दिल्‍ली की ‘गली चौकीदार वाली’ का 1857 क्रांति से कनेक्शन है, नाम के पीछे की कहानी जानिए

नई दिल्‍ली: पुरानी दिल्‍ली में कई संकरी-संकरी गलियां हैं। चांदनी चौक हो या बल्‍लीमारान, पुरानी दिल्‍ली के इलाकों की गलियां भूलभुलैया से कम नहीं। इन्‍हीं में से एक गली का नाम है- गली चौकीदार वाली। बल्‍लीमारान में काफी भीतर घुस चुकने के बाद, पंजाबी फाटक के पास यह गली पड़ती है। नाम से ही जाहिर है कि इस गली में कभी ‘चौकीदार’ रहा करते थे। हालांकि, के बारे में ज्‍यादा लिखित विवरण नहीं मिलता। नाम कैसे पड़ा, पूछने पर यहां के लोग पुरखों से सुनी-सुनाई कहानियां बताते हैं। इस गली से थोड़ी दूर पर ही अहाता काले साहब है, जहां की एक गली भी ‘गली चौकीदार वाली’ कहलाती है। उसके नाम की भी अपनी कहानी है। आइए, दिल्‍ली की गली चौकीदार वाली के बारे में जानते हैं।’गली चौकीदार वाली’ नाम कैसे पड़ा?जामिया मिलिया इस्‍लामिया में 2013 तक उर्दू पढ़ाने वाले प्रफेसर शमशुल हक उस्‍मानी बल्‍लीमारान की ‘गली चौकीदार वाली’ में रहते हैं। 2019 में द इंडियन एक्‍सप्रेस संग बातचीत में उन्‍होंने गली के नाम के पीछे की कहानी बतलाई। बकौल उस्‍मानी, ‘एक हवेली हिसामुद्दीन हैदर हुआ करती थी जो नवाब हिसामुद्दीन हैदर की मिल्कियत थी। मुगल सल्‍तनत में पहुंच रखने वाले नवाब ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। उस हवेली के चार-पांच चौकीदार और दारोगा इसी गली में रहते थे और इसका नाम गली चौकीदार वाली पड़ गया। ज्‍यादा दिमाग नहीं लगाया गया, लोकल लोग इसे (गली को) यही कहते हैं।’दिल्‍ली में कहां हैं ‘गली चौकीदार वाली’? उस्‍मानी के घर के सामने मोहम्‍मद शफी रहते हैं। शफी के पिता अहमदुल्‍लाह एक चौकीदार थे। शफी ने द इंडियन एक्‍सप्रेस से कहा था, ‘मेरे अब्‍बू ने नौकरी शुरू की तो पगार 12 रुपये महीना था। जब छोड़ी तब 600 रुपये महीना मिलता था।’दूसरी ‘गली चौकीदार वाली’ की क्‍या कहानी है?कुछ मीटर दूर ही अहाता काले साहब में एक और गली का नाम ‘गली चौकीदार वाली’ है। यहां रहने वाले इकबाल 60 के दशक में इलाके के चौकीदार रहे शरीफ अहमद को याद करते हैं। इकबाल के अनुसार, ‘रोज दोपहर 2 बजे से लेकर 4 बजे तक, शरीफ किसी सेल्‍समैन को मोहल्‍ले में नहीं घुसने देते थे क्‍योंकि उस वक्‍त सब आराम करते थे। अगर कोई नया बंदा इलाके में आता तो वे से हमारे घरों तक लेकर आते। उनके परिवार के नाम पर ही गली का नाम होना बिल्‍कुल ठीक है।’ यहीं पर रहने वाले मोहम्‍मद सुलेमान के अनुसार, 1857 की क्रांति के बाद हवेली छोटे-छोटे घरों में बंट गई और रहने वालों ने एक गार्ड रख लिया। गार्ड को गली में घर दिया गया और फिर वो ‘गली चौकीदार वाली’ हो गई।