महज 4 दिन में चांद पर पहुंचे थे अमेरिका और रूस, चंद्रयान-3 को क्यों लगेंगे 40 दिन?

चंद्रयान-3 ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक चांद की ओर अपने कदम बढ़ाए। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हेवी-लिफ्ट LVM3-M4 रॉकेट का उपयोग करके अपना तीसरा चंद्र मिशन लॉन्च किया -जो अपनी कक्षा में सबसे बड़ा और भारी है, जिसे ‘फैट बॉय’ करार दिया गया है।

इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा कि ‘बाहुबली रॉकेट’ ने चंद्रयान-3 को सटीक कक्षा में स्थापित किया। अमेरिका और रूस को चांद पर पहुंचने में महज चार दिन ही लगे थे। लेकिन चंद्रयान-3 यानी भारत को चांद पर पहुंचने में 40 दिन लग जाएंगे। आप भी सोच रहे होंगे की आखिर भारत को चांद पर पहुंचने में इतना समय क्यों लग रहा है? जबकि अमेरिका और रूस जैसे देशों ने 50 साल पहले ही चांद की दूरी महज चार दिनों में पूरी कर ली थी। 

पिछली सदी से हमने 1959 सोवियत यूनियन का लूना 1 तो चंद्रमा पर पहुंचने वाला पहला मनुष्य निर्मित यंत्र चंद्रमा की सतह पर पहली बार सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रचा था लेकिन यह तो इतिहास बनाने की और पृथ्वी वासियों का पहला कदम था 3 साल बाद 20 जुलाई 1969 की तारीख को इंसान ने चांद पर कदम रखे थे 1969 को दुनिया की सांसे थम सी गई थी जब अपोलो 11 मिशन के जरिए पहली बार कदम पड़े थे जुलाई 1969 में अमेरिका की अंतरिक्ष यात्रियों ने कदम रखा था। इसी साल भारत ने अंतरिक्ष खोज के लिए अपना कदम बढ़ाया था 15 अगस्त 1969 को भारत के आजादी के 22 साल पूरे हुए थे और विक्रम सराभाई ने इसरो की स्थापना की थी।

23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की संभावना  दो चंद्रयान लॉन्च करने के बाद भारत ने 14 जुलाई को तीसरा चंद्रयान का सफल प्रक्षेपण कर दिया है। 14 जुलाई को दोपहर ढाई बजे चंद्रयान मिशन लॉन्च किया गया। अगर चांद पर साफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। चंद्रयान अपने लॉन्च के एक महीने बाद चंद्र कक्षा में पहुंचेगा। इसके लैंडर और रोवर के 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की संभावना है। यानी चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने में एक महीने से भी ज्यादा का वक्त लगेगा। 

रॉकेट की डिजाइनिंग, इस पर खर्च होने वाले ईंधन और चंद्रयान की स्पीड में इसका जवाब छिपा है। स्पेस में लंबी दूरी तय करने के लिए यान को ले जा रहे रॉकेट की तेज स्पीड और सीधे प्रक्षेपण पथ की जरूरत होती है। अपोलो 11 की लॉन्चिंग के लिए नासा ने सैटर्न बी का इस्तेमाल किया था, जो सुपरहेवी लिफ्ट लॉन्चर था। ये 39 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की यात्रा करने में सक्षम था।(

इसके अलावा इसमें 43 टन भारवाहक क्षमता थी। चांद की 3 लाख 84 हजार किलोमीटर की दूरी को तय करने के लिए नासा के रॉकेट ने चार दिनों का वक्त लिया था। हालांकि उस दौर नासा ने इसमें 185 मिलिनयन डॉलर की रकम इस मिशन पर खर्च किया था। इसके उलट भारत ने इतने ताकतवर रॉकेट का इस्तेमाल नहीं किया। बजट भी 600 करोड़ रुपए का रहा है। 

चंद्रयान-3 के 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव कई दिनों तक सूरज की रोशनी के बिना रह सकता है – जिससे लैंडर से जुड़े सौर पैनलों को चार्ज करना असंभव हो जाता है। अगर चंद्रयान-3 अगस्त की तारीख से चूक जाता है, तो उसे सॉफ्ट-लैंडिंग के लिए सितंबर तक इंतजार करना होगा।