प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर फ्रांस में हैं। आज बैस्टील डे परेड प्रोग्राम में वह गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर शामिल होंगे। यह यात्रा इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों का यह 25वां साल है। द्विपक्षीय रिश्तों के संदर्भ में यह बात याद की जा सकती है कि फ्रांस ने भारत को उस समय समर्थन दिया था, जब उसे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाए जाने का फ्रांस ने विरोध किया था। इस पॉजिटिव पॉइंट से दोनों देशों के रक्षा संबंध आगे ही बढ़ते गए। फ्रांस भारतीय सेना को आधुनिक लड़ाकू जेट और पनडुब्बियों जैसे महत्वपूर्ण साजो-सामान की आपूर्ति करता रहा। 2018 से 2022 के बीच फ्रांस भारत का दूसरा सबसे बड़ा डिफेंस सप्लायर बन गया। आज की तारीख में देश के कुल रक्षा आयात का 29 फीसदी फ्रांस से ही होता है। पीएम मोदी की मौजूदा यात्रा इस मायने में अहम मानी जा रही है कि इसमें 26 राफेल मरीन फाइटर जेट्स और तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खरीद का समझौता हो सकता है। अगर यह हो जाता है तो भारत को सैन्य हथियारों के मामले में उस अनिश्चितता से उबरने में आसानी होगी, जो यूक्रेन युद्ध के चलते रूसी डिफेंस सप्लाई में आई बाधाओं के चलते पैदा हुई है। इसके अलावा भारत और फ्रांस के रिश्तों का एक और अहम पहलू यह है कि भू-राजनीति के हाल के दिनों में बदलते समीकरण भी इन दोनों देशों को करीब ला रहे हैं। कई वजहों से ट्रांस अटलांटिक अलायंस सिस्टम में फ्रांस कुछ अलग-थलग पड़ा दिख रहा है। उदाहरण के लिए, 2021 में बने ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) का जिक्र किया जा सकता है, जिससे फ्रांस को बाहर रखा गया। फ्रांस इसका जवाब भारत जैसे देशों से अपनी करीबी बढ़ाने की कोशिशों के रूप में दे रहा है। यह स्थिति भारत के अनुकूल है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके साथ तालमेल बढ़ाना चाहता है। बढ़ाए भी क्यों ना। आखिर दोनों देश इस क्षेत्र में वर्चस्वादी चीन के खिलाफ हैं। लेकिन फिर भी दोनों देशों के रिश्तों का सबसे अहम पक्ष व्यापारिक गतिविधियों का ही है। इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा संभावनाएं भी हैं। हालांकि इस क्षेत्र में भी प्रगति हुई है लेकिन इसके बावजूद 2022-23 में दोनों देशों के बीच का व्यापार महज 12.56 अरब डॉलर का रहा। जानकारों के मुताबिक यह काफी कम है और थोड़े प्रयासों से भी इसमें अच्छा-खासा इजाफा हो सकता है। इसलिए दोनों पक्षों को अब भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच जल्द से जल्द मुक्त व्यापार समझौता करने की दिशा में प्रयास तेज करने पर ध्यान देना चाहिए।