नौकरशाहों पर नियंत्रण संबंधी केंद्र के अध्‍यादेश को दिल्‍ली सरकार ने बताया असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रही लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अधिकारों की ये लड़ाई एक बार फिर से कोर्ट पहुंच गई है। दिल्ली की केजरावील सरकार ने राष्‍ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों पर नियंत्रण के संबंध में केंद्र द्वारा जारी अध्‍यादेश को उच्‍चतम न्‍यायालय में चुनौती दी है।दिल्‍ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने अधिवक्ता शादान फरासत और ऋषिका जैन के माध्यम से दायर याचिका में 19 मई को अधिसूचित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। इसमें कहा गया है कि अध्‍यादेश अनुच्छेद 239एए में राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए निहित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करता है।अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर केंद्र के अध्यादेश को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। pic.twitter.com/1WPKkekpAg— ANI_HindiNews (@AHindinews) June 30, 2023

याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) में सेवारत सिविल सेवकों पर नियंत्रण जीएनसीटीडी से लेकर अनिर्वाचित उपराज्यपाल (एलजी) को प्रदान करता है। इसमें कहा गया है, “यह भारत के संविधान में संशोधन किए बिना ऐसा करता है, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 239AA में, जिससे यह मूल आवश्यकता उत्पन्न होती है कि सेवाओं के संबंध में शक्ति और नियंत्रण निर्वाचित सरकार में निहित होना चाहिए।”सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 11 मई को फैसला सुनाया कि यह मानना ​​आदर्श है कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई दिल्ली सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण होना चाहिए और एलजी कानून-व्‍यवस्‍था, पुलिस और भूमि के अलावा हर चीज में चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं।शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अगर सरकार अपनी सेवा में तैनात अधिकारियों पर नियंत्रण और हिसाब रखने में सक्षम नहीं है, तो विधायिका के साथ-साथ जनता के प्रति उसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है। करीब एक सप्‍ताह बाद केंद्र सरकार 19 मई को राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नामक एक स्थायी प्राधिकरण की स्थापना के लिए एक अध्यादेश लाई जिसके अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ-साथ मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव होंगे जो ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों के संबंध में दिल्ली एलजी को सिफारिशें करेंगे। मतभेद की स्थिति में एलजी का निर्णय अंतिम होगा। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा, “अध्यादेश कार्यकारी आदेश का एक असंवैधानिक अभ्यास है जो अनुच्छेद 239एए में एनसीटीडी के लिए निहित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करता है; स्पष्ट रूप से मनमाना है और विधायी रूप से 11 मई के इस न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले को खारिज करता है…।” दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को रद्द करने और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 की धारा 3ए को भी रद्द करने का निर्देश देने की मांग की, जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 द्वारा असंवैधानिक बताया गया था। केंद्र ने 11 मई के फैसले की समीक्षा के लिए 20 मई को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। आईएएनएस के इनपुट के साथ