राघव तिवारी, नोएडा: कहते हैं कि खाना बनाने वाले के हाथों में जादू होता है। तभी तो उसके स्वाद के सभी कायल होते हैं। लोग ऐसे ही कायल राजस्थान की रहने वाली पापड़, नमकीन, अचार, भुजिया के हैं। यहीं नहीं, इस हुनर के साथ उन्होंने गांव की 150 महिलाओं की जिंदगी संवारी है।तीजा ने बताया कि पहले वह अपने घर में खाने के लिए पापड़, आचार वगैरह बनाती थीं। मेहमान और आस पड़ोस के लोग घर आकर पापड़, नमकीन और अचार की हमेशा तारीफ करते थे। कई बार तो कुछ लोग अपने घरों के लिए भी ये सब चीजें बनवा ले जाते थे। इससे एक बार विचार आया कि इसी कौशल को बाकी महिलाओं को सिखाऊं और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाऊं।राजस्थान की बीकानेर में रहने वाली तीजा देवी कुमावत की शादी करीब 25 साल पहले कुम्भा राम से हुई थी। तीजा ने बताया कि शादी के बाद जिंदगी सामान्य चल रही थी, लेकिन परिवार और आसपास की महिलाओं की स्थिति काफी खराब थी। थोड़े पैसों के लिए उन्हें पतियों से काफी झगड़ा करना पड़ता था। ज्यादातर आदमी शराब पीते थे।ऐसे की शुरूआतमहिलाएं चाह कर भी अपने बच्चों और परिवार के लिए कुछ नहीं कर पा रहीं थी। इसके लिए मैंने सोचा कि पहले हमें आर्थिक रूप से मजबूत होना पड़ेगा। पहले मैंने अपने परिवार की 25 महिलाओं को जोड़ा। अपना काम शुरू करने के लिए हमने 2.5 लाख का लोन लिया। लोन के पैसों से कच्चा माल लेकर पापड़, नमकीन, गट्टे, भजिया, मंगोड़ी बनाना शुरू कर दिया। इससे धीरे-धीरे गांव की महिलाएं आर्थिक रूप से अपने ऊपर निर्भर हो गईं। पहले आस-पास के घरों और मोहल्लों में बेचना शुरू किया। इसके बाद समूह में करीब 150 महिलाएं शामिल हो गईं। अब आलम यह है कि ज़रूरत पड़ने पर पति अपनी पत्नियों से रुपये मांगते हैं।तीजा ने बताया कि काम बढ़ाने के लिए बाहर जाना ही पड़ता। इसके लिए करीब 6 साल पहले जयपुर में पहली बार अकेले अपना स्टॉल लगाया था। डर काफी था लेकिन वो मेला काफी कुछ सिखा गया। समूह की महिलाएं बाहर नहीं जा पाती हैं, लेकिन सरस आजीविका मेले में आने के दौरान उनको 150 महिलाएं स्टेशन तक छोड़ने आईं।कई गुना बढ़ाई समूह की महिलाओं की कमाईतीजा ने बताया कि 2013 में जब समूह शुरू किया था, तब 2 किलो पापड़ बनाने के लिए हर महिला को 6 रुपये देती थी। अब 2 किलो पापड़ बनाने के लिए हर महिला को 60 रुपये देती हूं। वहीं एक किलो मूंग की बड़ी पर 4 रुपये देती थी और अब 25 रुपये प्रति किलो का भुगतान करती हूं।