संपादकीय: जापानी पीएम की भारत यात्रा में हिंद-प्रशांत पर फोकस

दो दिवसीय दौरे पर भारत आए जापानी प्रधानमंत्री की यह यात्रा द्विपक्षीय रिश्तों के ही लिहाज से नहीं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आकार ले रहे अंतरराष्ट्रीय समीकरणों की दृष्टि से भी अहम मानी जा रही है। नई दिल्ली में वह प्रधानमंत्री से मिले और दोनों ने क्रिटिकल टेक्नॉलजी, लॉजिस्टिक, फूड प्रॉसेसिंग, स्टील, MSME जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की। लेकिन इस यात्रा का ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू रहा मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर उनका नजरिया, जिसका खुलासा उन्होंने दिल्ली में एक थिंक टैंक के कार्यक्रम के दौरान किया। वैसे, इसमें कोई चौंकाने वाली बात इसलिए नहीं कही जाएगी क्योंकि इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता पर जापान की नजर शुरू से रही है और इसके खतरों को लेकर भी उसकी सतर्कता के संकेत मिलते रहे हैं। ध्यान रहे, वह जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ही थे, जिन्होंने 2007 में भारतीय संसद को संबोधित करते हुए हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में उभरती सामरिक चुनौतियों के साझेपन को रेखांकित करते हुए इनमें तालमेल की जरूरत बताई थी। यही नहीं अपने उस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने एशियाई लोकतांत्रिक देशों में सहयोग बढ़ाने की जरूरत बताते हुए खास विजन भी रखा था, जो आगे चलकर क्वाड – भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साझा मंच- के निर्माण का मुख्य आधार बना।चीन को लेकर जापान की आशंकाओं ने तब और मजबूती हासिल कर ली, जब पिछले साल यूक्रेन पर हमले के ठीक पहले उसने रूस के साथ अपने रिश्तों को सभी सीमा से परे बताया। आश्चर्य नहीं कि जापान ने अपने हितों की सुरक्षा को लेकर औरों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी क्षमता बढ़ाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री किशिदा रक्षा पर खर्च दोगुना बढ़ाने का ऐलान कर चुके हैं। साफ है कि आने वाले समय की जियो-पॉलिटिक्स में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अहम भूमिका होगी। जापान इसमें भारत के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ना चाहता है।यह दौर इस लिहाज से भी खास है कि जहां भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, वहीं जी-7 देशों की अध्यक्षता जापान के पास है। किशिदा ने मई में हिरोशिमा में होने वाली जी-7 देशों की बैठक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया है और पीएम मोदी उस आमंत्रण को स्वीकार भी कर चुके हैं। निश्चित रूप से ये सभी पॉजिटिव संकेत हैं।लेकिन ध्यान रहे, दोनों देशों के बीच कई मसलों पर मतभेद भी हैं। खासकर रूस को लेकर जहां जापान का रुख आक्रामक है, वह उसके खिलाफ पाबंदियों को और बढ़ाने की वकालत करता है वहीं भारत संतुलित रवैया रखे हुए है। उसने युद्ध के लिए रूस को सीधे तौर पर दोषी ठहराने से भी परहेज किया है। साफ है कि दोनों देशों के बीच सहयोग और तालमेल की राह खुली हुई है। अगर कहीं कोई बाधा है भी तो उसे दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रिश्तों को देखते हुए सुलझाना मुश्किल नहीं होगा।