तेहरान: ईरान के राष्ट्रपति की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। इस हादसे के बाद ईरान में सियासी संकट गहरा गया है। इस हादसे को कोई इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की साजिश बता रहा है तो कोई इसे ईरान के मौजूदा 86 साल के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई के बेटे मुज्तबा खामनेई के सर्वोच्च सत्ता हासिल करने की खूनी साजिश बता रहा है। एक्सपर्ट ये कह रहे हैं कि ईरान के राष्ट्रपति का चुनाव तो तय प्रक्रिया से हो ही जाएगा। मगर, संकट ईरान के सर्वोच्च नेता के चुनाव कराने को लेकर है, जो बेहद जटिल है। ईरान में नए सुप्रीम लीडर के चुनाव में पेंच फंस सकता है। खामनेई के बेटे को मिल सकती है सर्वोच्च सत्तामाना जा रहा है कि खामनेई के बेटे सैयद मुज्तबा हुसैनी खामनेई को ईरान के सुप्रीम लीडर की कमान सौंपी जा सकती है। 54 साल के मुज्तबा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रईसी ही थी। रईसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत के बाद मुज्तबा के सर्वोच्च नेता बनने की राह साफ मानी जा रही है। मुज्तबा ने ईरान-इराक जंग में 1987 से लेकर 1988 तक बड़ी भूमिका निभाई थी। हालांकि, सोशल मीडिया पर मुज्तबा पर इस हादसे की साजिश रचने के आरोप भी लग रहे हैं। इसे लेकर कई कॉन्सिपिरेसी थ्योरी भी चल रही है। एक ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने X पर लिखा है कि एक कॉन्सिपिरेसी थ्योरी यह भी है कि इस हेलीकॉप्टर हादसे में खामनेई के बेटे का हाथ हो सकता है, ताकि वो अपने पिता की जगह लेने की राह साफ कर सके।मुज्तबा बन सकते हैं ईरान में विवाद की जड़ईरान एक इस्लामी रिपब्लिक देश है। ऐसे में नए सुप्रीम लीडर के रूप में मुज्तबा खामनेई को बनाए जाने से विवाद बढ़ सकता है। दरअसल, यह एक तरह से परिवारवाद को बढ़ावा देने जैसा होगा। क्योंकि, 1979 की के बाद राजशाही को खत्म करके गणतंत्र की स्थापना की गई थी। मुज्तबा के सुप्रीम लीडर बनने में सबसे बड़ी अड़चन वहां के इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स भी हैं, जो मुज्तबा को खास पसंद नहीं करता है। हार्ड लाइनर मुज्तबा को कुछ मौलवियों का समर्थन जरूर हासिल है। ईरान के सुप्रीम लीडर की क्या होती है भूमिकाईरान में राष्ट्रपति और संसद के लिए चुनाव नियमित रूप से होते हैं। राष्ट्रपति राजकाज के रेगुलर काम करता है। मगर, सुप्रीम लीडर देश के लिए सभी बड़ी नीतियों पर अंतिम मुहर लगाता है। वह सैन्य बलों का कमांडर इन चीफ होता है। उसके पास देश की ताकतवर रिवॉल्यूशनरी गॉर्ड की कमान भी होती है।गार्जियन काउंसिल है देश की गार्जियनईरान में सुप्रीम लीडर के चुनाव में 12 सदस्यीय गार्जियन काउंसिल की अहम भूमिका होती है। यह विद्वानों की बड़ी परिषद होती है। इसके अलावा असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स होती है, जो चुने हुए लोगों का एक निकाय होता है। यह एक ज्यूरी होती है, जो सीधे तौर पर ईरान के सुप्रीम लीडर का चुनाव करती है। गार्जियन काउंसिल के आधे सदस्यों यानी 6 लोगों का चुनाव सुप्रीम लीडर ही करता है। यही गार्जियन काउंसिल देश के लिए राष्ट्रपति, संसद और असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स के चुनाव में अहम भूमिका निभाती है।खुमैनी के बाद खामनेई ने संभाली थी सत्ताइतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह बताते हैं कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद यह दूसरी बार होगा, जब ईरान के लिए नए सुप्रीम लीडर का चुनाव होगा। 1989 में खामनेई ने इस्लामी गणराज्य के संस्थापक अयातुल्लाह रुहल्लाह खुमैनी के बाद सर्वोच्च सत्ता संभाली थी।कैसे चुना जाएगा अगला सुप्रीम लीडरसुप्रीम लीडर का चुनाव 88 सीटों वाली एसेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स करेगी। असेंबली के सदस्यों का चुनाव हर 8 साल में गार्जियन काउंसिल समर्थित उम्मीदवारों में से किया जाता है। मार्च में देश के पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी को सुप्रीम लीडर बनने पर रोक लगा दी गई थी, वहीं रईसी ने एक सीट जीत ली थी। ईरान में सर्वोच्च नेता चुनने में संविधान कहता है कि अगर एक व्यक्ति के सुप्रीम लीडर का चुनाव कराने में मुश्किल आती है तो सुप्रीम लीडरशिप की एक काउंसिल बनाई जा सकती है, जो इस्लामी विद्वान हों।मुज्तबा के सुप्रीम लीडर बनने पर क्या होगाइतिहासकार दानपाल सिंह कहते हैं कि अगर खामनेई के बेटे मुज्तबा को सुप्रीम लीडर बनाया जाता है तो यह 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले के दौर में जाने जैसा होगा। गणतंत्र की स्थापना के बाद फिर से सैन्य तानाशाही का दौर शुरू हो सकता है, क्योंकि सुप्रीम लीडर ही ऑर्म्ड फोर्सेज का कमांडर इन चीफ होता है। इससे आम ईरानी लोगों के बीच गुस्सा भड़क सकता है। ईरान के यूरेनियम आधारित न्यूक्लियर प्रोग्राम में और तेजी आ सकती है, जिससे ईरान को पश्चिमी देशों के प्रतिंबधों का सामना करना पड़ सकता है।