अंकिता भंडारी केस से चर्चा में आए 150 साल पुराने पुलिस पटवारी सिस्टम को उत्तराखंड सरकार खत्म करने की तैयारी में है. अब हत्या, रेप जैसे जघन्य अपराधों की जांच नियमित पुलिस ही करेगी. सभी केसों की फाइल तुरंत पुलिस को दी जाएगी. अन्य अपराधों को भी चरणबद्ध तरीके से पुलिस के पास भेजा जाएगा. इसको लेकर धामी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैबिनेट मीटिंग का ब्योरा पेश किया है. धामी सरकार ने कहा कि वो पुलिस पटवारी सिस्टम को फेज तरीके से खत्म करेगी. उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2018 के फैसले को सरकार लागू करेगी.
अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस की पटवारी चौकी की भूमिका संदिग्ध नजर रही थी. क्षेत्रीय पटवारी के अंकिता के गुमशुदा होने की जानकारी मिलने के महज कुछ ही घंटों बाद अचानक छुट्टी पर चले जाने से कई सवाल खड़े हुए थे. वहीं इस मामले में लापरवाही की गाज चार्ज लेने वाले नए पटवारी पर गिरी थी. पुलिस पटवारी की लापरवाही को लेकर भी धामी सरकार घिरी हुई थी. बीते 12 अक्टूबर को इसको लेकर धामी सरकार ने कैबिनेट बैठक की थी, जिसमें राजस्व क्षेत्रों में छह पुलिस थाने और 20 चौकी खोलने का प्रस्ताव पास हो गया था. ये सभी पुलिस चौकी और थाने उत्तराखंड के नौ जिलों में उन राजस्व क्षेत्र में खोले जाएंगे, जहां पिछले कुछ सालों में आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं.
1861 का अंग्रेजों का पुलिस एक्ट यहां लागू नहीं हुआ था
बता दें, पटवारी पुलिस महज एक कानून-व्यवस्था की मशीन नहीं बल्कि पहाड़ी समाज का एक अंग भी है. इस व्यवस्था की पहचान उत्तराखंड से है तो उत्तराखंड की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी पटवारी पुलिस में निहित है. उत्तराखंड की विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों के कारण ही 1861 का अंग्रेजों का पुलिस एक्ट यहां लागू नहीं हुआ था. विशिष्ट सांस्कृतिक परिवेश के कारण ही उत्तराखंड का प्रशासन जनजातीय असम की तरह अनुसूचित जिला अधिनियम 1874 के तहत चला था और उसी के अनुसार पटवारियों को पुलिस अधिकार मिले थे. इसलिए शासकों को उत्तराखंड को समझने के लिए पटवारी पुलिस को और उसके अतीत को समझना जरूरी है, जिसे समझा नहीं जा रहा है.
1874 में लागू हुई थी राजस्व पुलिस व्यवस्था
उत्तराखंड की बेमिसाल पटवारी पुलिस व्यवस्था का श्रेय जी.डब्ल्यू. ट्रेल को ही दिया जा सकता है. ट्रेल ने पटवारियों के 16 पद सृजित कर इन्हें पुलिस, राजस्व कलेक्शन, भू अभिलेख का काम दिया था. कंपनी सरकार के शासनकाल में पहाड़ी क्षेत्र के अल्मोड़ा में 1837 और रानीखेत में 1843 में थाना खोला था. राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था 1874 से लागू है. वर्तमान में राज्य के लगभग 61 प्रतिशत भाग पर यह व्यवस्था लागू है. इस व्यवस्था में पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, परगनाधिकारी, जिलाधिकारी और कमिश्नर आदि को राजस्व के साथ ही पुलिस का भी काम करना पड़ता है.
(भाषा के इनपुट के साथ).