‘अपनी सनक पर काम नहीं कर सकते…’, जब कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को लगाई कड़ी फटकार, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली : दिल्ली कीएक अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि वे अपनी सनक पर काम नहीं कर सकते। अदालतों के पास जांच एजेंसियों की तरफ से अधिकारों के दुरुपयोग की जांच का पर्याप्त अधिकार है। अदालत 28 जनवरी को एक जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जब उसने देखा कि शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया था और पुलिस ने इस बारे में कुछ नहीं किया।जब अदालत ने पुलिस से जमीन हड़पने के मामलों से निपटने वाली किसी विशेष एजेंसी को जांच ट्रांसफर करने के लिए कहा, तो मध्य जिले के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) ने जवाब दिया कि जांच एजेंसी का विशेषाधिकार होने की वजह से मामले को ट्रांसफर नहीं किया गया था। इस पर अदालत ने कहा कि डीसीपी की रिपोर्ट टालमटोल करने के अलावा गलत आधार पर आधारित थी।भले ही जांच करना एजेंसी का विशेषाधिकार हो, आईओ के साथ-साथ डीसीपी और उससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारियों सहित उनके सीनियर अफसरों को यह ध्यान रखना चाहिए कि यह विवेक पूर्ण नहीं है। अदालत ने कहा, जांच एजेंसी अपनी सनक के अनुसार कार्य नहीं कर सकती और अदालतों के पास जांच एजेंसियों की तरफ से शक्तियों के दुरुपयोग या दुरुपयोग की आशंका को रोकने के लिए पर्याप्त शक्ति है।इसने यह भी कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की ऊर्जा जांच अधिकारियों के अनुचित आचरण को उचित ठहराने के बजाय जांच तंत्र को बेहतर बनाने में खर्च की जानी चाहिए।आईपी एस्टेट थाने में नवंबर 2021 में रहीस नाम के शख्स ने FIR दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि महफूज और उनके सहयोगियों ने उनकी दुकान में घुसकर कीमती सामान चुरा लिया। पुलिस को बताया गया कि झुग्गी सह दुकान सरकारी जमीन पर बनी हुई है और अवैध कॉलोनी है।पुलिस ने FIR दर्ज की थी। बाद में घटना के करीब 15 दिन बाद, रहीस की पत्नी सना बेगम ने एक पूरक बयान दिया और आरोप लगाया कि आरोपी और उसके सहयोगी फहीम की तरफ से उसका यौन उत्पीड़न किया गया। इसके बाद पुलिस ने मामले में यौन उत्पीड़न की धाराएं जोड़ीं।इसके बाद आरोपी फहीम ने अग्रिम जमानत की अर्जी दी। वकील ने तर्क दिया कि मामला फर्जी था और पुलिस की कहानी में खामियां थीं। जांच अधिकारी (आईओ) ने आरोपी को जांच में शामिल होने के लिए नोटिस नहीं दिया, जो अनिवार्य था। यौन उत्पीड़न के आरोप बाद में लगाए गए थे। फहीम का नाम प्राथमिकी में नहीं था। मुख्य आरोपी महफूज को पहले ही नियमित जमानत दी जा चुकी थी।अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी केस डायरी पेश करने में नाकाम रहे, जिससे यह पता चले कि आरोपी कानून की उचित प्रक्रिया से बच रहा है। यह भी कहा गया कि पहले आईओ बेनीवाल की रिपोर्ट से पता चलता है कि प्राथमिकी में दर्ज कोई घटना नहीं हुई थी। अदालत ने यह भी कहा कि रहीस और उनके कर्मचारी भूरा ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि सना बेगम का यौन उत्पीड़न किया गया था। कोर्ट ने इसे संज्ञान में लेते हुए फहीम को जमानत दे दी।अतिक्रमण पर कोर्ट का स्वत: संज्ञानकोर्ट ने 5 मई, 2022 को संयुक्त पुलिस आयुक्त को इस मामले को देखने का निर्देश दिया था। 20 मई 2022 को पुलिस ने कोर्ट को बताया कि डीसीपी सेन्ट्रल डिस्ट्रिक्ट जिम्मेदारी तय करेंगे और इसके लिए कुछ समय दिया जाए। हालांकि इसके बाद डीसीपी सेंट्रल की ओर से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया और 27 जुलाई, 2022 को कोर्ट ने आदेश की कॉपी दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त को अनुपालन के लिए भेजी।इसके बाद 4 अगस्त को अडिशनल डीसीपी अक्षित कौशल ने कोर्ट को बताया कि वे इस मामले को देख रहे हैं और 5 अगस्त को कोर्ट को इस बारे में बताएंगे। हालांकि, डीसीपी सेंट्रल की ओर से दोबारा कोई सूचना नहीं मिली।दिसंबर 2022 में कोर्ट को डीसीपी सेंट्रल का जवाब मिला जिसमें कहा गया था, ‘मौजूदा मामले की गुण-दोष के आधार पर जांच की गई। यह किसी विशेष जांच या अन्य एजेंसी के हस्तक्षेप की मांग से रहित पाया गया। इसलिए, जांच एजेंसी का विशेषाधिकार होने के नाते जांच’ को स्थानांतरित नहीं किया गया।अदालत ने कहा कि डीसीपी की रिपोर्ट टालमटोल करने के अलावा गलत आधार पर आधारित थी। अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया गया और बार-बार आदेश देने के बावजूद अदालत को अंधेरे में रखा गया।अदालत ने कहा, अतिरिक्त डीसीपी अक्षत कौशल ने बताया कि जमीन हड़पने के मामलों से निपटने वाली किसी विशेष एजेंसी को जांच स्थानांतरित करने से संबंधित फैसला जरूरी लग रहा है। इसलिए, मौजूदा डीसीपी का यह कहना कि जांच करना जांच एजेंसी का विशेषाधिकार है, एक अनावश्यक टिप्पणी थी और इससे बचा जाना चाहिए था। डीसीपी को पहले ही खुद को तथ्यों से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए था।