जिस तरह से वह बीते छह महीनों से राज्य का शासन चला रहे हैं और साहसी निर्णय ले रहे हैं, वह काबिले तारीफ है। इसी प्रकार से उन्होंने जिस तरह से शिवसेना के साथ अलग होकर अपना गुट बनाया उसके लिए भी हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है, जो एकनाथ शिंदे के पास है। एकनाथ शिंदे ने कहा कि दोनों ही दल के नेताओं ने यह पार्टी बड़े संघर्ष और मेहनत से बनाई है। दोनों ही नेताओं ने लाठियां भी खाई हैं। ऐसे में संघर्ष की कीमत वह जानते हैं। दोनों दल मिलकर महाराष्ट्र की बेहतरी के लिए काम करेंगे।
प्रकाश आंबेडकर के साथ उद्धव गुट का होगा गठबंधन
महाराष्ट्र में बीते कुछ दिनों से उद्धव ठाकरे गुट और वंचित बहुजन अघाड़ी के मुखिया प्रकाश आंबेडकर के एक साथ आने की खबरें चल रही थी। कुछ दिनों पहले दोनों नेताओं ने एक साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी संबोधित किया था। उसके बाद से यह तय माना जा रहा था कि राज्य में शिव शक्ति और भीम शक्ति का प्रयोग होगा। आज भी प्रकाश आंबेडकर की तरफ से यह कहा गया कि वह उद्धव ठाकरे गुट के साथ आने को तैयार हैं। हालांकि, उन्होंने पहले बीएमसी चुनाव में 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था। फिलहाल उनका कहना है कि गठबंधन में उन्हें जो भी सीटें दी जायेंगी। वह उस पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे। इसके साथ ही उन्होंने एक आशंका भी जता दी है कि एनसीपी को इस गठबंधन से एतराज हो सकता है क्योंकि अगर वंचित बहुजन अघाड़ी महाविकास अघाड़ी में शामिल होती है तो एनसीपी की सीटों को कम करना पड़ सकता है।
बीजेपी और आरपीआई का गठबधंन
दूसरी तरफ बीजेपी के साथ केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की पार्टी आरपीआई का गठबंधन है। रामदास अठावले हर चुनाव में बीजेपी के प्रचार के लिए जाते हैं। इसके साथ ही वह अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का भी गठबंधन की तरफ से प्रचार करते हैं। बीजेपी के साथ गठबंधन में उन्हें खुद केंद्र में राज्यमंत्री का पद मिला है। वहीं महाराष्ट्र में जब शिवसेना-बीजेपी की पुरानी सरकार थी। तब अठावले गुट के एक नेता को राज्य मंत्री भी बनाया गया था। हालांकि, कुछ महीनों बाद ही सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया था।
हर दल को क्यों चाहिए भीम शक्ति का साथ?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर चाहे उद्धव ठाकरे हो एकनाथ शिंदे हो या फिर बीजेपी हर किसी को दलित समाज यानी भीम शक्ति का साथ क्यों चाहिए, आखिर क्यों हर दल इन के साथ गठबंधन करना चाहता है? इसके पीछे भी एक लॉजिक है। दरअसल महाराष्ट्र में दलित समाज की अच्छी खासी संख्या है। इस वजह से कई नेता इस वर्ग पर अपना अधिकार और प्रभुत्व जताते रहते हैं। उन्हीं में आरपीआई प्रमुख रामदास अठावले, पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख जोगेंद्र कवाडे और वंचित बहुजन अघाड़ी के मुखिया प्रकाश आंबेडकर हैं। खास बात यह भी है कि इतना बड़ा वोट बैंक होने के बाद भी यह समाज अलग-अलग दलों और नेताओं के बीच में बटा हुआ है। इसी वजह से इस समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता तो बड़े हो जाते हैं लेकिन समाज वहीं का वहीं है।
इस वोट बैंक पर अब हर सियासी गुट की नजर है। हर कोई जानता है कि जिस तरफ यह ताकत झुक गई उसकी जीत तय है। कई बार यह भी देखा गया है कि गठबंधन में भीम शक्ति का न होना बड़े राजनीतिक दलों के लिए मुसीबत का सबब बन जाता है। क्योंकि इनके द्वारा उतारे गए उम्मीदवार चुनाव में जीत भले न दर्ज कर पाते हों लेकिन जीतने वाले असली उम्मीदवार के वोटों को काट देते हैं। इसका खामियाजा भी बड़ी पार्टियों को उठाना पड़ता है। इसी गणित के मद्देनजर अब सियासी पार्टियों ने भीम शक्ति की ताकत को समझते हुए उन्हें अपने साथ शामिल करना शुरू किया है।