नई दिल्ली: केरल में जंगली जानवरों और इंसानों के बीच झगड़े बढ़ने के कारण आज वायनाड जिले में एक बड़ी मंत्री-स्तरीय बैठक होने वाली है। इस महीने ही दो लोगों की हाथियों के हमले में मौत हो गई है। 10 फरवरी को केरल के वायनाड जिले के मानंतवाडी में जब ‘बेलूर मख्ना’ (कर्नाटक के बेळूर तालुक से केरल आने के कारण बेलूर, ‘मख्ना’ का मतलब है बिना दांत वाला) नाम के हाथी ने पी अजीश को देखा, तब वह अकेला नहीं था। लेकिन 47 साल के अजीश भीड़ के अन्य सदस्यों की तरह भाग्यशाली नहीं थे। जब वे सुरक्षा के लिए भागे, तो हाथी ने अजीश का पीछा किया, जिसने हाथी से बचने के लिए एक परिसर की दीवार को फांद दिया। हालांकि, हाथी ने परिसर का गेट तोड़ दिया और अजीश पर हमला कर दिया, जिन्हें बाद में स्थानीय अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया।10 साल में जानवरों के हमले में 300 की मौतअजीश की मौत के कुछ दिनों बाद, 16 फरवरी को वायनाड के चेरियमाला के जंगलों में स्थानीय वन सुरक्षा परिषद के सदस्य और पचास के दशक में इकोटूरिज्म गाइड वी पॉल की पैरों तले कुचलकर मौत हो गई। इससे पहले, 31 जनवरी को उसी जिले में एक किसान की भी इसी तरह मौत हो गई थी। पिछले चार वर्षों में केरल में अकेले हाथियों के हमलों में 57 लोगों की जान जा चुकी है, यह आंकड़ा लोकसभा में साझा किया गया था। यह आंकड़ा केरल में मनु्ष्यों और जानवरों के संघर्ष जैसे मुद्दों को बता रहा। 2022 की केरल राज्य योजना बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में 10 वर्षों में जानवरों के हमलों में 300 से अधिक लोगों की मौत हुई है। हालिया मौतों से स्थानीय लोगों में आक्रोश है। 17 फरवरी को वायनाड जिले में इसे लेकर हड़ताल भी हुई थी। लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना आसान नहीं है।सालइंसानी मौतजानवरों की मौत, फसलों का नुकसान (घटनाओं की संख्या)मुआवजा (लाख में) 2019-201026,063714.22020-21977,077785.62021-221527,0941,0562022-23995,800803.12023-24*1054,555161.1कुल55530,5893,519.90आखिर जानवरों के गुस्से का कारण क्या है?केरल का लगभग एक तिहाई हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है। विशेषज्ञ बताते हैं कि वायनाड और राज्य के उत्तरी क्षेत्रों में मनुष्यों और जानवरों में संघर्ष एक गंभीर समस्या है। यह समस्या हाल में शुरू नहीं हुई है, इसे और बढ़ा दिया गया है, खेती के तरीकों में बदलाव, पशु पालन जैसी व्यावसायिक गतिविधियों ने। घटता जंगल, चिंता का कारणचीनी, केला, रबर आदि व्यावसायिक फसलें जंगली जानवरों के लिए आसान भोजन का स्त्रोत हैं। नदी घाटी परियोजनाओं के कारण हाथियों के आवास सिकुड़ गए हैं। इसके अलावा जंगल में अतिक्रमण और उसके ऊपर से उच्च वोल्टेज बिजली लाइनों, रेलवे लाइनों और राजमार्गों आदि के लिए वन भूमि का उपयोग, हाथियों के हमलों के खतरे को बढ़ा दिया है। लताना जैसी जंगली किस्मों को लगाना, नीलगिरी और बबूल जैसी विदेशी प्रजातियों के आवास पर प्रतिकूल असर डालता है। पुराने और नए का भी अंतर हैराज्य सरकार का कहना है कि जंगल की सीमाओं पर रहने वाली वर्तमान पीढ़ी उतनी सहनशील नहीं है जितना पुरानी पीढ़ियों के लोग होते हैं। पुरानी पीढ़ी जानवरों के साथ रहना सीखा था। जंगली सूअर के हमलों पर एक याचिका सुनते समय केरल हाईकोर्ट ने राज्य में मनुष्य और जानवरों की लड़ाई को नियंत्रित करने के लिए प्रयास करने के लिए कहा था।केंद्र से कानून बदलने की मांगलगातार जानवरों के हमलों के मामलों के बीच, केरल विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें केंद्र से कानूनों को सरल बनाने का अनुरोध किया गया है ताकि वह इस मुद्दे से अधिक प्रभावी ढंग से निपट सके। इसने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में बदलाव की मांग की है ताकि मुख्य वन्यजीव वार्डन (सीडब्ल्यूडब्ल्यू) को उपलब्ध शक्तियों का प्रयोग प्रधान मुख्य वन संरक्षक (सीएफसी) द्वारा किया जा सके, जो आपात स्थिति में कदम उठाने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे। अधिनियम की धारा 11(1)(ए) के तहत, CWW किसी भी व्यक्ति को जंगली जानवरों को मारने की अनुमति दे सकता है यदि वे मानव जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं। प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि जंगली सूअरों को वर्मिन अधिनियम के तहत घोषित किया जाए ताकि उनका शिकार करना कानूनी हो सके।