
तो आइए जानते हैं कि आखिर क्या मामला है…
अमेरिकी सैनिकों ने गुंबद पर किए दस्तखत
दरअसल, नीचे दी गई तस्वीर है साल 1940 की। उस वर्ष ताज महल की मरम्मत का काम किया गया था। इसी काम के लिए साहसी अमेरिकी सैनिक ताज महल के ऊपरी हिस्से तक पहुंच गए। ताज महल के शीर्ष पर बने गुंबद के ऊपरी हिस्से को कुछ नुकसान पहुंचा था। उसकी मरम्मती के लिए अमेरिकी सैनिकों को काम पर लगाया गया। मरम्मती के लिए अमेरिकी सैनिकों को 250 फीट की ऊंचाई चढ़नी पड़ी। फोटो में दिख रहे दोनों अमेरिकी सैनिकों के नाम एंथनी जे. स्कोपेलिटी (Corporal Anthony J. Scopelliti) (तस्वीर में बाएं) और जॉन सी बायरन जूनियर (John C. Byron, Jr.) (तस्वीर में दाएं) है। इन दोनों ने मरम्मती का काम पूरा करके वहां अपने-अपने दस्तखत भी कर दिए। इतना ही नहीं, ताज महल पर अन्य 93 अमेरिकी सैनिकों के नाम भी अंकित हैं। उन सभी ने खुद ही अपने हस्ताक्षर किए हैं।
दुनिया का सातवां अजबूा है ताज महल
ध्यान रहे कि दुनिया के सातवें आश्चर्य के रूप में उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित इस का नाम दर्ज है। ताजमहल को 1983 में यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल भी घोषित किया गया। ताज महल आगरा के यमुना नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। इसे 1632 इस्वी में मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल के मकबरे के रूप में बनवाना शुरू किया था। मकबरे का काम 1643 में पूरा हुआ। माना जाता है कि ताज महल का पूरा परिसर 1653 में लगभग 3.20 करोड़ रुपये के अनुमानित लागत से पूरा हुआ था। कहा जाता है कि इसमें करीब 20,000 कारीगरों को रोजगार मिला था। इसे कई लोगों ने मुगल वास्तुकला का सर्वोत्तम उदाहरण और भारत के समृद्ध इतिहास का प्रतीक माना है। हर वर्ष दुनियाभर से औसतन 70 से 80 लाख लोग ताज महल को देखने आते हैं।