कैनबरा: मौसम से जुड़ी घटनाओं अल नीनो और ला नीना से जुड़ा नया शोध हुआ है। इस शोध में अनुमान लगाया गया है कि सदी के अंत तक यह घटनाएं कमजोर होंगी, लेकिन उससे पहले आने वाले कुछ दशकों में यह अपना भयंकर रूप दिखाएंगी। ला नीना के लगातार तीन वर्षों के बाद पिछले सप्ताह मौसम विज्ञान संगठन ने घोषणा की है कि अल नीनो अब चल रहा है, जिससे दुनिया के कई हिस्सों में तापमान बढ़ने की संभावना है। ऑस्ट्रेलिया का मौसम विज्ञान विभाग लगातार इस पर नजर रखे हुए है।दुनियाभर के कई जलवायु मॉडल का इस्तेमाल और सिमुलेशन के परिणामों के जरिए अगले 70 वर्षों में अल नीनो और ला नीना घटनाओं में काफी बदलाव देखा गया है। हालांकि यह मॉडल पूरी तरह कन्फर्म नहीं हैं। अल नीनो और ला नीना की घटनाओं के कारण बारिश में वृद्धि या कमी का अनुमान है। आने वाले दशकों में अल नीनो यानी गर्मी बढ़ाने वाली घटना ज्यादा होगी और तब भी बारिश के अनियमित होने के आसार हैं। मॉडल का अनुमान है कि अल नीनो के बाद मजबूत और लंबी ला नीना घटनाएं होंगी, जो ठंड के लिए जिम्मेदार होती हैं।क्या होगा अल नीनो का असरअल नीनो और ला नीना की घटनाओं का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता है और इस कारण से इनके अनुमानित परिवर्तन महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में अल नीनो से आम तौर पर जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती हैं और सूखा पैदा होता है। इंडोनेशिया में वहीं, इसके विपरीत मौसम शुष्क हो जाता है। हालांकि अल नीनो और ला नीना घटनाओं की ताकत यह समझने में भी महत्वपूर्ण है कि उनका प्रभाव कैसे बदल सकते हैं। अगर अल नीनो मजबूत होता है तो इसका प्रभाव बारिश पर ही पड़ेगा। दुनिया के कुछ हिस्सों में हद से ज्यादा बारिश होगी, तो कहीं सूखा पड़ेगा।भारत पर अल नीनो का प्रभावअल नीनो के कारण भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया में कम फसल होने का अनुमान है। भारत के संदर्भ में विश्लेषकों का कहना है कि गंभीर अल नीनो की स्थिति में फसल उत्पादन को नुकसान हो सकता है। आम तौर पर अल नीनो भारत की खरीफ फसल उत्पादन को प्रभावित करता है। मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक क्रिसिल के शोध निदेशक पुशन शर्मा का कहना है कि अल नीनो के कारण अगस्त और सितंबर के दौरान कम बारिश की उम्मीद से कपास, दलहन और तिलहन के उत्पादन में गिरावट देखी जा सकती है।