बेंगलुरु: कर्नाटक में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। इसी के साथ अब मुख्यमंत्री पद को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है। कर्नाटक में कांग्रेस के दो बड़े नेता सीएम पद की रेस में आगे चल रहे हैं। हालांकि सिद्धारमैया का दावा मजबूत है लेकिन पार्टी शिवकुमार की भी अनदेखी नहीं कर सकती है। दोनों के समर्थक भी अपने नेता को सीएम पद की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। आइए जानते हैं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की दावेदारी कितनी मजबूत है-सीएम रेस में आगे सिद्धारमैयाकर्नाटक में सीएम पद की रेस में सिद्धारमैया सबसे आगे हैं। यहां तक कि चर्चा है कि वह शिवकुमार को इस रेस में पछाड़ भी सकते हैं। कांग्रेस के 75-वर्षीय नेता सिद्धारमैया ऐलान कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है और वह चुनावी राजनीति से संन्यास लेंगे।हालांकि शनिवार को सिद्धारमैया ने संकेत दिया कि उनकी निगाहें भविष्य की संभावनाओं पर टिक गई हैं। मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने की इच्छा जता चुके सिद्धारमैया अब आगे होने वाले घटनाक्रम का इंतजार कर रहे हैं। सीएम और डेप्युटी सीएम दोनों रहेसिद्धारमैया वर्ष 2013 से 2018 तक मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की बागडोर संभाल चुके हैं। साल 2013 में मल्लिकार्जुन खरगे और तत्कालीन केंद्रीय श्रम मंत्री को पछाड़ते हुए सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे। साल 2004 में खंडित जनादेश के बाद कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने कर्नाटक में गठबंधन सरकार बनाई थी, जिसमें कांग्रेस नेता एन. धरम सिंह मुख्यमंत्री, जबकि तत्कालीन जद (एस) नेता सिद्धारमैया को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था।बाद में सिद्धारमैया को जेडी (एस) से बर्खास्त कर दिया गया था। तब उनके समर्थकों ने दावा किया था कि उन्हें इसलिए हटाया गया, क्योंकि जेडी (एस) नेता एच. डी. देवेगौड़ा अपने बेटे कुमारस्वामी को पार्टी के नेता के रूप में बढ़ाने के इच्छुक थे। इस तरह 2006 में समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। यह एक ऐसा कदम था जिसके बारे में कुछ साल पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था। कौन हैं सिद्धारमैया?सिद्धारमैया 1983 में लोकदल के टिकट पर चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से जीत हासिल कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने इस सीट से पांच बार जीत हासिल की और तीन बार पराजय का स्वाद चखा। मैसुरू जिले के गांव सिद्धारमनहुंडी में 12 अगस्त, 1948 को जन्मे सिद्धारमैया ने मैसुरू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली और बाद में यहीं से कानून की डिग्री हासिल की। कांग्रेस के संकटमोचक डीके शिवकुमारदूसरी ओर डीके शिवकुमार को कांग्रेस का ऐसा सिपाही माना जाता है जिन्होंने पार्टी के हर आदेश को चुपचाप माना। साथ ही जब-जब जरूरत पड़ी वह पार्टी के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्हें कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता है। 2013 से ही डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे लेकिन तब सिद्धारमैया को चुना गया। इसके बाद 2018 मेँ भी उनका सपना पूरा नहीं हो पाया और सीएम की कुर्सी जेडीएस के खाते में गई। कर्नाटक के अमीर नेताओं में शुमारआज डीके शिवकुमार का नाम कर्नाटक में सबसे अमीर नेताओं में शुमार है। हालांकि एक दौरा ऐसा भी था जब उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए जमीन गिरवी रख दी थी। 1985 में उन्होंने डीके देवेगौड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन शिकस्त मिली थी। 1989 में डीके शिवकुमार ने देवेगौड़ा को हराया तो पार्टी में उनका कदम बढ़ गया। इसके बाद उन्होंने देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी और कुमारस्वामी की पत्नी को भी चुनाव में हराया। डीके शिवकुमार कनकपुरा सीट से लगातार 8 बार विधायक रहे हैं। सिद्धारमैया के पक्ष और विपक्ष में कौन सी बातेंसिद्धारमैया के पास सीएम का अनुभव रहा है और उनका असर पूरे राज्य में दिखता है। लगभग हर तबके में उनकी पकड़ मानी जाती है। जेडीएस से लेकर कांग्रेस तक के अपने सफर में उन्होंने खुद के लिए ये जनाधार कमाया है, वहीं मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी उनका ये जनाधार बढ़ा। हालांकि उनकी उम्र उनके सीएम बनने के रास्ते में बाधा बन सकती है। सिद्धारमैया 75 साल के हैं और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हैं। कर्नाटक चुनाव में प्रचार करते हुए एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह कार में बैठते वक्त लड़खड़ा गए थे। शिवकुमार का पक्ष और विपक्षडीके शिवकुमार को संकट मोचक और डैमेज कंट्रोल में माहिर समझा जाता है, लेकिन सभी वर्गों या क्षेत्रों में उनकी सिद्धारमैया जितनी पहुंच नहीं है। इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी के मामले उनकी राह में बाधा बन सकते हैं।दोनों के बीच टकराव को कांग्रेस ने कैसे दूर कियादोनों नेताओं के बीच तल्ख रिश्ते भी जगजाहिर हैं। टिकट बंटवारे को लेकर भी दोनों नेताओं में अनबन शुरू हो गई थी। जीत पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार का नाम नहीं लिया। हालांकि शिवकुमार ने जरूर कार्यकर्ताओं को क्रेडिट देते हुए सिद्धारमैया का भी जिक्र किया। हालांकि कांग्रेस की तरफ से इसे समझदारी के साथ सुलझाया गया। चुनाव में दोनों ही बड़े नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई। कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को दक्षिण जिलों की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां वोक्कालिगा समुदाय के वोट हैं। शिवकुमार खुद भी वोक्कालिगा समुदाय से हैं। वहीं सिद्धारमैया को उत्तर मध्य और तटीय क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई। दोनों ही नेताओं ने मेहनत की और पार्टी की बड़ी जीत में योगदान दिया। पिछले दिनों कांग्रेस ने प्रयोग करते हुए पिछले दिनों दोनों नेताओं को एक साथ दिखाया था। दोनों की बातचीत का एक वीडियो भी जारी किया गया था जिसमें दोनों नेता चुनाव प्रचार का अपना-अपना अनुभव साझा कर रहे थे। इस दौरान डीके शिवकुमार ने सिद्धारमैया से उनके स्वास्थ्य के बारे में भी पूछा। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से दोनों की खुशमिजाजी का वीडियो भी ट्वीट किया।