बिहार में समय से पहले हो सकते हैं चुनाव! जानिए नीतीश-BJP और तेजस्वी के किस कदम ने दिया इशारा

पटना: बिहार के सियासी माहौल में चुनावी मौसम की गंध आ रही है। सप्ताह भर से बिहार में कुछ ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुई हैं, जिससे हर दल और गठबंधन के मन में शंका का भाव दिख रहा है। चिराग पासवान की अपनी ही सरकार के प्रति उलटबांसी से राजनीतिक घटनाक्रम की शुरुआत हुई। उसके बाद चिराग की तरह ही बोलने वाले जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी का इस्तीफा आ गया। और ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर बैठक की। उसी दिन बिहार भाजपा के तमाम सांसद-विधायक सदस्यता अभियान के बहाने जुटे। अगले दिन चार सितंबर को आरजेडी ने भी अपने सांसदों-विधायकों की बैठक बुलाई। पांच सितंबर को तेजस्वी यादव दिल्ली रवाना हुए और छह सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पटना पहुंच गए। बिहार आने से पहले नड्डा ने चिराग पासवान के साथ बैठक की। राजनीतिक दलों की अचानक बढ़ी सक्रियता देख कर बिहार में चुनावी माहौल की आहट सुनाई पड़ने लगी है।समय से पहले चुनाव चाहते हैं नीतीशजनवरी में नीतीश कुमार की एनडीए में पुनर्वापसी हुई। तभी से यह चर्चा रह-रह कर होती रही कि नीतीश कुमार समय से पहले बिहार विधानसभा का चुनाव कराना चाहते हैं। तब यह भी जानकारी मिली कि भाजपा लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव के पक्ष में नहीं है। हां, लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव हो तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। लोकसभा का चुनाव बीतने के बाद फिर यह चर्चा चली कि नीतीश कुमार चुनाव जल्द कराने की तैयारी में हैं। नीतीश कुमार राज्य में चल रही योजनाओं का लगातार निरीक्षण कर रहे हैं। नई योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। समीक्षा बैठकें लगातार हो रही हैं। पिछले साल ही नीतीश ने समीक्षा बैठक के दौरान ही कहा था कि काम जल्दी पूरा करें। चुनाव कभी भी हो सकता है। तब से यह बात रह-रह कर उठती रही है कि बिहार में समय से पहले चुनाव हो सकते हैं।ताजा सरगर्मी चुनावी तैयारी तो नहीं!हफ्ते भर से बिहार की राजनीति में अचानक जो सरगर्मी बढ़ी है, उसे भी लोग चुनाव समय से पहले होने की संभावना के तौर पर देख रहे हैं। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार तीसरी बार बनने के बाद से ही इंडिया ब्लॉक ने राज्यों में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। बंद, विरोध प्रदर्शन जैसी गतिविधियां बिहार में भी दिख रही हैं। बैठकों का दौर शुरू हो गया है। तेजस्वी यादव ने आभार यात्रा निकालने की तैयारी कर ली है। हालांकि तीसरी बार उन्होंने यात्रा की तारीख बदली है। नेताओं की आवाजाही बढ़ने लगी है। सांसदों-विधायकों की बैठक के बाद तेजस्वी दिल्ली गए हैं। संभव है कि उनकी मुलाकात कांग्रेस के बड़े नेताओं से भी हो। भाजपा के रष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बिहार दौरे पर आए। इन गतिविधियों को देख कर चुनावी आहट का अनुमान लोग लगाने लगे हैं।नए गठजोड़ का अंदेशा क्यों दिख रहा?चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए हुई बैठक में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार मिले। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जो प्रक्रिया है, उसमें तीन सदस्य होते हैं। मुखयमंत्री के अलावा उनके द्वारा नामित कोई व्यक्ति और नेता प्रतिपक्ष कमेटी में होते हैं। इसी वजह से तेजस्वी बैठक में पहुंचे थे। बैठक महज खानापूर्ति थी, लेकिन दोनों नेता करीब घंटा भर साथ रहे। उसके बाद से ही यह बात हो रही है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव नए गठजोड़ की कोशिश कर रहे हैं। यह बात गलत भी हो सकती है, लेकिन नीतीश कुमार का जैसा अतीत रहा है, उसे देख कर अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है। जेपी नड्डा का इसी बीच बिहार आना भी अटकलों को हवा दे रहा है।नीतीश की पाला बदल की पुरानी आदतनीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव के दौरान कहा करते थे कि अब वे एनडीए से कभी अलग नहीं होंगे। नरेंद्र मोदी से बिदक कर कभी एनडीए से अलग हुए नीतीश उनकी तारीफ के पुल भी बांधते थे। नड्डा के सामने उन्होंने फिर कहा कि दो बार आरजेडी के साथ जाकर उन्होंने गलती कर दी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मगर उनका अतीत पाला बदल का ही रहा है। साल 2005 से ही भाजपा और जेडीयू साथ रहे, लेकिन 2013 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाया तो नीतीश ने भाजपा का साथ चोड़ दिया था। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश अकेले लड़े। 2015 में वे आरजेडी के साथ हो गए। 2017 में आरजेडी का साथ छोड़ फिर भाजपा के साथ आ गए। 2022 में वे फिर आरजेडी के साथ हो गए। इसी दौरान उन्होंने विपक्षी एकता की बुनियाद रखी। इंडिया ब्लॉक में जब उपेक्षा हुई और आरजेडी ने तेजस्वी यादव के लिए सीएम की कुर्सी खाली करने का दबाव बनाया तो नीतीश ने इसी साल जनवरी में भाजपा से हाथ मिला लिया। तब से वे पूरे मन से एनडीए के साथ हैं। उन्होंने सरकार पर इसलिए कोई दबाव नहीं बनाया कि उनके सहयोग से ही केंद्र की मोदी सरकार चल रही है। पर, पिछला रिकार्ड देख कर कोई उन पर भरोसा नहीं करता कि वे एनडीए में बने ही रहेंगे। पर, वे इस बार सिर्फ सीएम की कुर्सी के लिए नहीं करेंगे। इसके पीछे उनकी मंशा समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने की हो सकती है। लोकसभा चुनाव के परिणाम से नीतीश को ताकत मिली है। इसलिए उन्हें पूरा भरोसा है कि विधानसभा चुनाव में भी जनता उन्हें निराश नहीं करेगी।