नई दिल्ली: भारत ने ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के तहत ‘मल्टीपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल’ (MIRV) टेक्नोलॉजी के साथ देश में विकसित अग्नि-5 मिसाइल का सोमवार को सफल परीक्षण किया। इसके साथ ही ऐसी क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों के समूह में भारत शामिल हो गया। अग्नि-5 की मारक क्षमता 5,000 किलोमीटर है और इसे देश की सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए विकसित किया गया है। यह मिसाइल चीन के उत्तरी हिस्से के साथ-साथ यूरोप के कुछ क्षेत्रों सहित लगभग पूरे एशिया को अपनी मारक सीमा के तहत ला सकती है। अग्नि 1 से 4 मिसाइलों की रेंज 700 किमी से 3,500 किमी तक है और पहले ही तैनात की जा चुकी हैं। इस खास उपलब्धि की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘मिशन दिव्यास्त्र’ का नाम दिया। इस पूरे प्रोजेक्ट को DRDO की महिला वैज्ञानिक शीना रानी ने लीड किया। जिस प्रकार पीएम मोदी ने पूरे मिशन को ‘मिशन दिव्यास्त्र’ का नाम दिया ठीक वैसे ही वैज्ञानिक शीना रानी की चर्चा अब ‘दिव्य पुत्री’ के रूप में हो रही है। 57 वर्षीय शीना रानी, हैदराबाद में DRDO की हाईटेक लैब में कार्यरत एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक हैं। अपने साथियों के बीच वह एक खास नाम से जानी जाती हैं। काम के प्रति लगन और गजब के उत्साह के कारण उनके सहकर्मी ‘पावरहाउस ऑफ एनर्जी’ के नाम से भी बुलाते हैं। शीना रानी ‘अग्नि पुत्री’ के नाम से प्रसिद्ध, मशहूर मिसाइल वुमेन टेसी थॉमस के नक्शेकदम पर चलती हैं। टेसी थॉमस ने अग्नि सीरीज की मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और शीना रानी उसी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। ‘मिशन दिव्यास्त्र’ प्रोजेक्ट का नेतृत्व शीना रानी ने किया वह 1999 से ही अग्नि मिसाइल प्रणालियों पर काम कर रही हैं। में 25 साल बिताने वाली शीना रानी के कार्यकाल की यह सर्वोच्च उपलब्धि है। वह गर्व से कहती हैं मैं भारत की रक्षा करने में सहायता करने वाले DRDO परिवार की सदस्य हूं। उन्होंने तिरुवनंतपुरम के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पढ़ाई की है। इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन के साथ ही कंप्यूटर साइंस में भी शीना रानी को महारत हासिल है। भारत के सबसे प्रमुख अंतरिक्ष रॉकेट केंद्र, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में उन्होंने आठ साल काम किया। 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद वह सीधे तौर पर DRDO में शामिल हो गईं। 1999 से ही शीना रानी अग्नि सीरीज की सभी मिसाइलों के लॉन्च कंट्रोल सिस्टम पर काम कर रही हैं। उन्हें भारत के ‘मिसाइल मैन’ और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा मिलती है, जो DRDO के प्रमुख भी रह चुके हैं। डॉ. कलाम ने भी अपना करियर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से शुरू किया था और फिर इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम का नेतृत्व करने के लिए DRDO में शामिल हुए थे।