नोट निगल लिए तो भी नहीं बच पाएगा भ्रष्ट अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है सख्त फैसला

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे शहर फरीदाबाद में एक दारोगा ने चार हजार रुपये घूस लिए और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। तभी दारोगा ने दो हजार रुपये के दोनों नोट निगलने की कोशिश की। एसीबी अफसरों ने उसे जबरन जमीन पर लिटाकर मुंह से दोनों नोट निकाल लिए। घूसखोरी की ऐसी घटनाएं तो हर वक्त, देश के हर कोने में होती रहती हैं। ये अलग बात है कि बहुत कम घुसखोर ही कानून की गिरफ्त में आ पाते हैं। लेकिन अब ने भ्रष्ट कर्मियों पर नकेल कसने को लेकर बड़ा रास्ता सुझाया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर किसी लोकसेवक (Public Servants) ने भ्रष्टाचार किया है, लेकिन उसके खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं तो परिस्थितजन्य सबूतों के आधार पर ही उसके खिलाफ कानूनी-कार्रवाई की जा सकती है। उम्मीद की जा रही है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश के बाद भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को उनकी सही जगह पहुंचाना आसान हो जाएगा।

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर भी नपेंगे भ्रष्ट सरकारी कर्मी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकसेवकों को भ्रष्टाचार के केस में कोई सीधा मौखिक या दस्तावेजी सबूत न होने की सूरत में परिस्थिति के आधार पर मौजूद साक्ष्यों को देखकर भी सजा दी जा सकती है। उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक बेंच ने कहा कि शिकायत करने वालों और अभियोजन पक्ष को भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ केस दर्ज कराने और उन्हें सजा दिलाने के लिए ईमानदारी से कोशिश करनी चाहिए। अगर शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाता है या उसकी मौत हो जाती है या फिर वह सबूत पेश नहीं कर पाता, तो किसी दूसरे गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर अपराध साबित किया जा सकता है।

सबूत पर सबूत मांगने की अदालती कार्यवाही पर लगाम

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में फरीदबाद की घटना बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। दारोगा सबूत मिटाने के लिए नोट निगलने लगा। उसे पता था कि अगर एसीबी को रिश्वत में लिए नोट हाथ नहीं लगे तो उसकी मुसीबत कम हो जाएगी क्योंकि अदालत में उसका अपराध साबित करना मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, अदालती कार्यवाही में सबूतों के आधार पर ही फैसले किए जाते हैं। ऐसे में अगर दस्तावेजी सबूत या पक्के गवाह नहीं हों तो फिर बड़े से बड़ा अपराध में संलिप्त आरोपी बाइज्जत बरी हो जाता है। वर्ष 2012 के छावला गैंगरेप और मर्डर केस में तीन आरोपियों को रिहाई का मामला तो याद ही होगा। अदालत ने ठोस सबूतों के अभाव आरोपियों को संदेह का लाभ दिया।

अगर शिकायतकर्ता ही मुकर जाए तो…

रिश्वतखोरी या अन्य किसी तरह के भ्रष्टाचार के मामले में भी सबूत जुटाना आसान नहीं होता है। कई बार गवाहों को खरीद लिया जाता है या फिर उनपर दबाव बनाया जाता है और वो गवाही से मुकर जाते हैं। इतना ही नहीं, कई बार खुद शिकायतकर्ता ही पीछे हट जाता है। उसे लगता है कि कौन अदालती कार्यवाही के घनचक्कर में पड़े। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर शिकायतकर्ता मुकर जाए या उसकी मौत हो जाए या वो सुनवाई के दौरान वह कोर्ट में सबूत पेश नहीं कर सके तो घटना के दूसरे गवाह के बयान या उसकी तरफ से सौंपे गए दस्तावजों के आधार पर भी आरोपी को सजा दी जा सकती है।’ सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि वो बाइज्जत बरी कर दिया जाएगा।

…ताकि साफ-सुथरा हो सके शासन-प्रशासन

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्न की संवैधानिक पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। बेंच ने उम्मीद जताई कि भ्रष्ट लोकसेवकों को दंडित करने के लिए शिकायकर्ता और अभियोजन पक्ष गंभीर प्रयत्न करेंगे ताकि शासन-प्रशासन को साफ-सुथरा बनाया जा सके।