Dussehra 2022 : यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन, कुल्लू का दशहरा उत्सव जहां आज पहुंचेंगे पीएम

दशहरा पर आज पीएम नरेंद्र मोदी कुल्लू दशहरा उत्सव में शामिल होंगे, ऐसा पहली बार होगा जब कुल्लू के इस उत्सव के साक्षी देश के पीएम बनेंगे. यह दशहरा का पहला ऐसा अंतरराष्ट्रीय उत्सव है, जो सात दिनों तक चलता है, कुल्लू के ढालपुर मैदान में होने वाला यह आयोजन बेहद अनोखा है. यहां न रामलीला का आयोजन होता है और न ही रावण का दहन किया जाता है, फिर भी ये आयोजन इतना खास क्यों है, आइए जानते हैं.
देव-मानस मिलन की परंपरा
कुल्लू दशहरा में सबसे पहले देव मानस मिलन की परंपरा है, ऐसी मान्यता है कि घाटी के सभी देवता भगवान रघुनाथ को अधिष्ठाता मानकर इस दशहरा उत्सव में हिस्सा लेते हैं. यहां का आकर्षण रघुनाथ जी की रथयात्रा है, जिसमें देवी देवता भी साथ चलते हैं, रघुनाथ जी के रथ को खींचना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.
पुतला दहन के नाम पर जलाई जाती हैं झाड़ियां
कुल्लू दशहरा की खासियत ये भी है कि यहां न तो रामलीला का आयोजन होता है और न ही पुतला दहन किया जाता है, चूंकि ये उत्सव देव मिलन के तौर पर मनाया जाता है, इसलिए लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और आशीर्वाद लेते हैं. यहां सदियों से रावण का पुतला जलाने की बजाय प्रतीक के तौर पर झाड़ियों को जलाया जाता है. बड़े स्तर पर मेले का आयोजन होता है.
देश-विदेश में प्रसिद्धि, नाम है विश्व रिकॉर्ड
देशभर में दशहरा पर एक दिवसीय आयोजन होता है, लेकिन इससे इतर कुल्लू दशहरा सात दिवसीय होता है, इस उत्सव में कुल्लवी नाटी के रूप में एक साथ सर्वाधिक महिलाओं के नृत्य का रिकॉर्ड भी है, 1660 ईंसवी से इसकी शुरुआत मानी जाती है, देव संस्कृति के लिए यह विश्व भर में ख्यातिलब्ध है. विदेशों से भी कई रिसर्च स्कॉलर कुल्लू के इस दशहरा उत्सव पर रिसर्च करने के लिए आते हैं.
पीएम के पहुंचने के बाद शुरू होगी रथयात्रा
कुल्लू के ढालपुर मैदान में होने वाला दशहरा उत्सव 5 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक चलेगा. बुधवार दोपहर डेढ़ बजे भगवान रघुनाथ ढोल नगाड़ों के साथ ढालपुर मैदान पहुंचेंगे. बुधवार दोपहर तकरीबन 3:15 पर पीएम वहां जाएंगे. इसके बाद भुवनेश्वरी भेखली माता की अनुमति से यात्रा शुरू होगी. छड़ीबरदार महेश्वर सिंह यहीं उनकी विधिवत पूजा करेंगे.
रथयात्रा के लिए माता भुवनेश्वरी की अनुमति जरूरी
कुल्लू दशहरा में भगवान रघुनाथ की रथयात्रा निकालने से पहले माता भुवनेश्वरी की अनुमति ली जाती है, उनके इशारे के बाद यात्रा शुरू होती है, इसके पीछे एक मान्यता है कि कुल्लू के राजा ने एक बार जबरदस्ती भेखली मंदिर से माता का रथ मंगाने की कोशिश की, वे आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि तभी राजमहल में सांप निकलने लगे. राजा ने जब पता किया तो पता चला कि मां भुवनेश्वरी का प्रकोप है. इसके बाद कभी उनकी मर्जी के बिना उन्हें मंदिर से नहीं लाया गया. इसी के बाद यात्रा के लिए उनकी अनुमति लेने की परंपरा बन गई.