नई दिल्ली: जीन के हेरफेर से तैयार किये गए (जेनेटिकली मोडिफाइड या जीएम) सरसों की केंद्र सरकार ने एक बार फिर से वकालत की है। सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत के लिए क्या सही है, उसी बात को वह उठाना चाहती है। सरकार का कहना है कि के जरिये ही आम आदमी को सस्ते और क्वालिटी एडिबल ऑयल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। केंद्र ने कहा है कि जीएम सरसों के जरिये एडिबल ऑयल के क्षेत्र में आयात पर निर्भरता भी कम की जा सकती है। क्या दलील दीसुप्रीम कोर्ट में जीएम सरसों के खिलाफ दायर एक पीआईएल की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश होते हुए सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि भारत में सरसों तेल मोस्ट यूज्ड एडिबल ऑयल है। भारत में जीएम सीड से निकले ऑयल का उपयोग दशकों से किया जा रहा है। अब सरकार चाहती है कि देश में ही जीएम सरसों का उत्पादन किया जाए। इससे यहीं सस्ते सरसों का उत्पादन हो सकेगा। उनहोंने बताया कि इस समय देश में 50 से 60 फीसदी एडिबल ऑयल का आयात करना पड़ता है। भारी मात्रा में होता है आयातजस्टिस बी वी नागरत्न और जस्टिस संजय करोल की बेंच के समक्ष पेश होते हुए तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि वह तो सिर्फ वही बता रहे हैं, जो भारत के हित में है। उन्होंने केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशायल के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि देश में बढ़ती जनसंख्या के साथ ही एडिबल ऑयल की मांग भी बढ़ रही है। साल 2020-21 के दौरान भारत में खाद्य तेलों की कुल मांग 2.46 करोड़ टन की थी। उस साल देश में महज 1.11 करोड़ टन खाद्य तेल ही पैदा किया गया था। इसी तरह साल 2021-22 के दौरान कुल मांग के मुकाबले महज 54 फीसदी यानी 1.34 करोड़ टन ही खाद्य तेल उत्पादित हुए थे। शेष मांग की पूर्ति आयात के जरिये पूरी की गई थी। एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होता है खर्चतुषार मेहता ने बताया क साल 2021-22 में जितने खाद्य तेलों का आयात हुआ था, उसके लिए सरकार को 1.15 लाख करोड़ रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ा था। उस साल जितने खाद्य तेलों का आयात हुआ था, उसमें से 57 फीसदी पॉम आयल, 22 फीसदी सोयाबीन का तेल और 15 फीसदी सूर्यमुखी तेल का आयात किया गया था। उसी साल कुछ मात्रा में पीली सरसों तेल का भी आयात किया गया था, जिसे विदेशों में कैनोला ऑयल कहते हैं। साल 2022-23 में भी 1.55 करोड़ टन या कुल मांग का 55.76 फीसदी हिस्सा आयात के जरिये पूरा किया गया था। इसलिए सरकार चाहती है कि देश में जीएम सरसों बीज के जरिये सरसों का ज्यादा उत्पादन किया जाए।क्या है जीएम बीज का मतलबआसान भाषा में कहें तो पौधों के जीन या डीएनए में बदलाव कर तैयार किए गए बीजों को जीएम बीज कहा जाता है। बायो इंजीनियरिंग से जुड़े वैज्ञानिक पौधों की आनुवंशिकी को समझते हैं। इसका मतलब है कि वे पौधे के प्राकृतिक डीएनए का पता लगा सकते हैं। इसके बाद इसमें कृत्रिम रूप से कुछ विदेशी जीन डाले जाते हैं, जिससे पौधे का मूल डीएनए बदल जाता है। अगर किसी पौधे के जीन में बदलाव आ जाए और वह अपने मूल स्वरूप से अलग हो जाए तो उससे तैयार बीजों को जीएम बीज कहा जाता है।क्या है जीएम मस्टर्ड से जुड़ा विवाददावा किया जा रहा है कि जीएम सरसों से देश में सरसों तेल का उत्पादन 28 फीसदी तक बढ़ जाएगा। यहां सवाल उठ रहा है कि जब किसान जीएम बीजों से बंपर सरसों उगा सकते हैं तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा है? तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जीएम बीजों के कारण किसानों को हर साल बीज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यानी किसान अब बीज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं रहेगा। दूसरे, जीएम बीजों के आने के बावजूद फसल नई बीमारियों और नए कीड़ों से प्रभावित हो सकती है। जिससे देश के किसान कीटनाशक बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चंगुल में फंस सकते हैं। अभी किसान जो फसल उगाते हैं, उसी में से एक हिस्से को बीज के रूप में संरक्षित कर लेते हैं और अगले साल उसी को बोते हैं।