संपादकीय: उम्मीदों के बीच चुनौतियां

आज से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र पर सबकी निगाहें टिकी हैं। इस सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश करने वाली हैं। लोकसभा चुनाव में अब साल भर से कुछ ही ज्यादा वक्त रह गया है। ऐसे में जहां आम जनता उनसे राहत की उम्मीद कर रही है, वहीं पार्टी की भी अपेक्षा है कि वह ऐसा बजट लेकर आएंगी, जिससे बीजेपी को वोटरों के किसी वर्ग की नाराजगी नहीं झेलनी पड़ेगी बल्कि उनमें पार्टी के लिए पॉजिटिव फीलिंग बनेगी। जाहिर है, ये अपेक्षाएं वित्त मंत्री की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि वह ऐसे वक्त में बजट पेश करने जा रही हैं, जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियां बनी हुई हैं। पिछले बजट में उनके सामने कोरोना महामारी से पैदा हुई आर्थिक दिक्कतों से इकॉनमी को उबारने का चैलेंज था तो इस बार यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मंदी के साये में वित्त मंत्री से ऐसा बजट लाने की उम्मीद है, जिससे भारत तेजी से आर्थिक तरक्की की राह पर आगे बढ़ता रहे। अमेरिका, यूरोप की आर्थिक ग्रोथ के पस्त पड़ने से भारत के निर्यात में पिछले वित्त वर्ष में जो तेजी आई थी, वह सुस्त पड़ गई है। बेरोजगारी एक बड़ा मसला है। चीन से लगती सीमा पर तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। पाकिस्तान के साथ भी विश्वास का संकट बना ही हुआ है। ऐसे हालात में सेना उनसे रक्षा बजट में अच्छी बढ़ोतरी की उम्मीद कर रही होगी तो दूसरी तरफ आम चुनाव को देखते हुए कल्याणकारी योजनाओं पर भी खर्च बढ़ाने का उन पर दबाव होगा। आखिर, बीजेपी खुद मानती आई है कि पिछले चुनावों में उसे इसका लाभ मिलता आया है। इस बीच, महंगाई और रोजगार के मोर्चे पर दिक्कतें बनी हुई हैं। महंगाई के आंकड़े पिछले दिनों कुछ कम जरूर हुए हैं, लेकिन यह अभी भी रिजर्व बैंक के कंफर्ट जोन से ऊपर है। वहीं, कई जरूरी चीजों के दाम पिछले साल की तुलना में काफी ऊपर चल रहे हैं। उदाहरण के लिए, आटे की जो खुदरा कीमत एक साल पहले तक 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम हुआ करती थी, आज औसतन 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच है। ऐसे ही दूध के दाम पिछले साल करीब आठ रुपये प्रति लीटर बढ़े हैं। पेट्रोल-डीजल के ऊंचे दाम भी आम ग्राहकों पर बोझ बढ़ा रहे हैं। बजट में वित्त मंत्री को इन बातों का भी खयाल रखना होगा। हालांकि मैक्रो लेवल पर देखा जाए तो कई पॉजिटिव बातें नजर आती हैं। जीडीपी दर इस वित्त वर्ष में 7 फीसदी रहने का अनुमान है, जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज ग्रोथ है। लेकिन निर्यात में गिरावट, चालू खाता घाटे में बढ़ोतरी और राजकोषीय घाटे को लेकर परेशानियां बनी हुई हैं। तो सवाल यही है कि क्या वित्त मंत्री गुड इकॉनमिक्स के साथ चुनावी फायदे वाला बजट दे पाएंगी?