‘छत्रपति शिवाजी, सावित्री बाई फुले का सपने में भी नहीं कर सकता अपमान’… विवादों पर भगत सिंह कोश्यारी की दो टूक

देहरादून: महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने ऊपर लगे राजनीतिक आरोपों पर अब खुलकर बात करनी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल काफी विवादास्पद रहा। माना जाता है कि इन्हीं विवादों की वजह से उन्हें हाल ही में इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद वह अपने गृह राज्य उत्तराखंड लौट आए हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल रहने के दौरान उन्हें लेकर जो भी विवाद हुए और कहीं उन्हें इस्तीफे का मलाल तो नहीं है, ऐसे कई मुद्दों पर नवभारत टाइम्स ने उनसे बातचीत की। पूर्व राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता ने पार्टी के स्तर पर मिले सम्मान और पद को लेकर भी बड़ा बयान दिया है।क्या आपको बीजेपी में अपने कद के हिसाब से पद मिले? कहीं इसे लेकर आपके मन में कोई मलाल तो नहीं है…बीजेपी में कितने लोग हैं, जो विधान परिषद गए हों, विधायक बने हों, मुख्यमंत्री बने हों, लोकसभा-राज्यसभा गए हों और गवर्नर भी बने हों। मुझे पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने का सम्मान मिला और मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहा। इतना किसी को कहां मिलता है और मैं तो राजनीति में था ही नहीं, लेकिन जब दिल्ली दूर पेइचिंग पास के नारे लगने लगे तो संघ ने मेरी पढ़ाई-लिखाई और जागरूकता को देखते हुए बीजेपी में जाकर काम संभालने को कहा। मुझसे कहा गया कि चीन के साथ लगती सीमा वाले प्रदेश के लिए ऐसे नारे ठीक नहीं। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने उत्तराखंड को अलग राज्य बनाकर यहां के लोगों की इच्छा का सम्मान किया, जो मेरे लिए आनंद का विषय था। मैं तो स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं।जब आप महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए गए, तब शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे से आपके संबंध अच्छे बताए जाते थे, लेकिन बीजेपी से उसका गठबंधन टूटने के बाद कहा गया कि आपके रिश्ते बिगड़ते चले गए…राज्यपाल को राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से काम करना होता है। जब कोई मुश्किल घड़ी आती है तो उसमे हमें संविधान के मुताबिक काम करना होता है। राज्यपाल को इन हालात में अपने विवेक का भी इस्तेमाल करना होता है। एक बात यह भी है कि संबंध सिर्फ राजनीतिक नहीं, पारिवारिक भी होते हैं। पारिवारिक दृष्टि से हमारे संबंध खराब नहीं हुए हैं। राजनीतिक दृष्टि से जो घटनाक्रम सामने आते हैं, उस हिसाब से रिश्तों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है।23 नवंबर 2019 की सुबह अचानक महाराष्ट्र राजभवन से मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री के रूप में अजित पवार को शपथ दिलाने की असल वजह क्या रही, जबकि तीन दिन बाद समर्थन ना होने पर मुख्यमंत्री को फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा देना पड़ा…नियम है कि जो बहुमत का पहले दावा करेगा, उसे सरकार बनाने का मौका मिल सकता है। मेरे सामने पहले ये लोग आए। उन्होंने समर्थक विधायकों की लिस्ट दिखाई और सरकार बनाने का दावा पेश किया। मैं उस वक्त विधायकों की परेड भी नहीं करा सकता था। इसलिए मैंने उन्हें सरकार बनाने का न्योता देते हुए विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा। बाद में जब उन्हें लगा कि वे बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।उद्धव ठाकरे ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब वह विधानसभा या विधान परिषद में से किसी के भी सदस्य नहीं थे। शिवसेना की ओर से जब ठाकरे को एमएलसी बनाने का प्रस्ताव भेजा गया तो आपने उसे मंजूर नहीं किया?उनके प्रस्ताव को रोकने का कारण यह था कि उन्होंने राज्यपाल की गरिमा को ध्यान में नहीं रखा और इसके लिए जो पत्राचार राजभवन के साथ किया, वह दुर्भाग्यपूर्ण था। जो चार लाइन का पत्र होता है कि हम ये नाम भेज रहे हैं, ये इनका बायोडेटा है और आप इन्हें मनोनीत करिए। गवर्नर के रूप में मुझे वह पत्र ठीक लगता तो मैं तत्काल ऐसा करता। लेकिन उन्होंने जो पत्र भेजा, उसमें यह कहने की कोशिश थी कि इस नियम के हिसाब से ऐसा करिए। मानो, वह राज्यपाल के ट्यूटर हों और ट्यूशन पढ़ा रहे हों। और तो और 15 दिनों में ऐसा करने का निर्देश भी था। इस तरह राज्यपाल को कोई कैसे डिक्टेट कर सकता है!महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में आप अपने कार्यकाल को कैसे देखते हैं?मैं जिस पद पर भी रहा, वहां मैंने जो भी काम किए, वह जनता को जनार्दन मानते हुए उसकी हित में किए। महाराष्ट्र में मैं लगभग 1200 दिनों तक राज्यपाल रहा। मैंने इनमें से 1100 से अधिक सार्वजनिक कार्यक्रम किए। 36 जिलों का भ्रमण कर समस्याओं को समझा और उन्हें हल करने की कोशिश की। ट्राइबल एरिया में जाकर मैं गांव में सोता था। मैं जानता था कि राज्यपाल का पद सेवा का पद है, यह सिर्फ शोभा का पद बनकर न रह जाए।राज्यपाल पद पर रहते हुए आपके कुछ बयान विवाद का कारण बने, क्या इसी वजह से आपको इस्तीफा देना पड़ा?एक बयान में मैंने अतिरेक में कुछ कहा, उसमे मुझे बाद में कुछ कमी दिखी तो मैंने क्षमा मांगी। इसके बाद वह मामला शांत हो गया। जहां तक छत्रपति शिवाजी महाराज और सावित्री बाई फुले जी का सवाल है तो, मैं उनका अपमान करने की सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं। हम उनके त्याग, बलिदान और इतिहास को जितना जानते हैं, उतना कम ही लोग जानते होंगे। उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा न होती तो क्या मैं पैदल चलकर इस उम्र मैं उनके जन्मस्थान पर जाता! लोग वहां हेलिकॉप्टर और दूसरे साधनों से जाते हैं, मैं उनके प्रति श्रद्धा रखने के कारण पैदल चलकर गया।