें पता है। राजद का मानना है कि देश के मसलों को लेकर तेजस्वी यादव मूकदर्शक नहीं बने रह सकते। राजद का स्पष्ट मानना है कि तेजस्वी यादव अब बड़ी जिम्मेदारी संभालने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। तेजस्वी ने राष्ट्रीय राजनीति के अहम मुद्दों पर स्टैंड लेने का मन बना लिया है। इसलिए तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति से इतर सियासी मेल-मुलाकात में लगे हुए हैं। लालू यादव स्वास्थ्य कारणों से राष्ट्रीय राजनीति में अब उतने सक्रिय नहीं हैं। तेजस्वी पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए ‘बड़े गेम प्लान’ पर काम कर रहे हैं।